NGT on Ganga River: उत्तराखंड में गंगा नदी में हो रहे प्रदूषण को लेकर गंभीर खुलासा हुआ है. राष्ट्रीय हरित अधिकरण यानी (एनजीटी) की सुनवाई में बताया गया कि नदी का ओरिजिनेटिंग पॉइंट भी जलमल शोधन संयंत्र (एसटीपी) से छोड़े जा रहे पानी से प्रदूषित हो गया है. यह जानकारी उत्तराखंड सरकार की रिपोर्ट के हवाले से दी गई है, जिसके अनुसार गंगा नदी के गंगोत्री स्थित एसटीपी से रिसने वाले जल में प्रदूषण की उच्चतम मात्रा पाई गई है.
एनजीटी ने इस मामले में राज्य सरकार से मामले की पूरी जांच रिपोर्ट और आगे की कार्रवाई की मांग की है. गंगा नदी का ओरिजिनेटिंग पॉइंट गंगोत्री क्षेत्र में स्थित है. जो एक प्रमुख पर्यावरणीय और धार्मिक स्थल माना जाता है. हालांकि, एनजीटी में दायर याचिका के अनुसार, गंगोत्री स्थित 10 लाख लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) क्षमता वाले एसटीपी से निकला पानी नदी के ओरिजिनेटिंग पॉइंट को प्रदूषित कर रहा है. इस एसटीपी से लिए गए जल नमूनों में फिकल कोलीफॉर्म (एफसी) की अत्यधिक मात्रा पाई गई, जो मानकों के विपरीत है.
मानकों से अधिक प्रदूषित पानी
केंद्र सरकार के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के जल गुणवत्ता मानदंडों के अनुसार, गंगा में स्नान के लिए जल में फिकल कोलीफॉर्म का स्तर 500/100 मिली से कम होना चाहिए. लेकिन, गंगोत्री के एसटीपी से लिए गए नमूनों में यह स्तर 540/100 मिली था, जो मानकों से अधिक है. फिकल कोलीफॉर्म का स्तर यह संकेत देता है कि जल में मनुष्यों और जानवरों के मलमूत्र से निकलने वाले सूक्ष्मजीवों का प्रदूषण अधिक है, जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है.
एनजीटी ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से इस प्रदूषण की गंभीरता और एसटीपी की स्थिति पर और अधिक जानकारी मांगी है. सुनवाई के दौरान एनजीटी के चेयरमैन जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने मामले में दायर याचिका पर संज्ञान लिया और राज्य सरकार से कार्रवाई की स्थिति रिपोर्ट देने को कहा.
एनजीटी ने राज्य सरकार की रिपोर्ट पर जताई चिंता
एनजीटी ने राज्य सरकार की रिपोर्ट को लेकर अपनी चिंता जाहिर की. राज्य सरकार ने यह दावा किया था कि गंगा में प्रदूषण को रोकने के लिए कई कदम उठाए गए हैं, लेकिन एनजीटी ने इस रिपोर्ट की तुलना केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट से की और इसे संदिग्ध बताया. एनजीटी ने कहा कि राज्य की रिपोर्ट में कई खुलासे किए गए हैं, जो सही प्रतीत नहीं होते. विशेष रूप से, राज्य सरकार ने 53 चालू एसटीपी में से केवल 50 को कार्यशील बताया था, जबकि 48 एसटीपी मानकों का पालन नहीं कर रहे थे.
एनजीटी ने राज्य सरकार से यह भी पूछा कि वह 63 नालों की स्थिति के बारे में क्या कदम उठा रही है, जो सीधे गंगा और उसकी सहायक नदियों में सीवेज छोड़ रहे हैं. एनजीटी ने इस पर गहरी चिंता जताई और यह कहा कि इन नालों के कारण गंगा नदी के जल में प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है. एनजीटी ने राज्य सरकार से इन नालों की सफाई और उन्हें रोकने के लिए जरूरी उपायों की स्थिति रिपोर्ट मांगी है.
एनजीटी ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह गंगा नदी के प्रदूषण पर और भी कड़ी नजर रखें और इसके समाधान के लिए त्वरित कदम उठाए. एनजीटी ने कहा कि राज्य की अगली रिपोर्ट में प्रदूषण कम करने के लिए उठाए गए कदमों को स्पष्ट रूप से उल्लेखित किया जाए. इसके अलावा, एनजीटी ने राज्य के मुख्य सचिव से मामले की उचित जांच करने और एक विस्तृत स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने की मांग की है.
सरकार को त्वरित कार्रवाई के निर्देश
एनजीटी ने इस मामले पर अगली सुनवाई की तारीख 13 फरवरी, 2025 निर्धारित की है। एनजीटी की पीठ ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए राज्य सरकार से सभी आवश्यक कदम उठाने को कहा है, ताकि गंगा नदी के प्रदूषण को कम किया जा सके और नदी की जल गुणवत्ता को बेहतर किया जा सके। इस मामले पर त्वरित कार्रवाई न होने पर एनजीटी ने चेतावनी दी कि गंगा के प्रदूषण को लेकर जो गंभीरता दिखाई जा रही है, वह भविष्य में राज्य सरकार के लिए चुनौती बन सकती है।
गंगा नदी की स्वच्छता और प्रदूषण को लेकर उत्तराखंड सरकार की रिपोर्ट पर एनजीटी की गंभीर आपत्ति यह साबित करती है कि राज्य में प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में अब तक के प्रयास पर्याप्त नहीं रहे हैं. एनजीटी की ये सख्ती और जांच के आदेश राज्य सरकार के लिए एक चुनौती बने हुए हैं. अगर राज्य सरकार ने समय रहते इस मुद्दे पर प्रभावी कदम नहीं उठाए तो भविष्य में गंगा के प्रदूषण पर और भी कड़ी कार्रवाई हो सकती है, जो न केवल पर्यावरण बल्कि स्थानीय समुदायों के स्वास्थ्य के लिए भी नुकसानदायक हो सकती है.
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