Uttarakhand High Court News: उत्तराखंड के हरिद्वार पारिवारिक न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए एक पति ने उत्तराखंड हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी. पति के याचिका पर आज उत्तराखंड हाई कोर्ट ने अपने फैसला सुनाया है. कोर्ट ने याचिका खारीज करते हुए टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि अगर शारीरिक अक्षमता (बीमारी, अस्वस्थ्ता) के कारण पत्नी अप्राकृतिक शारीरिक संबंध बनाने से इंकार करती है तो इसे पति के प्रति मानसिक क्रूरता नहीं माना जा सकता है.
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने कहा है कि शारीरिक अक्षमता के कारण पत्नी की तरफ से प्रकृति के विरुद्ध शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करना उसके पति के प्रति मानसिक क्रूरता नहीं है. न्यायमूर्ति रवींद्र मैथानी की पीठ ने एक पति की तरफ से दायर आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें पारिवारिक न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे प्रति पति 25 हजार रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था.
पारिवारिक न्यायालय के आदेश को दी थी चुनौती
उत्तराखंड के हरिद्वार पारिवारिक न्यायालय में एक पत्नी ने अपने ही पती के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराई थी कि उसका पति जबरदस्ती अननेचुरल शारीरिक संबंध बनाने का दबाव डालता है. पत्नी का ये भी आरोप है कि उसका पति दहेज के लिए तंग करता है. जिसपर फैमिली कोर्ट ने 2023 में अपना फैसला सुनाया था कि पति अपनी पत्नी को 25 हजार रुपये और बेटे को 20 हजार रुपये हर महीने देगा. जिससे दोनों का भरण-पोषण आसानी से हो सके. जिसके बाद पति उत्तराखंड हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.
धारा 125 के तहत दाखिल किया था मुकदमा
पति के इस याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया. जाहिर सी बात है अगर पत्नी बीमार है या अस्वस्थ है तो ऐसे में वह शारीरिक संबंध बनान से इंकार करती है तो तो इसे पति के प्रति मानसिक क्रूरता नहीं माना जा सकता है. दोनों की शादी 2010 के दिसंबर में हुई थी, जिसके कई साल बाद पत्नी ने परिवार न्यायालय में धारा 125 क तहत मामला दाखिल किया था. पत्नी का आरोप है कि पति उसके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाने का दबाव डालता है और दहेज के लिए भी प्रताड़ित करता है.
ये भी पढ़ें: नेम प्लेट विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर राकेश टिकैत बोले- 'जनता का अदालतों पर विश्वास...'