Uttarkashi Tunnel History: उत्तरकाशी में बन रही सिलक्यारा टनल के अंदर बीते 16 दिनों से 41 जिंदगियां मदद के इंतजार में हैं. इन्हें बचाने के लिए युद्धस्तर पर रेस्क्यू ऑपरेशन चल रहा है तो वहीं देशभर में दुआएं भी हो रही हैं. पीएम मोदी लगभग हर रोज बचाव अभियान की जानकारी ले रहे हैं तो राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी हर दिन घटनास्थल पर जायजा लेने जाते हैं. पूरे देश की निगाहें इस ऑपरेशन पर टिकी हुई हैं कि आखिर कब ये 41 श्रमिक इस अंधेरी गुफा से बाहर आएंगे. इस बीच आपको इस टनल का इतिहास बताते हैं जोकि कई दशक पुराना है.  


दरअसल, इस जगह पर पहले भी टनल बनाने की कोशिश की गई थी. लगभग 60 साल पहले इस टनल का सर्वे किया गया था, लेकिन बाद में इसका काम शुरू नहीं हो पाया. ये किन कारणों से शुरू नहीं हो पाया ये तो मालूम नहीं है, लेकिन आज से तकरीबन 60 साल पहले भी उत्तरकाशी में टनल बनाने की कोशिश की गई थी. 


इस वजह से पहले रोका गया था काम?


स्थानीय लोगों की मानें तो 60 साल पहले इस जगह पर टनल बनाने का सर्वे किया गया था, लेकिन पानी का स्रोत मिलने के कारण इसका काम आगे नहीं बढ़ पाया था. उसके बाद यमुनोत्री के लिए रास्ता बनाया गया था. हालांकि एबीपी लाइव इस बात की पुष्टि नहीं करता. अब इस घटना से दो बातें निकाल कर सामने आई हैं कि यह टनल क्यों धंसी होगी. पहली बात इस इलाके से फॉल्ट लाइन का गुजरना, दूसरा टनल के ऊपर पहाड़ पर गंगा यमुना का कैचमेट एरिया होना.  


पहाड़ों के अंदर पानी का स्रोत मिलना आम बात


उत्तराखंड के पहाड़ छोटे-छोटे पत्थरों से, मिट्टी से जुड़कर बने हैं. यहां के पहाड़ इतने मजबूत नहीं हैं. दूसरी बात यहां पानी के स्रोत मिलना पहाड़ों के अंदर आम बात है इसलिए हाथ से यहां के पहाड़ों पर खुदाई के काम होने से कई जगहों पर परेशानी का सबब बनता है. ऐसा ही कुछ तपोवन प्रोजेक्ट में 2009 में हुआ था. उत्तराखंड में काम करने वाले लोगों को यह दोनों बातें मालूम होती हैं, लेकिन फिर भी इस प्रकार का हादसा होना अपने आप में सवाल खड़ा करता है. 


टनल बनाने की क्या जरूरत?


राष्ट्रीय राज्य मार्ग और सड़क परिवहन मंत्रालय के सचिव ने 19 नवंबर को कहा था कि उत्तरकाशी के टनल में कमजोर हिस्से में साढ़े चार साल से काम बंद था वहां होने वाली हर हलचल को नापने के बाद ही दोबारा काम शुरू किया गया था. लेकिन सबसे बड़ी बात है जिन पहाड़ों में इस प्रकार की परेशानियां सामने आ रही हैं वहां पर टनल बनाने की क्या जरूरत आन पड़ी. 


सबसे पहले पहाड़ों का निरीक्षण होना और जांच करना बेहद जरूरी है. उसके बाद ही इस प्रकार के काम को शुरू किया जाना चाहिए, लेकिन बिना सोचे समझे सुरक्षा व्यवस्था के इंतजामों के बगैर जिस प्रकार से ये काम शुरू किए गए उससे आज इतनी बड़ी परेशानी सामने खड़ी हुई है.  


उत्तरकाशी के सिलक्यारा में फंसे 41 मजदूरों को निकालने के लिए पुरजोर कोशिश की जा रही है, लेकिन अभी तक कोई सफलता हाथ नहीं लग पाई है. इसके चलते अब केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने देश में बन रही कई टनल का सेफ्टी रिव्यू करने का फैसला लिया है, लेकिन एक सवाल अभी भी जस का तस है कि ये टनल आखिर धंसी कैसी, कहां चूक हुई, क्या कमी रही होगी. 


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