Kedarnath ByPolls 2024: केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव सिर्फ एक सीट का चुनाव नहीं है, बल्कि उत्तराखंड की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ बन चुका है. यह चुनाव न केवल भाजपा और कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई है, बल्कि राज्य में राजनीतिक समीकरणों को भी नया आकार देने का संकेत है. महिला प्रत्याशियों की जीत का मिथक दोहराने की कोशिश में भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी है, जबकि कांग्रेस इसे तोड़ने के लिए संघर्षरत है. 23 नवंबर को मतगणना के साथ यह स्पष्ट हो जाएगा कि तीन महीने की तैयारी और 17 दिन के तीव्र प्रचार का फल किसके खाते में जाता है.
भाजपा ने इस उपचुनाव को जीतने के लिए पूरे राज्य और केंद्र की ताकत झोंक दी. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चुनाव की घोषणा से पहले ही केदारनाथ क्षेत्र में विकास योजनाओं की झड़ी लगा दी. प्रभावितों के लिए विशेष पैकेज से लेकर बुनियादी ढांचे के विकास तक की घोषणाएं की. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का केदारनाथ से भावनात्मक जुड़ाव भाजपा के लिए सबसे बड़ा सहारा है.
पार्टी ने महिला मतदाताओं की बहुलता को ध्यान में रखते हुए महिला प्रत्याशी आशा नौटियाल को मैदान में उतारा. भाजपा का दावा है कि क्षेत्र में हुए विकास कार्य और पार्टी का मजबूत संगठनात्मक ढांचा जीत की गारंटी है. हालांकि, नई दिल्ली में केदारनाथ मंदिर के प्रतीकात्मक शिलान्यास को लेकर जनता की नाराजगी एक बड़ी चुनौती है.
कांग्रेस का एकजुट अभियान
दूसरी ओर, कांग्रेस ने बदरीनाथ और मंगलौर उपचुनाव में मिली जीत से उत्साहित होकर इस चुनाव में पूरी ताकत झोंकी. पार्टी ने मतदाताओं के बीच अपने नेता मनोज रावत को एक भरोसेमंद विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया. कांग्रेस ने भाजपा की कमजोरियों को भुनाते हुए प्रचार को धार दी.
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने महिला मतदाताओं को साधने के लिए खेत-खलिहानों का रुख किया, जबकि प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा और नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य समेत वरिष्ठ नेताओं ने व्यापक जनसंपर्क किया. केदारनाथ धाम से जुड़े मुद्दे, आपदा प्रबंधन और दिल्ली में प्रतीकात्मक मंदिर के निर्माण को कांग्रेस ने अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश की.
मिथक और इतिहास की कसौटी
केदारनाथ में महिला प्रत्याशियों की जीत का मिथक 2017 में तब टूटा था, जब कांग्रेस के मनोज रावत ने यह सीट जीती थी. भाजपा अब इस मिथक को फिर से स्थापित करने की कोशिश में है. पिछले चुनावों के आंकड़ों पर नजर डालें तो केदारनाथ सीट पर महिला मतदाता निर्णायक भूमिका निभाती रही हैं.
जनता के मुद्दे और सियासी भविष्य
केदारनाथ उपचुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों ने जनता के मुद्दों को प्राथमिकता दी. आपदा प्रभावित क्षेत्र में पुनर्वास और राहत के सवालों के साथ-साथ विकास कार्यों पर जोर दिया गया. कांग्रेस ने भाजपा सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए, जबकि भाजपा ने अपने विकास कार्यों का ढोल पीटा.
परिणाम का व्यापक असर
इस उपचुनाव का परिणाम केवल एक सीट तक सीमित नहीं रहेगा. यह परिणाम राज्य के आगामी विधानसभा चुनावों और भाजपा-कांग्रेस के राजनीतिक भविष्य को तय करेगा. भाजपा के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का सवाल है, जबकि कांग्रेस इसे 2027 के चुनावों से पहले अपनी ताकत दिखाने के अवसर के रूप में देख रही है. 23 नवंबर को जब मतगणना के नतीजे आएंगे, तब यह स्पष्ट होगा कि केदारनाथ का मिथक दोहराया गया या फिर एक नया इतिहास लिखा गया.
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