Uttarakhand News: उत्तराखंड में धीरे-धीरे पिघल रहे हैं ग्लेशियर, जानें- साइंटिस्ट ने क्या बताई वजह?
Glacier News: वाडिया इंस्टीट्यूट के साइंटिस्ट मनीष मेहता का कहना है कि ग्लेशियर का ऊपरी हिस्सा भी पिघलने के कारण उसकी थिकनेस कम हो रही है. इसी तरह हिमालय के सभी ग्लेशियर अलग-अलग गति से पिघल रहे हैं.
Uttarakhand Glacier News: भारत में मौसम के बदलते स्वरूप से धीरे-धीरे ग्लेशियर पिघल रहे हैं. उत्तराखंड में गढ़वाल (Garhwal) में कई ग्लेशियर ऐसे हैं जो धीरे-धीरे पर पिघल रहे हैं तो वहीं देश के दूसरे राज्यों में जैसे-लद्दाख (Ladakh) के अंदर भी अब ग्लेशियर पिघलने लगे हैं. इसको लेकर वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि मौसम के बदलते स्वरूप से ग्लेशियरों में बदलाव हुआ है. ऐसे में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं.
लेह-लद्दाख के जास्कर वैली में स्थित प्रकाचिक ग्लेशियर लागतार मेल्ट हो रहा है. ये वाडिया इंस्टिट्यूट के साइंटिस्ट की रिसर्च में सामने आया है. सन 1971 से 2021 तक हर साल प्रकाचिक ग्लेसियर 4 मीटर पिघल रहा है. वाडिया इंस्टीट्यूट के साइंटिस्ट डॉ. मनीष मेहता बताते हैं कि उन्होंने अपनी टीम के साथ कई सालों तक इस ग्लेशियर पर अध्ययन किया है, जिसमें अलग-अलग उपकरणों के माध्यम से भी रिसर्च की गई है.
अलग-अलग गति से पिघल रहे हैं सभी ग्लेशियर
वहीं मेहता के मुताबिक ग्लेशियर का ऊपरी हिस्सा भी पिघलने के कारण उसकी थिकनेस कम हो रही है. साइंटिस्ट बताते हैं कि इसी तरह हिमालय के सभी ग्लेशियर अलग अलग गति से पिघल रहे हैं. वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया है कि देश में कई ऐसे ग्लेशियर हैं जो धीरे-धीरे पिघलने लगे हैं. इसमें लेह लद्दाख से लेकर उत्तराखंड तक के ग्लेशियर शामिल हैं. उत्तराखंड के गढ़वाल में कई ऐसे ग्लेशियर हैं जो मौसम के बदलते स्वरूप से पिघल रहे हैं.
वैज्ञानिकों ने अपने शोध में क्या पाया?
वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया है कि जिस तरह से इन्वायरमेंट में बदलाव हुआ है और मौसम धीरे-धीरे गर्म होता जा रहा है. साथ ही बारिश का असमय होना और मौसम में बदलाव इसका एक बड़ा कारण है कि ग्लेशियर पिघलने लगे हैं. ग्लेशियर के पिघलने से आने वाले समय में एक बड़ा नुकसान हो सकता है. इसको लेकर वैज्ञानिकों ने अभी से चेतावनी देना शुरू कर दिया है. वाडिया के रिटायर्ड साइंटिस्ट सुशील कुमार बताते हैं कि मौसम में हो रहे बदलाव के चलते बढ़ रहे तापमान से और अनुमान से अलग हो रही बरसात भी ही इस तरह के परिणाम सामने आ रहे हैं, इसलिए जरूरत है कि लेह-लद्दाख में भी क्राउड कंट्रोल किया जाना बेहद जरूरी है ताकि ग्लेशियर की मॉनिटरिंग के साथ स्थिर कर पाने में मदद मिलेगी.
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