(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Uttarakhand News: चुनावी मुद्दा बनकर रह गईं नए जिलों की घोषणाएं, सरकारें बदलीं, लोगों की मांग रही अधूरी
उत्तराखंड में राजनीतिक नेताओं द्वारा नए जिलों के गठन और गेरसैंण को राजधानी बनाने के वादे किए गए हैं, लेकिन ये वादे पूरे नहीं हुए हैं. कई मुख्यमंत्रियों ने तो घोषणाएँ कीं, लेकिन ये जमीन पर नहीं उतरीं.
Uttarakhand News: उत्तराखंड की राजनीति में अक्सर जनता की भावनाओं को ध्यान में रखकर बड़े-बड़े फैसलों की घोषणाएं होती हैं, लेकिन ये वादे ज्यादातर धरातल पर नहीं उतर पाते. राज्य गठन के 24 साल बाद भी नए जिलों की मांग अधूरी है.हालांकि इस मुद्दे पर समय-समय पर कई मुख्यमंत्रियों ने घोषणा की है,लेकिन ये केवल चुनावी जुमले बनकर रह गए हैं.
राज्य स्थापना के बाद से ही नए जिलों के गठन की मांग उठती रही है, लेकिन इसका समाधान आज तक नहीं निकला है. पिछले कई मुख्यमंत्रियों ने नए जिलों की घोषणा की. लेकिन किसी ने भी इसे अमलीजामा नहीं पहनाया.
मुख्यमंत्रियों की घोषणाएं और अधूरे वादे
सबसे पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने स्वतंत्रता दिवस के दिन चार नए जिलों की घोषणा की थी. उन्होंने गढ़वाल मंडल में यमुनोत्री और कोटद्वार तथा कुमाऊं मंडल में डीडीहाट और रानीखेत को नए जिले के रूप में गठित करने की बात कही थी. इसके बाद जनता में उम्मीद की लहर दौड़ी, लेकिन यह घोषणा भी धरातल पर नहीं उतर पाई.
2011 में बीसी खंडूरी
रमेश पोखरियाल के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी ने नए जिलों के गठन के लिए शासनादेश जारी किया.इसके बावजूद नए जिलों के लिए बजट आवंटित नहीं हुआ और यह मुद्दा एक बार फिर ठंडे बस्ते में चला गया.
बहुगुणा का जिला पुनर्गठन आयोग
2012 में कांग्रेस की सरकार बनने पर विजय बहुगुणा ने जिला पुनर्गठन आयोग का गठन किया.लेकिन इस पहल के बाद भी कोई ठोस कार्य नहीं हो सका.
हरीश रावत द्वारा 9 जिलों की घोषणा
कांग्रेस के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने पांच की जगह 9 जिलों की घोषणा की, इसके लिए 100 करोड़ का बजट भी रखा गया.लेकिन यह कदम भी केवल राजनीतिक एजेंडा बनकर रह गया.
भाजपा और कांग्रेस का रुख
कांग्रेस प्रवक्ता शीशपाल बिष्ट का कहना है कि कांग्रेस ने नए जिलों के गठन का वादा किया था. लेकिन सत्ता परिवर्तन के कारण यह पूरा नहीं हो सका. वहीं भाजपा के नेता जोत सिंह बिष्ट ने कहा कि नए जिले तभी बनाए जा सकते हैं जब पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हों.
नई राजधानी का अधूरा सपना
गैरसैंण को उत्तराखंड की स्थाई राजधानी बनाने की मांग भी लंबे समय से चल रही है. यह मुद्दा भी राजनेताओं के लिए एक राजनीतिक औजार बनकर रह गया है. 24 साल बाद भी राज्य की स्थाई राजधानी का निर्णय नहीं हो पाया है.
परिसीमन के बाद बदल सकते हैं हालात
उत्तराखंड में परिसीमन के बाद मैदानी जिलों में विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ेगी और पर्वतीय जिलों में घटेगी.इसके बाद राजनीतिक दलों का रुख बदल सकता है.शायद यही कारण है कि गैरसैंण को पूर्ण रूप से राजधानी के रूप में स्वीकारने की कोई ठोस कोशिश नहीं हुई.
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