Uttarakhand News: उतराखंड में पलायन आयोग पर उठे सवाल, पांच सालों में सिर्फ दो कर्मचारियों के भरोसे हो रहा है काम
Uttarakhand News: पलायन आयोग की जरूरत इसलिए पड़ी थी क्योंकि प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों से हो रहे पलायन के कारणों का पता लगाया जा सके, लेकिन तब से आज तक ये कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है.
Uttarakhand News: उत्तराखंड में पलायन आयोग के गठन को तकरीबन 5 साल का वक्त हो चुका है, लेकिन आयोग अभी भी 2 कर्मचारियों से ही काम चला रहा है. आयोग के पास अपने स्थाई कर्मचारी नहीं है. ग्रामीण विकास के सहयोग से आयोग ने अब तक पलायन की स्थिति को जानने के लिए दो सर्वे कराए हैं. एक सर्वे 2018 में किया गया था और दूसरा सर्वे 2022 में किया जा चुका है, जिसकी रिपोर्ट जल्दी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (CM Pushkar Singh Dhami) को सौंप दी जाएगी, लेकिन कर्मचारियों के अभाव में आयोग वक्त पर अपना काम पूरा नहीं कर पा रहा है.
2017 में भाजपा की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने उत्तराखंड में पलायन आयोग का गठन किया था, आयोग की जरूरत इसलिए पड़ी थी क्योंकि प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों से हो रहे पलायन के कारणों का पता लगाया जा सके, आयोग के पास फिलहाल एक उपाध्यक्ष और 5 सदस्य हैं, एक सदस्य सचिव भी है और एक एडिशनल सदस्य सचिव भी आयोग में काम कर रहा है. आयोग के अध्यक्ष खुद मुख्यमत्री है, लेकिन कर्मचारी सिर्फ दो हैं जो पौड़ी के ऑफिस में डाटा एंट्री का काम करते हैं.
पांच साल में दो सर्वे कर चुका है पलायन आयोग
पांच सालों में आयोग अब तक पलायन के कारणों को जानने के दो सर्वे कर चुका है, पहला सर्वे 2018 में किया गया था और दूसरा सर्वे 2022 में किया जा चुका है. आयोग जल्द इसकी रिपोर्ट सरकार को सौंपने जा रहा है लेकिन मजे की बात ये है कि आयोग के गठन से लेकर अब तक इन 5 सालों में आयोग के पास सिर्फ दो ही कर्मचारी हैं, कर्मचारियों की कमी के चलते आयोग अपने काम को अपने अनुसार नहीं कर पा रहा है. आयोग को फिलहाल ग्राम्य विकास विभाग पर डिपेंड होना पड़ रहा है. ग्रामीण विकास के कर्मचारियों से आयोग काम चला रहा है.
पलायन आयोग की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में 400 से अधिक ऐसे गांव हैं जहां 10 से भी कम नागरिक रहते हैं और 1734 गांव खाली हो चुके हैं. सबसे ज्यादा पलायन से प्रभावित जिले पौड़ी और अल्मोड़ा है. आयोग ने सर्वे में यह भी पाया कि ग्रामीण क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं के अभाव में लोग पलायन कर रहे हैं हालांकि आयोग के उपाध्यक्ष एसएस नेगी का ये भी कहना है कि सरकार के पास इतने साधन नहीं है कि अलग से विभाग का ढांचा बनाया जा सके. इसलिए ग्राम विकास विभाग को मूल विभाग बनाया गया है. कर्मचारियों की कमी से आंकड़ों के विश्लेषण में ज्यादा वक्त लग रहा है.
कांग्रेस ने उठाए पैसे की बर्बादी पर सवाल
कांग्रेस ने पलायन आयोग को लेकर सरकार पर निशाना साधा है. उनका कहना है कि आयोग ने सिर्फ 5 सालों में पैसों की बर्बादी के अलावा कुछ काम नहीं किया और जब पलायन रोकने पर विशेष फोकस किया जाना चाहिए तो आयोग कर्मचारियों की कमी का रोना रो रहा है.
आपको बता दें सितंबर 2017 में पलायन आयोग का गठन हुआ, लेकिन इन पांच सालों से वो कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है. जाहिर इसलिए आयोग अपने काम की गति को नहीं पकड़ पाया. यदि आयोग में स्थाई तौर पर या फुलप्रूफ कर्मचारी होते तो आयोग वक्त पर पलायन के कारणों को जान लेता और सरकार अब तक प्रदेश के पर्वतीय जिलों में पलायन रोकने पर काम शुरु कर देती.
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