UCC In Uttarakhand: मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने उत्तराखंड विधानसभा में पेश समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक को भेदभावपूर्ण करार देते हुए मंगलवार को कहा कि अगर अनुसूचित जनजाति को इस विधेयक के दायरे से बाहर रखा जा सकता है, तो फिर मुस्लिम समुदाय को छूट क्यों नहीं मिल सकती.


उन्होंने यह भी कहा कि मुस्लिम समुदाय को ऐसा कोई कानून स्वीकार्य नहीं है, जो शरीयत के खिलाफ हो.


मदनी ने एक बयान में कहा, ‘‘हमें ऐसा कोई कानून स्वीकार्य नहीं है, जो शरीयत के खिलाफ हो...सच तो यह है कि किसी भी धर्म को मानने वाला अपने धार्मिक कार्यों में किसी प्रकार का अनुचित हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं कर सकता.’’


उन्होंने कहा कि आज उत्तराखंड विधानसभा में पेश किये गए समान नागरिक संहिता विधेयक में अनुसूचित जनजातियों को संविधान के प्रावधानों के तहत नए कानून में छूट दी गई है और यह तर्क दिया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके अधिकारों को सुरक्षा प्रदान की गई है.


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मदनी ने सवाल किया, ‘‘यदि संविधान के एक अनुच्छेद के तहत अनुसूचित जनजातियों को इस कानून से अलग रखा जा सकता है, तो हमें संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत धार्मिक आज़ादी क्यों नहीं दी जा सकती?


धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है- मदनी
उन्होंने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत नागरिकों के मौलिक अधिकारों को मान्यता देकर धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है.


मदनी ने दावा किया, ‘‘समान नागरिक संहिता मौलिक अधिकारों को नकारती है. यदि यह समान नागरिक संहिता है, तो फिर नागरिकों के बीच यह भेदभाव क्यों?’’


उन्होंने यह भी कहा, ‘‘हमारी कानूनी टीम विधेयक के कानूनी पहलुओं की समीक्षा करेगी, जिसके बाद कानूनी कदम पर फैसला लिया जाएगा.’’


उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य विधानसभा में मंगलवार को बहुप्रतीक्षित समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक पेश कर दिया, जिसमें बहुविवाह और 'हलाला' जैसी प्रथाओं को आपराधिक कृत्य बनाने तथा 'लिव-इन' में रह रहे जोड़ों के बच्चों को जैविक बच्चों की तरह उत्तराधिकार दिए जाने का प्रावधान है.


यूसीसी विधेयक को पारित कराने के लिए बुलाये गये विधानसभा के विशेष सत्र के दूसरे दिन पेश ‘समान नागरिक संहिता, उत्तराखंड-2024’ विधेयक में धर्म और समुदाय से परे सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, संपत्ति जैसे विषयों पर एक समान कानून प्रस्तावित है.


हालांकि, इसके दायरे से प्रदेश में रह रही अनुसूचित जनजातियों को बाहर रखा गया है.