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Uttarakhand Glacier: पिघल रहे ग्लेशियर बन सकते है मुसीबत, वसुंधरा ताल जाकर पांच झीलों का अध्ययन करेगी टीम

Uttarakhand News: उत्तराखंड में पिघल रहे ग्लेशियर खतरे का सबब बन सकते हैं. इसरो ने सेटेलाइट डाटा के आधार पर उत्तराखंड में 13 ग्लेशियल झीलों को चिह्नित किया है, जिनमें से 5 बेहद संवेदनशील हैं.

Uttarakhand Glacier News: उत्तराखंड में धीरे-धीरे पिघल रहे ग्लेशियर खतरे का सबब बन सकते है. बता दें कि ग्लेशियल झीलों के टूटने से होने वाली आपदाओं को रोकने के लिए भारतीय अनुसंधान केंद्रों ने महत्वपूर्ण कदम उठाया है. इसरो ने सेटेलाइट डाटा के आधार पर उत्तराखंड में 13 ग्लेशियल झीलों को चिह्नित किया है, जिनमें से 5 बेहद संवेदनशील हैं. वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी और अन्य संस्थानों ने मिलकर इन झीलों का अध्ययन करने का निर्णय लिया है.

वाडिया संस्थान की एक टीम ने उत्तराखंड के भीलंगना नदी बेसिन में 4750 मीटर की ऊंचाई पर बन रही ग्लेशियल झील का दौरा किया है. यह झील सर्दियों के दौरान पूरी तरह से जमी और बर्फ से ढकी रहती है. इस अध्ययन से ग्लेशियल झीलों के टूटने के कारणों और आपदाओं को रोकने के उपायों को समझने में मदद मिलेगी.

तापमान बढ़ने से बर्फ पिघलनी शुरू हो जाती है
बता दें कि वसंत की शुरुआत में तापमान बढ़ता है तो बर्फ पिघलनी शुरू हो जाती है. ग्लेशियर पर अध्ययन में जुटे संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अमित कुमार ने बताया कि आंकड़ों के अनुसार यहां 1968 में कोई झील दिखाई नहीं दे रही थी. 1980 में यहां झील दिखाई देने लगी और तब से यह लगातार बढ़ रही है. 2001 तक विकास की दर कम थी, लेकिन फिर यह लगभग पांच गुना तेजी से बढ़ने लगी. 1994 से 2022 के बीच करीब 0.07 वर्ग किमी से बढ़कर 0.35 वर्ग किमी हो गई, जो एक बड़ी चिंता का विषय है.

पांच झीलों का किया जाएगा अध्ययन
उत्तराखंड के चमोली क्षेत्र में रायकाना ग्लेशियर में वसुंधरा ताल में झील विकसित हो रही है, जिसका क्षेत्रफल और आयतन 1968 से बढ़ गया है. इस झील का क्षेत्रफल 1968 में 0.14 वर्ग किमी से बढ़कर 2021 में 0.59 वर्ग किमी हो गया है. इसरो की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड में इसी तरह की 13 झीलें हैं, जिनमें से पांच अति संवेदनशील हैं. उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की पहल पर वाडिया इंस्टीट्यूट और अन्य वैज्ञानिक संस्थानों ने मिलकर पांच झीलों का अध्ययन करने का निर्णय लिया है, ताकि इनसे संभावित खतरों को दूर किया जा सके.

क्या बोले वैज्ञानिक डॉ अमित कुमार
वैज्ञानिक डॉ अमित कुमार के अनुसार रायकाना ग्लेशियर में 1990 से 2001 तक न्यूनतम 15 मीटर प्रति वर्ष की कमी आई है, जबकि 2017 और 2021 के बीच यह 38 मीटर प्रतिवर्ष की दर से सिकुड़ रहा है. वहीं, दूसरी ओर, गंगोत्री ग्लेशियर भी पिछले एक दशक में करीब 300 मीटर पीछे खिसक चुका है. वैज्ञानिकों के अनुसार ग्लेशियल झील वाले क्षेत्रों में ग्लेशियरों के सिकुड़ने से झील का क्षेत्र और गहराई बढ़ सकती है.

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