Uttarakhand News: उत्तराखंड का जोशीमठ इन दिनों चर्चा में है. चर्चा में होने की वजह यहां की खूबसूरती और यहां से दिखने वाले नजारे नहीं बल्कि उसकी मिटती निशानी है. बीते कुछ दिनों से लोगों के घरों में दरारे पड़ने, सड़के धंसने के मामले सामने के बाद एक ओर जहां रिहायशी इलाकों को खाली कराया जा रहा है तो वहीं केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक एक्शन में आ गई है. केंद्र ने जहां एक विशेष समिति का गठन किया है तो वहीं राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इलाके का दौरा किया और प्रभावित लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का निर्देश देते हुए कहा है कि प्रति व्यक्ति 4 हजार रुपये मुआवजा देने का एलान किया है. इसके अलावा यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है.


उत्तराखंड में बड़ी संख्या में जाते हैं टूरिस्ट्स
दीगर है कि उत्तराखंड में टूरिस्ट्स बड़ी संख्या में जाते रहे हैं. आंकड़े देखें तो साल में करोड़ों लोग हर साल उत्तराखंड जाते हैं और पहाड़ों की खूबसूरती से वाकिफ होते हैं. नैनीताल, मसूरी और जोशीमठ उन इलाकों में शामिल हैं, जहां पर्यटकों का भारी दबाव होता है. साल 2020 और 2021 को छोड़ दें तो शायद ही कोई साल हो जब इन इलाकों में पर्यटकों की भारी संख्या न पहुंची हो. हालांकि अब ये सवाल उठने लगे हैं कि क्या ये पहाड़ी इलाके भारी संख्या में लोगों का बोझ उठाने के लिए तैयार हैं?


2019 में 4.9 लाख पर्यटक पहुंचे  जोशीमठ
अंग्रेजी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक आंकड़े के अनुसार साल 2022 में पांच करोड़ पर्यटक उत्तराखंड पहुंचे थे. वहीं बात जोशीमठ की बात करें तो 2019 में 4.9 लाख पर्यटक यहां पहुंचे थे. वहीं 2018  में जोशीमठ में 2.4 लाख पर्यटक पहुंचे. वहीं बात मसूरी में की जाए तो 2017 में यहां पहुंची पर्यटकों की संख्या 27 लाख थी. 2018 और 19 में यहां 18 लाख पर्यटक घूमने पहुंचे थे. वहीं 2020 में पर्यटकों की संख्या 10 लाख थी. वहीं 2021 में 12 लाख पर्यटक यहां पहुंचे थे. इसी तरह नैनीताल में 2017 में 9.1 लाख, 2018 और 19 में 9.3, 2020 में 2.1 और 2021 में यहां 3.3 लाख पर्यटक पहुंचे थे.


अंग्रेजी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, पद्म भूषण अनील जोशी कहते हैं कि हमें अपने पहाड़ों का एक वैज्ञानिक अध्ययन कराना चाहिए कि क्या हमारे पहाड़ पर्यटकों का ज्यादा बोझ करने की स्थिति में हैं या नहीं.


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