Uttarakhand Tunnel Accident: उत्तरकाशी में टनल में फंसे मजदूरों को आज आठवां दिन बीत चुका है, लेकिन अभी तक उनके बाहर निकालने की कोई उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है. रविवार को दिवाली के दिन ये हादसा हुआ था जब टनल धंसने से 41 मजदूर अंदर फंस गए थे. अब तक बड़े-बड़े अधिकारी, केंद्रीय मंत्री वीके सिंह, सीएम पुष्कर सिंह धामी घटनास्थल का दौरा कर चुके हैं. आज केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी भी दौरा करने पहुंचे हैं. अंदर फंसे मजदूरों के परिजनों को अब अपनों की चिंता सताने लगी है.
टनल के बाहर मौजूद अन्य मजूदरों और अंदर फंसे लोगों के परिजनों ने घटनास्थल पर प्रदर्शन भी किया है. मजदूरों की सकुशलता बताने के लिए प्रशासन ने कई फंसे लोगों की उनके परिजनों से बातचीत भी कराई है. पाइप के जरिए अंदर पानी, खाना, ऑक्सीजन तो पहुंचाया जा रहा है, लेकिन फिर भी अंदर फंसे लोगों के लिए खतरा बढ़ता जा रहा है. आपको बताते हैं कि इस रेस्क्यू ऑपरेशन में अब तक क्या-क्या हुआ है और अब क्या हो रहा है.
12 नवंबर को हुआ था हादसा
उत्तरकाशी से दिवाली के दिन ये बुरी खबर आई थी. जब सुबह 5 बजे के आसपास सिल्कयारा सुरंग धंस गई थी. उस वक्त अंदर मजदूर काम कर रहे थे और सुरंग धंसने से 41 जिंदगियां अंदर ही फंस गईं. उन्हें बचाने के लिए भूवैज्ञानिकों, इंजीनियरों सहित बड़ा बचाव दल जुटा हुआ है. इस रेस्क्यू ऑपरेशन में कई तरह की समस्याएं भी सामने आ रही हैं. जिसे देखते हुए अलग-अलग प्लान पर काम किया जा रहा है.
कहां तक पहुंचा रेस्क्यू ऑपरेशन
बचाव अभियान के दौरान शनिवार की दोपहर एक तेज आवाज के बाद बचावकर्मियों के लिए आगे की राह और भी कठिन हो गई थी, इसके बाद ड्रिलिंग रोका गया था. अधिकारियों ने शनिवार को पहाड़ी की चोटी से वर्टिकल ड्रिल करने की तैयारी शुरू कर दी और उम्मीद जताई कि निर्माणाधीन सुरंग के लिए वैकल्पिक रास्ता बनाने के लिए सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) की ओर से काम रविवार तक हो जाएगा.
मौके पर मौजूद एक अधिकारी ने कहा कि उम्मीद है कि बीआरओ द्वारा बनाया जा रहा रास्ता दोपहर तक तैयार हो जाएगा जिससे सुरंग के ऊपर चिह्नित बिंदु तक मशीनें पहुंचाने के बाद 'लंबवत ड्रिलिंग' शुरू की जा सके. अब तक 24 मीटर अंदर तक पहुंच गए हैं.
ऑस्ट्रेलिया, थाईलैंड और नॉर्वे से ली मदद
इस बीच, मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, माइक्रो टनलिंग विशेषज्ञ क्रिस कूपर बचाव प्रयासों में सहायता के लिए शनिवार को सुरंग ढहने वाली जगह पर पहुंच गए हैं. ऑस्ट्रेलिया के इंजीनियर, क्रिस अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख सिविल इंजीनियरिंग बुनियादी ढांचे, मेट्रो सुरंगों, रेलवे और खनन परियोजनाओं को पूरा करने के लिए जाने जाते हैं. इसके इलावा थाईलैंड और नॉर्वे के विशेषज्ञों की मदद भी ली जा रही है.
तीनतरफा लड़ाई लड़ रहे बचावकर्मी
बचावकर्मी मुख्य रूप से तीनतरफा लड़ाई लड़ रहे हैं- पहला सुरंग के अंदर फंसे मजदूरों को ऑक्सीजन, भोजन, बिजली और पानी की निरंतर आपूर्ति के माध्यम से जीवित रखना, दूसरा उनकी सुरक्षित निकासी सुनिश्चित करने के लिए ऑपरेशन जारी रखना और सबसे महत्वपूर्ण बात, भारी उपकरणों के उपयोग के कारण निर्माणाधीन सुरंग के किसी अन्य हिस्से के ढहने की किसी भी संभावना से बचना. क्योंकि अगर सुरंग में और धंसाव हुआ तो मजदूरों की जान को खतरा हो सकता है.
भारतीय वायु सेना ने पहुंचाई मशीन
पहले हल्की मशीन से सफलता न मिलने पर फिर भारतीय वायु सेना ने बुधवार दोपहर को एक उन्नत और उच्च क्षमता वाली अमेरिकी ऑगर ड्रिलिंग मशीन को एयरलिफ्ट कर मौके पर पहुंचाया था. मशीन के विभिन्न हिस्सों को तीन खेपों में पैक किया गया था. इसलिए, बुधवार और गुरुवार की मध्यरात्रि को भागों को जोड़ने के बाद नई बरमा मशीन को कार्यात्मक बनाने में समय लगा. इसके अलावा नई मशीन लगाने के लिए प्लेटफार्म की भी जरूरत थी.
इसके बाद एक अतिरिक्त अर्थ ऑगर मशीन, जिसे शुक्रवार को इंदौर से देहरादून के जॉली ग्रांट हवाई अड्डे पर ले जाया गया था, शनिवार की सुबह सड़क मार्ग से दुर्घटनास्थल पर लाई गई थी. शनिवार को मौके पर पहुंचे प्रधानमंत्री कार्यालय के कई अधिकारी और देश-विदेश के विशेषज्ञ फंसे श्रमिकों को सकुशल बाहर निकाले जाने के लिए चलाए जा रहे बचाव कार्यों की निगरानी के लिए सिलक्यारा में डटे हुए हैं.
पिछले एक सप्ताह से अमल में लाई जा रही योजनाओं के इच्छित परिणाम न मिलने के बाद शनिवार को प्रधानमंत्री कार्यालय में उपसचिव मंगेश घिल्डियाल और प्रधानमंत्री के पूर्व सलाहकार भास्कर खुल्बे सहित वरिष्ठ अधिकारियों और विशेषज्ञों ने पांच योजनाओं पर एक साथ काम करने का निर्णय लिया था.
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