उत्तराखंड में 4 साल में बढ़ी कुपोषित बच्चों की संख्या, कांग्रेस ने ने उठाई जांच की मांग
Uttarakhand News: उत्तराखंड में कुपोषण को खत्म करने के लिए सरकार ने विभिन्न योजनाएं चला रही है. बावजूद इसके आंकड़े चौंकाने वाले हैं. साल 2024-25 में कुपोषित बच्चों की संख्या 8 हजार से ज्यादा रही.

Uttarakhand News: उत्तराखंड में कुपोषण को खत्म करने के लिए सरकार ने विभिन्न योजनाएं चलाई और भारी बजट खर्च किया, लेकिन इसके बावजूद अति कुपोषित बच्चों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है. प्रदेश के आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले चार वर्षों में अति कुपोषित बच्चों की संख्या ढाई गुना तक बढ़ गई है. इस अलर्मिंग स्थिति ने नीति-निर्माताओं और प्रशासन की चिंता बढ़ा दी है.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020-21 में उत्तराखंड में कुल 8856 कुपोषित बच्चे और 1129 अति कुपोषित बच्चे थे. लेकिन वर्ष 2024-25 तक कुपोषित बच्चों की संख्या 8374 और अति कुपोषित बच्चों की संख्या 2983 तक पहुंच गई. यह आंकड़े दर्शाते हैं कि सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं और पोषण कार्यक्रमों के बावजूद स्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं हो रहा है.
आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से बच्चों को टेक होम राशन मिल रहा है
महिला एवं बाल विकास विभाग और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत कुपोषण कम करने के लिए कई योजनाएं लागू की गई हैं. आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से बच्चों को टेक होम राशन दिया जा रहा है, ताकि वे घर पर पर्याप्त पोषण प्राप्त कर सकें. इसके अलावा, स्वास्थ्य विभाग के तहत नियमित स्वास्थ्य परीक्षण किए जाते हैं और जरूरत पड़ने पर बच्चों को उच्च चिकित्सा संस्थानों में मुफ्त इलाज की सुविधा दी जाती है.
सरकार ने चालू वित्तीय वर्ष में दिसंबर 2024 तक इस दिशा में 430 करोड़ रुपये खर्च किए, लेकिन परिणाम उम्मीदों के अनुरूप नहीं रहे. विशेषज्ञों का मानना है कि केवल बजट खर्च करने से समस्या हल नहीं होगी, बल्कि योजनाओं को जमीनी स्तर पर प्रभावी ढंग से लागू करना भी आवश्यक है.
विशेषज्ञों ने क्या कहा?
विशेषज्ञों के अनुसार, भोजन की कमी, असंतुलित आहार और गरीबी कुपोषण के मुख्य कारण हैं. जब बच्चों को पर्याप्त पोषक तत्व नहीं मिलते, तो उनका शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित होता है. कुपोषित बच्चे न केवल कमजोर होते हैं, बल्कि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है, जिससे वे बार-बार बीमार पड़ते हैं.
डॉक्टरों का कहना है कि यदि बच्चों को नियमित रूप से उचित पोषण, विटामिन और खनिज नहीं मिलते, तो उनकी पढ़ाई और संज्ञानात्मक क्षमता भी प्रभावित होती है. यही कारण है कि सरकार को सिर्फ योजनाओं पर ध्यान देने के बजाय उनके सही क्रियान्वयन पर अधिक जोर देना चाहिए.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की निदेशक ने क्या बोला?
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) की मिशन निदेशक स्वाति भदौरिया के अनुसार, “राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के माध्यम से आंगनबाड़ी केंद्रों में जाकर बच्चों के स्वास्थ्य की जांच की जाती है. यदि किसी बच्चे में कुपोषण से जुड़ी कोई गंभीर समस्या पाई जाती है, तो उसे निशुल्क इलाज की सुविधा दी जाती है.” हालांकि, जमीनी हकीकत यह है कि कुपोषण की समस्या बढ़ती जा रही है. कई क्षेत्रों में आंगनबाड़ी केंद्रों की पहुंच सीमित है, और वहां पर्याप्त संसाधन भी उपलब्ध नहीं हैं.
कुपोषण से निपटने के लिए सरकार को जमीनी स्तर पर योजनाओं की सख्ती से निगरानी करनी होगी. इसके लिए विशेषज्ञों ने सुझाव भी दिए हैं.
- आंगनबाड़ी केंद्रों की प्रभावशीलता बढ़ाई जाए- टेक होम राशन और पोषाहार वितरण की नियमित निगरानी होनी चाहिए.
- स्वास्थ्य जांच अभियान तेज किया जाए- बच्चों के स्वास्थ्य परीक्षण में पारदर्शिता होनी चाहिए और आवश्यकतानुसार उचित इलाज की सुविधा दी जानी चाहिए.
- माताओं को जागरूक किया जाए- गर्भावस्था के दौरान और जन्म के बाद महिलाओं को सही पोषण संबंधी जानकारी दी जाए, जिससे वे बच्चों का सही खान-पान सुनिश्चित कर सकें.
- स्थानीय स्तर पर भागीदारी बढ़ाई जाए- पंचायत, स्वयंसेवी संगठन और समुदाय को इस मुहिम में शामिल कर कुपोषण को रोकने के प्रयास किए जाएं.
कांग्रेस ने मामले में जांच की मांग की
वही इस मामले में कांग्रेस ने भी सवाल खड़े किए है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने कहा है कि इस मामले में सरकार को जांच करानी चाहिए आखिर 430 करोड़ रुपये का बजट कहा गया. जब प्रदेश में बच्चे कुपोषित हो रहे है तो सरकार कर क्या रही है. राज्य सरकार को कुपोषित बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है.
उत्तराखंड में कुपोषण की बढ़ती समस्या को देखते हुए सरकार और प्रशासन को अब अपनी रणनीति में बदलाव करने की जरूरत है. केवल बजट बढ़ाने से समाधान नहीं होगा, बल्कि योजनाओं के क्रियान्वयन को प्रभावी बनाना होगा. जब तक जमीनी स्तर पर ठोस कदम नहीं उठाए जाते, तब तक कुपोषण की समस्या बनी रहेगी और बच्चे स्वस्थ भविष्य की ओर बढ़ने से वंचित रह जाएंगे.
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