Uttarakhand News: उत्तराखंड में निकाय चुनाव का माहौल गर्म है और देहरादून में राजनीतिक पार्टियों के दफ्तर इस समय टिकट के दावेदारों से गुलजार हैं. खासकर तब से जब राज्य सरकार ने 39 सीटों का आरक्षण स्टेटस बदल दिया. कई सीटें जो सामान्य थीं, अब अचानक आरक्षित हो गई हैं, और आरक्षित सीटें सामान्य. इससे कई उम्मीदवारों की रणनीतियां पलट गई हैं.
बीजेपी और कांग्रेस दोनों के दफ्तरों में सुबह से देर रात तक चहल-पहल बनी रहती है. टिकट पाने की होड़ में लोग अपने-अपने तरीके आजमा रहे हैं. कई ऐसे दावेदार हैं, जिन्होंने जीवन में कभी पार्टी के लिए काम नहीं किया, लेकिन अब अचानक अपने को "आजन्म कांग्रेसी" या "भाजपाई" बताते हुए टिकट के लिए सिफारिशें कर रहे हैं.
इस बार का निकाय चुनाव कई दिलचस्प घटनाओं का गवाह बन रहा है. ऐसा ही एक किस्सा तब हुआ जब एक दावेदार, जो पहले अपने लिए टिकट मांगने आए थे, आरक्षण बदलने के बाद अपनी पत्नी को मैदान में उतारने का फैसला कर बैठे. पत्नी, जो शायद पहली बार ऐसी किसी राजनीतिक हलचल का हिस्सा बनीं, परेशान दिखीं. दावेदार अपनी पत्नी को लेकर सीधे पार्टी दफ्तर पहुंच गए. जब उनसे नगर पंचायत या नगर पालिका की जानकारी मांगी गई, तो पत्नी कन्फ्यूज हो गईं. उन्होंने झिझकते हुए अध्यक्ष से कहा, "सर, दोनों में से किसी एक का टिकट दे दीजिए." इस जवाब पर पूरे दफ्तर में हंसी का माहौल बन गया.
कई दावेदार ऐसे भी हैं, जो अपनी पूरी ताकत और जुबान में मिठास घोलकर दफ्तर में टिकट की पैरवी कर रहे हैं. इनमें से कई खुद को पार्टी का निष्ठावान कार्यकर्ता बताते हुए टिकट मांग रहे हैं. एक दावेदार ने जब यह दावा किया कि वे 20 साल से पार्टी के लिए काम कर रहे हैं, तो जिलाध्यक्ष ने चुटकी लेते हुए पूछा, "भाई, आप कौन से जिले के हैं?" इस पर दावेदार ने बड़ी चतुराई से जवाब दिया, "सर, जहां से टिकट मिलेगा, वहीं का हूं."
नगर पंचायत और नगर पालिका के इन चुनावों में कई ऐसे चेहरे भी मैदान में उतर रहे हैं, जिनका राजनीति से कभी कोई लेना-देना नहीं रहा. लेकिन आरक्षण बदलने के बाद अचानक दावेदारी करने वालों की संख्या बढ़ गई है. इनमें से कई ऐसे हैं, जिन्होंने पैसा तो खूब कमाया, लेकिन राजनीति में अनुभव के नाम पर उनके पास सिर्फ जुबानी दावे हैं. एक दावेदार को तो यह तक पता नहीं था कि पार्टी का टिकट मांगने के लिए किससे मिलना है. वे दफ्तर के कोने में खड़े होकर यह पता करते रहे कि "कहीं कोई अपना आदमी तो टिकट के लिए बात नहीं कर रहा." जब भरोसा हो गया कि मैदान खाली है, तब वे टिकट मांगने पहुंचे.
पार्टी दफ्तरों के बाहर मेले जैसा माहौल
चुनाव का समय कई लोगों के लिए मौके लेकर आता है. कुछ लोग उम्मीदवारों की पैरवी करने के नाम पर अपना रुतबा दिखाने में लगे हैं. एक व्यक्ति ने अपने दोस्त से वादा किया, "रुक, मैं तुझे अध्यक्ष से मिलवाता हूं." उसे पता था कि टिकट मिलने की संभावना न के बराबर है, लेकिन दोस्त को उम्मीद दिलाने के लिए वह पूरी कोशिश कर रहा था. पार्टी दफ्तरों में यह पूरा माहौल किसी मेले जैसा बन गया है. टिकट के दावेदार, उनके परिवार, और पैरवी करने वाले लोग यहां डेरा जमाए हुए हैं. कोई नेता को गिफ्ट लेकर पहुंच रहा है, तो कोई फोन कॉल्स और सिफारिशों के जरिए अपनी दावेदारी मजबूत करने में जुटा है.
अगले कुछ दिनों तक जारी रहेगी हलचल
चुनावी माहौल में पत्रकारों को भी कई दिलचस्प कहानियां मिल रही हैं. टिकट के लिए हो रही जद्दोजहद के बीच, पुराने और नए चेहरों को करीब से देखने का मौका मिल रहा है. कुछ चेहरे ऐसे हैं, जो लंबे समय से राजनीति में सक्रिय हैं, तो कुछ ऐसे भी हैं, जो पहली बार मैदान में उतर रहे हैं. निकाय चुनाव में टिकट के लिए हो रही इस हलचल का नजारा अगले कुछ दिनों तक जारी रहेगा. जैसे-जैसे नामांकन की अंतिम तारीख नजदीक आ रही है, दावेदारों की भागदौड़ और तेज हो गई है. यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बार कौन से चेहरे मैदान में उतरते हैं और किसकी मेहनत रंग लाती है.
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