Uttarkashi Tunnel Rescue Operation: 'मां को मत बताना, वो चिंता करेगी..', ये वो शब्द है जो पिछले सात दिनों से सुरंग में फंसे पुष्कर ने अपनी भाई से बेहद कमजोर हो चुकी आवाज में कहे. पुष्कर उन चालीस मजदूरों में से एक है जो पिछले सात दिन से इस टनल में फंसे हुए हैं. कई दिन हो जाने की वजह से अब इनकी तबीयत भी बिगड़ने लगी है. उनका हौसला बना रहे, इसके लिए लगातार उनसे संपर्क किया जा रहा है. परिजनों से भी बात कराई जा रही है. 


उत्तरकाशी की सिलक्यारा सुरंग में फंसे मजदूरों के रेस्क्यू ऑपरेशन का आज सातवां दिन हैं. इस बीच लगातार ऑगर मशीन के जरिए ड्रिलिंग कर मजदूरों को बाहर निकालने के लिए युद्ध स्तर पर कोशिशें की जा रही है. वहीं मजदूरों से भी लगातार बातचीत की जा रही है. इस कड़ी में चंपावत जिले के छन्नी गोठ गांव के रहने वाले पुष्कर से उसके भाई विक्रम की बात कराई तो उसे खुद से ज्यादा अपनी मां की  चिंता थी. 


सुरंग में फंसे मजदूर ने कही ये बात
सुरंग में फंसे मजदूरों से संपर्क करने के लिए पाइप डाला गया है. जिसके जरिए उन तक खाना-पानी और ऑक्सीजन पहुंचाई जा रही है. इसी पाइप के जरिए उनके संपर्क भी किया जा रहा है. विक्रम ने जब अपने भाई पुष्कर से बात की तो वो बेहद कमजोर सुनाई दे रहा था, उसकी आवाज भी ठीक से नहीं निकल रही थी, बावजूद इसके उसे मां की चिंता हो रही थी. पुष्कर ने विक्रम से कहा, "भाई, मां को मत बताना कि मैं यहां सुरंग में फंसा हुआ हूं. उसने कहा कि मैं ठीक हूं.. यहां और भी मजदूर फंसे हुए हैं. अगर तुम मां को बताओंगे कि मैं यहां फंसा हूं तो वो चिंता करेगी." 


हालत देख रो पड़ा भाई
विक्रम ने कहा कि पुष्कर घर में सबसे छोटा है और वो मां को बहुत ज्यादा प्यार करता है. जब मुझे इस हादसे के बारे में पता चला तो मैं बिना माता-पिता को बताए घर से यहां आ गया, लेकिन हमारे पड़ोसियों ने उन्हें इस हादसे के बारे में बता दिया है. उनका भी रो-रोकर बुरा हाल है. वो इस गम से सदमे में हैं. विक्रम ने कहा, मैंने भाई को ये नहीं बताया है कि मां को इस बारे में पता है और वो कितनी परेशान है. भाई का जिक्र कर विक्रम भी फफक-फफककर रो पड़ा.


आपको बता दें 12 नवंबर दिवाली की सुबह उत्तरकाशी में ऑल वेदर परियोजना के तहत बन रही सिल्क्यारा सुरंग धंस गई थी, जिसमें चालीस मजदूर फंस गए हैं. इनके रेस्क्यू ऑपरेशन का आज सातवां दिन हैं. इस बीच ऑगर मशीन के जरिए रास्ता बनाने की कोशिश की जी रही हैं. इंदौर से भी एक मशीन मंगाई गई है. मजदूरों से भी लगातार बातचीत की जा रही है. हर कोई बस यहीं जानना चाहता है कि उन्हें निकालने में अभी कितना और समय लगेगा.


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