Harshil Valley: रसीले सेबों के लिए प्रसिद्ध उत्तरकाशी की हर्षिल घाटी में अब सेब के साथ केसर का उत्पादन भी किया जा रहा है. सालों से सेब, राजमा का उत्पादन कर रहे उपला टकनोर के काश्तकार अब उद्यान विभाग की मदद से केसर पर हाथ आजमा रहे हैं. उद्यान विभाग ने जनपद में तीन दर्जन से अधिक लोगों को केसर की खेती करने के लिये प्रेरित किया गया है. जिसका परिणाम भी अच्छा आ रहा है. कश्मीर, हिमाचल के बाद अब उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में भी केसर के उत्पादन पर काम किया जा रहा है.


अच्छे आ रहे हैं परिणाम


आपको बता दें कि केसर का उत्पादन 6 हजार फीट से ऊपर वाले इलाकों में होता है. जिसमें फ्लॉवरिंग के लिए 11 से 17 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है. हर्षिल घाटी के उपला टकनोर क्षेत्र के हर्षिल, मुखबा, बागोरी, सुक्खी, झाला और धराली में केसर उत्पादन का प्रयोग किया गया था.


उद्यान विभाग उत्तरकाशी ने 400 किलो बल्ब (कंद-केसर के बीज) क्षेत्र के 39 काश्तकारों दिए गए थे. जिन्होंने सेब के साथ-साथ अपने बगीचे में लगाए. जिसमें 450 ग्राम केसर निकला है. कास्तकारों का कहना है कि उद्यान विभाग की ओर से क्षेत्र में केसर के बल्ब दिए गए थे जो हमने लगाए थे, जिसका परिणाम बहुत बढ़िया है. हमने आगे भी केसर की डिमांड उद्यान विभाग से की है.


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कफ्नोल में केसर के लिए वातावरण अनुकूल


वहीं उत्तरकाशी के नौगांव ब्लॉक के कफ्नोल गांव के प्रभाकर भी केसर पर काम कर रहे हैं. प्रभाकर ने बताया कि उन्होंने 2017 में कश्मीर के पम्बर से 15-16 लाख रुपए के 88 हजार बल्ब (केसर के बीज) लाये थे. जिसको उन्होंने गांव में लीज पर लिए खतों में लगाए. 5 साल मेहनत करने के बाद अब तक उनकी लागत निकल चुकी है. प्रभाकर अब साल का 12 से 15 लाख रुपए केसर और बल्ब बेचकर कमा रहे हैं. प्रभाकर बताते हैं कि कफ्नोल गांव में भी केसर उत्पादन के लिए अनुकूल वातावरण है.


सहायक उद्यान अधिकारी ने दी जानकारी


सहायक उद्यान अधिकारी उत्तरकाशी एनके सिंह ने बताया कि केसर के लिए उत्तरकाशी के हर्षिल में प्रयोग किया था जो काफी हद तक सफल है. केसर उत्पादन के लिए 6 हजार फीट की ऊंचाई वाली जगह अनुकूल है. तापमान 11 डिग्री से कम और 17 डिग्री से ज्यादा नहीं होना चाहिए. तापमान कम होने पर केसर की कली नहीं खिलती है और ज्यादा होने पर स्टिग्मा (इस्त्री केसर) ड्राय हो जाते हैं.


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