Uttarkashi: उत्तरकाशी के इस गांव के लोग सड़क को तरसे, जान खतरे में डालकर जंगलों से स्कूल जाते हैं मासूम
Uttarkashi News: गांव की छात्राओं को कहना है कि उन्हें स्कूल आने-जाने के लिए रोजाना 16 किमी पैदल चलना पड़ता है. रास्ते में बहुत तकलीफें होती है, कई बार बच्चों का जंगली जानवरों से सामना हो जाता है.
Uttarakhand News: उत्तरकाशी (Uttarkashi) जनपद के सीमांत भटवाड़ी विकास खंड के स्याबा गांव (Syaba Village) के लोग सड़क की मांग को लेकर बेहद परेशान है. इस गांव में 500 से ज्यादा परिवार रहते हैं लेकिन सड़क नहीं होने की वजह से यहां के बच्चों को 8 किलोमीटर जंगल के रास्ते से हर दिन सुबह-शाम गुजरना पड़ता है. एबीपी गंगा की टीम जब गांव के नजदीक पहुंची तो बच्चों के आंखों में सड़क को लेकर आंसू झलक पड़े. यहां केवल डेढ़ किलोमीटर सड़क कटनी है लेकिन उस पर काम नहीं हो पा रहे हैं.
सड़क की मांग को लेकर ग्रामीण नाराज
स्याबा गांव के लोग सालों से यहां पर सड़क बनाने की मांग कर रहे हैं. इस गांव में सड़क केवल डेढ किलोमीटर तक कटनी है जबकि 6 किमी सड़क पहले ही प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत कट चुकी हैं. ऐसे में स्कूली बच्चों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ता है. इस गांव में रहने वाले बच्चों को 8 किमी घने जंगल के बीच से दूरी तय कर राइंका मनेरी तक पहुंचना पड़ता है. कई बार तो दैवीय आपदा और जंगली जानवरों से सामना भी हो जाता है. यही नहीं इतना लंबा रास्ता होने की वजह से कई बार ये समय से स्कूल भी नहीं पहुंच पाते हैं. स्कूल और सड़क तक पहुंचने का रास्ता बेहद विकट है, जिस कारण गांव की कई बेटियां आठवीं से आगे नहीं पा रहीं हैं.
ग्रामीणों का कहना है कि स्याबा सड़क के निर्माण पर जो रोक लगी है, वह तत्काल हटनी चाहिए. लोंथरू बयाणा से स्याबा के लिए सड़क स्वीकृत है. सड़क कटिंग का काफी कार्य भी हुआ है. इसी स्थान से गांव को जोड़ने के लिए सड़क बननी जरूरी है. इको सेंसिटिव निगरानी समिति के सम्मुख इन सभी बातों को रखा गया है.
स्कूली छात्रों ने बयां किया दर्द
एबीपी गंगा ने जब स्कूल जाने वाले छात्रों से बात की तो उन्होंने कहा कि हमें स्कूल आने-जाने के लिए रोजाना करीब 16 किमी पैदल चलना पड़ता है. रास्ते में बहुत तकलीफें होती है हमारे साथ छोटे बच्चे भी स्कूल जाते हैं, कभी भालू मिलता है तो कभी बाघ भी मिल जाता है. जंगली जानवरों का खतरा बना हुआ है. सरकार कहती है बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ, लेकिन बेटी कहां से पढ़ेंगी जब स्कूल जाने के लिए गांव से सड़क भी नहीं होगी.
जिला पंचायत सदस्य चंदन पंवार ने बताया कि 2018-19 में स्याबा की रोड़ स्वीकृत हुई थी और साल 2019-20 में इसमें काम शुरू हुआ, गांव से कुछ ही दूरी तक रोड़ पहुंच पाई. थोड़ा काम बाकी है. 2021 में जब तक सड़क गांव के पास तक पहुंची तब तक केन्द्र से कार्यदायी संस्था और डीएम साहब को पत्र पहुंचा और इस काम को रुकवा दिया गया. उन्होंने कहा कि मैं पर्यावरणविदों से सिर्फ ये पूछना चाहता हूं कि अब जब यहां पेड़ नहीं कटने है और सड़क गांव तक पहुंच ही गई है तो इसे रोका क्यों जा रहा है.
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