Holi 2022: उत्तराखंड में लोक संस्कृति का अपना अलग ही महत्व है. होली के आते ही यहां के पर्वतीय अंचलों से आम जनमानस इसमें रम जाता है. पौष महीने के पहले रविवार से शुरू होने वाली सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा की प्रसिद्ध व ऐतिहासिक होली इन दिनों पूरे शबाब पर है. यहां देर रात तक होली गायन की महफ़िलें गूंज जम रही हैं. इस मौके पर रंगकर्मी, कलाकार और स्थानीय लोग देर रात तक बैठकी होली के रागों का आनंद ले रहे हैं. अल्मोड़ा में बैठकी होली का इतिहास 150 साल से भी ज्यादा पुराना माना जाता है.
अल्मोड़ा में बैठकी होली काफी प्रासिद्ध है. यहां बैठकी होली की शुरुआत पौष महीने के पहले रविवार से शुरू हो जाती है. जिसमें ईश्वर की आराधना के निर्वाण गीत गाए जाते हैं. बसंत के शुरू होते ही श्रृंगार रस के गाने शुरू हो जाते हैं, जबकि शिवरात्रि के बाद होली अपने पूरे उफान पर होती है. बैठकी होली शुद्ध शास्त्रीय गायन है, लेकिन शास्त्रीय गायन की तरह एकल गायन नहीं है. इसमें होली में भाग लेने वाला मुख्य कलाकार गीतों का मुखड़ा गाते हैं और श्रोता होल्यार भी बीच-बीच में साथ देते हैं, जिसे भाग लगाना कहा जाता है.
कुमाउंनी बैठकी होली की बात हो और अल्मोड़ा का नाम न आये ऐसा हो ही नहीं सकता. क्योंकि सैकड़ों वर्ष पूर्व अल्मोड़ा से ही इस कुमाउंनी बैठकी होली की परंपरा शुरू हुई. इस बैठकी होली की विशेषता यह है कि ये होली शास्त्रीय रागों पर गायी जाती है. वहीं इस होली की एक विशेषता यह है कि ये होली शिवरात्रि तक बिना रंगों के सिर्फ संगीत की होली होती है. शाम होते ही संगीत प्रेमियों द्वारा अपने-अपने घरों में शास्त्रीय रागों पर आधारित बैठकी होली का गायन शुरू हो जाता है.
कहते हैं कुमाऊं में होली गीतों के गायन की शुरुआत अल्मोड़ा से हुई. कहा जाता है कि अल्मोड़ा में 1860 में इसकी शुरूआत की गई थी. होली में गाई जाने वाली बंदिशे विभिन्न रागों पर आधारित होती हैं जो समय के अनुसार गाये जाते है. बैठक में होली को गाए जाने का एक तरीका है. राग काफी, जंगला काफी, खमाज, देश, विहाग, जैजेवन्ती, जोगिया आदि रागों में होली के पद गाये जाते रहे है. होली रसिक बताते है कि अब कुछ नये रागों पर भी होली के पद गाये जाने की परंपरा शुरू हो गई है जो नई पीढ़ी ने शुरू की है.
चीर बंधन व रंग पड़ने से पहले अल्मोड़ा में होली पूरे शबाब पर होती है. महिलाएं भी घर-घर जाकर परंपरागत होली गायन करती हैं, जिसमें श्रंगार रस की होली राधा-कृष्ण, शिव पर आधारित खड़ी बैठकी का आयोजन होता है. पुरुषों की होली का अपना अलग अंदाज होता है जिसमें ढोल, थाल, मजीरा, चिमटा और हुड़का वाद्य यंत्रों के साथ देवी देवताओं की कथा गाई जाती है. लोग टोली में अपने मंदिरों गायन करते हैं.
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