Uttarakhand News: हिमालय को लेकर इसरो की रिपोर्ट में कई तरह के खुलासे किए गए हैं. इसमें सबसे महत्वपूर्ण खुलासा यह है कि प्रकृति और जलवायु को संजोकर रखने वाला हिमालय एक गंभीर समस्या से जूझ रहा है. यह समस्या कुछ और नहीं बल्कि ग्लोबल वार्मिंग है हिमालय में साल दर साल मौसम के परिवर्तन की वजह से ग्लेशियर पीछे की तरफ खिसक रहे हैं.


इसरो की रिपोर्ट में विस्तार पूर्वक आंकड़े देते हुए बताया कि इसरो लगातार तीन दशक से अधिक समय से हिमालय की इन गतिविधियों का डाटा तैयार कर रहा है और जो हकीकत सामने आई है. उससे यह पता लगा है कि 1984 से लेकर साल 2023 तक जो आंकड़े जुटाए हैं उसके मुताबिक हिमालय में 2431 झील है जो लगभग 10 हेक्टेयर से भी बड़ी है. 2431 झील में से 676 ऐसी झील है जिनका आकार लगातार बढ़ रहा है जो चिंता का विषय है. हालांकि भारत में 130 झील है जिसमें से गंगा नदी के ऊपर 7 बड़ी झील और सिंधु नदी के ऊपर 65 और ब्रह्मपुत्र के ऊपर 58 झील बनकर तैयार हो गई है. 


बढ़ रहा झीलों का आकार
इसरो ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इन 130 झील में से 10 झील ऐसी है जिनका आकार 2 गुना बड़ा है जबकि 65 झील ऐसी हैं जिनका डेढ़ गुना आकर तेजी से कम समय में बढ़ा है सबसे अधिक तेजी से हिमाचल प्रदेश के घेपांग घाट में बनी झील का ग्लेशियर बढ़ा है जिसकी इमेज भी इसरो ने जारी की है. यह झील 4068 मीटर की ऊंचाई पर है रिपोर्ट में कहा गया है की इसके बढ़ने का इजाफा लगभग 178 फीसदी हुआ है. 1984 में यह झील महज 36.40 हेक्टर में थी. अब इसका आकार 101.30 हेक्टेयर हो गया है. 


पर्यावरण प्रेमी ख्याति प्राप्त पर्यावरण विद् अनिल जोशी इसरो की इस रिपोर्ट के बाद यह बात कह रहे हैं कि हमें भी इस बात पर ध्यान देना होगा कि इस संकट से कैसे निपटा जाए. क्योंकि अगर भारत में ही 130 ऐसी झील बन गई है तो उसके परिणाम आने वाले समय में क्या होंगे यह किसी से छुपे नहीं है. अनिल जोशी 2013 की केदारनाथ आपदा को याद करते हुए कहते हैं कि इसमें न केवल सरकारों की बल्कि आम जनमानस की भागीदारी भी बेहद जरूरी है.


तेजी से पिघल रहे हैं ग्लेशियर
वही वाडिया इंस्टीट्यूट के निदेशक कला चंद साई कहते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग हिमालय क्षेत्र में लंबे समय से तेजी से हो रही है. जिसकी एक नही कई वजह है जिसमे गोलबल वार्मिंग,पर्यावरण में बदलाव के साथ ही कई कारण है जिसके चलते ही हिमालय के जिन क्षेत्रों में पहले बर्फबारी हुआ करती थी. अब वहां पर बारिश होती है और बारिश की वजह से भी ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे है.


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