देहरादून, एबीपी गंगा। पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में भाजपा इस बार भी भाजपा क्लीन स्वीप करती दिख रही है। साल 2014 की तरह उत्तराखंड में इस बार भी मोदी मैजिक बरकरार है। अभी तक के रुझानों के मुताबिक, भाजपा सभी पांच सीटों पर बढ़त बनाए हुए हैं। वहीं, कांग्रेस अभी तक अपना खाता भी नहीं खोल पाई है। आइये आपको बताते हैं कि इस बार के चुनाव में भाजपा और कांग्रेस ने किस-किस उम्मीदवार को मैदान में उतारा था।
अल्मोड़ा
बीता लाकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे अजय टम्टा पर भाजपा ने फिर दांव लगाया था। 2014 के चुनाव में उन्हें करीब साढ़े तीन लाख वोट मिले थे। उन्होंने कांग्रेस के प्रदीप टम्टा को हराया था। इस बार भी अजय टम्टा का मुकाबला कांग्रेस के प्रदीप टम्टा के साथ था। 2009 में भी लड़ाई टम्टा VS टम्टा की थी। इस चुनाव में कांग्रेस के टम्टा ने भाजपा के टम्टा को मात दी थी। जिसका बदला अजय टम्टा ने अगले लोकसभा चुनाव में लिया।
हरिद्वार
2004 में इस सीट पर समाजवादी पार्टी के राजेंद्र कुमार बाडी सांसद चुने गए। 2009 के चुनाव में हरिद्वार ने राजनीतिक अज्ञातवास काट रहे कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीश रावत को संजीवनी दी और उन्हें यहां की जनता ने चुनाव जिता दिया, इसके बाद वह केंद्र में पहली बार मंत्री बने और फिर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी बनाये गए। हालांकि, 2014 के चुनाव में उनकी पत्नी रेणुका रावत, मोदी लहर की सुनामी में बह गयी और जनता ने भाजपा के डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक को चुना। इस बार भी निशंक भाजपा की टिकट पर चुनावी मैदान में थे, जबकि कांग्रेस से अंबरीश कुमार पर दांव लगाया।
नैनीताल
कांग्रेस की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को नैनीताल से टिकट दिए जाने के बाद यह हॉट सीट बन गई थी। हरीश रावत के सामने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट मैदान में थे। बतादें कि भट्ट पहली बार लोकसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे थे।
गढ़वाल
1991 से अब तक भाजपा के टिकट पर जीतते (2009 को छोड़कर) आ रहे जनरल खंडूड़ी ने चुनाव लड़ने से पहले ही मना कर दिया था, लेकिन कांग्रेस ने उनके बेटे मनीष खंडूड़ी को अपने पाले में कर यहां से चुनाव लड़ाया। वहीं भाजपा के कद्दावर नेता तीरथ सिंह रावत यहां से चुनावी मैदान में कूदे।
टिहरी
टिहरी सीट पर इस बार भी भारतीय जनता पार्टी के साथ ही टिहरी राजपरिवार की इज्जत भी दांव पर लगी हुई थी। पार्टी ने फिर से माला राज्यलक्ष्मी शाह पर दांव लगाया। वहीं कांग्रेस ने प्रीतम सिंह को मैदान में उतारा। हालांकि, फिर भी जीत माला राज्यलक्ष्मी की हुई।