Uttarakhand: उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने वरिष्ठ आईएएस अधिकारी बृजेश कुमार संत को एक साथ छह विभागों का कार्यभार सौंपने के मामले में राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है. यह नोटिस उत्तराखंड टैक्सी मैक्सी महासंघ की याचिका पर सुनवाई के दौरान जारी किया गया. अदालत ने सरकार से चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं.
याचिकाकर्ता उत्तराखंड टैक्सी मैक्सी महासंघ ने याचिका में तर्क दिया है कि आईएएस बृजेश कुमार संत को राज्य सरकार ने एक साथ छह विभागों का प्रभार सौंप रखा है. इनमें दो खनन विभाग और तीन परिवहन विभाग शामिल हैं. इसके अलावा, उन्हें परिवहन सचिव, परिवहन आयुक्त, राज्य परिवहन प्राधिकरण (एसटीए) के अध्यक्ष और रोडवेज विभाग के वित्तीय सलाहकार की जिम्मेदारी भी दी गई है.
6 विभागों का प्रभार होने के कारण सुनवाई नहीं होती है- याचिकाकर्ता
याचिकाकर्ता का कहना है कि इतने विभागों का प्रभार होने के कारण उनकी समस्याओं का समाधान समय पर नहीं हो रहा है. महासंघ ने विशेष रूप से एसटीए (राज्य परिवहन प्राधिकरण) के अध्यक्ष पद को लेकर आपत्ति जताई है. याचिका में कहा गया है कि नियमावली के अनुसार, एसटीए का अध्यक्ष ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जिसका इस विभाग में कोई व्यक्तिगत हित न हो.
संत को मिली जिम्मेदारी के कारण प्रशासनिक काम प्रभावित होता है
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता जितेंद्र चौधरी ने अदालत को बताया कि आईएएस बृजेश कुमार संत पर अधिक विभागों का भार होने से टैक्सी और मैक्सी चालकों की समस्याएं लंबित पड़ी हैं. महासंघ का कहना है कि संत को दी गई जिम्मेदारियों के कारण प्रशासनिक कामकाज प्रभावित हो रहा है, जिससे उनके हितों को नुकसान हो रहा है. याचिका में यह मांग की गई है कि संत की जगह किसी अन्य अधिकारी को एसटीए और अन्य विभागों की जिम्मेदारी दी जाए.
न्यायमूर्ति ने 4 हफ्तों में मांगा जवाब
न्यायमूर्ति की पीठ ने मामले को गंभीरता से लेते हुए राज्य सरकार और बृजेश कुमार संत को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब देने का निर्देश दिया है. अदालत ने यह स्पष्ट किया कि याचिका में उठाए गए बिंदुओं पर गहराई से विचार किया जाएगा और सरकार को उचित जवाब दाखिल करना होगा. यह मामला राज्य सरकार के लिए एक नई प्रशासनिक चुनौती खड़ी कर सकता है. सरकार को यह स्पष्टीकरण देना होगा कि बृजेश कुमार संत को एक साथ इतने विभागों का प्रभार क्यों सौंपा गया और क्या यह नियमावली के अनुरूप है.
इस मामले में उच्च न्यायालय का निर्णय न केवल प्रशासनिक पारदर्शिता के लिए महत्वपूर्ण होगा, बल्कि यह भी तय करेगा कि विभागीय जिम्मेदारियों का संतुलन किस प्रकार सुनिश्चित किया जाए. टैक्सी मैक्सी महासंघ के हितों की रक्षा के साथ-साथ सरकारी नीतियों की वैधता पर भी अदालत का फैसला प्रभाव डालेगा.
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