Uttarkashi Tunnel Rescue: उत्तराखंड के उत्तरकाशी में सिलक्यारा सुरंग से सुरक्षित बचाए गए 41 श्रमिकों में से एक श्रमिक ने पूरे घटनाक्रम के बारे में बताया है. यूपी के श्रावस्ती जिले के मोतीपुर कला गांव के रहने वाले अंकित कुमार ने एबीपी न्यूज़ से एक्सक्लूसिव बातचीत में हादसे के दिन से लेकर बचाने तक के बारे में हर पल को बयां किया. उन्होंने बताया जब हादसा हुआ था तो तब वो किस जगह पर थे, कैसे उन्होंने बाहर सिग्नल भेजा, किस तरह से सुरंग के अंदर 17 दिनों तक गुजारा किया. 


हादसा होने पर कैसे बचाई जान?


'श्रमवीर' अंकित कुमार ने उस दिन को याद करते हुए बताया कि सुबह करीब 5 से 5.30 बजे के आसपास बहुत तेज आवाज आई जैसे कोई धमाका हुआ हो. उस वक्त हम सभी लोग सुरंग के अंदर काम कर रहे थे. तेज आवाज सुनकर सभी लोग घबरा गए. फिर एक श्रमिक भागते हुए आया और उसने बताया कि सिलक्यारा की तरफ भूस्खलन हो गया है. इसके बाद हम सब ने मलबे के पास जाने की कोशिश की. वहां लगातार ऊपर से मिट्टी, पत्थर गिर रहे थे, इसलिए हम वहां से दूर हट गए. 


सुरंग के अंदर से संपर्क कैसे किया? 


अंकित ने बताया कि भूस्खलन के बाद हम सब ने एक-दूसरे से पूछा कि किसी के पास कोई वायरलैस डिवाइस या कुछ है जिससे बाहर बात कर सकें, लेकिन ऐसा कुछ नहीं मिला. हम लोगों के पास फोन थे पर वहां नेटवर्क नहीं आ रहे थे. करीब 10 घंटे के बाद हम लोगों ने अंदर से एक पाइप के जरिए बाहर सिग्नल भेजा. ये पाइप अंदर से बाहर पानी निकालने के लिए लगा हुआ था. इसी पाइप के जरिए हमने पानी के मोटर से बाहर के लोगों को बताया कि हम जिंदा हैं. अंकित ने ये भी बताया कि हमने इसी पाइप से एक चिट्ठी भी भेजी थी जिसपर लिखा था कि हम लोग जिंदा हैं, हमें बचा लो. 


कब और कैसे मिली मदद?


यूपी के रहने वाले अंकित ने बताया कि हम लोगों के पास खाने पीने के लिए ज्यादा सामान नहीं था. जब ये सामान खत्म हो गया तो हमने पहाड़ से टपक रहे पानी से काम चलाया. जब बाहर हमारा मैसेज पहुंच गया था तो इसी पाइप के जरिए अंदर खाने-पीने की चीजें और ऑक्सीजन भेजी गई. शुरू में खाने में ड्राई चीजें भेजी गईं. जब 6 इंच का पाइप अंदर पहुंचा तो फिर हम लोगों को खिचड़ी और फल भी मिल गए थे. उन्होंने कहा कि हम लोगों के पास अंदर गर्म कपड़े थे और सब लोगों ने अपने-अपने मोबाइल की बैटरी बचाने की पूरी कोशिश की थी.  


17 दिनों तक अंदर क्या किया? 


दिवाली के दिन 12 नवंबर को ये हादसा हुआ था. तब से 17 दिनों तक श्रमिक सुरंग के अंदर फंसे रहे. अंकित ने बताया कि अंदर करने को तो ज्यादा कुछ नहीं था. हम लोगों थोड़ा घूम लिया करते थे. अंदर रहने के लिए काफी जगह थी. मनोरंजन के लिए हम लोग अंदर कुछ खेल खेल लिया करते थे. जैसे कि राजा रानी की पर्ची वाला खेल आदि.  


"एक दूसरे को लगातार किया मोटिवेट"


अंकित ने बताया कि अपना मनोबल बनाए रखने के लिए हम लोग योग करते थे और सुरंग में चहलकदमी करते थे. हम एक दूसरे को लगातार मोटिवेट करते रहते थे कि हम जरूर बच जाएंगे, घबराने की कोई बात नहीं है. हमने कभी उम्मीद नहीं छोड़ी थी. शुरूआती कुछ घंटे मुश्किल के थे, लेकिन जब बाहर से लोगों के साथ संपर्क हुआ तो फिर धीरे-धीरे सब सामान्य हो गया. 


"बचाव अभियान को लेकर अपडेट मिलती रही"


मंगलवार को सभी श्रमिकों को सकुशल सुरंग से बाहर निकाला गया है. रेस्क्यू ऑपरेशन को लेकर अंकित ने बताया कि जब बाहर से बातचीत होनी शुरू हो गई थी तो उसके बाद हमें लगातार बचाव अभियान को लेकर अपडेट मिलती रही. हम लोग बिल्कुल नहीं घबराए. फिर मंगलवार को एनडीआरएफ के जवान अंदर आए और उन्हें देखकर हम लोग खुश हो गए. हम लोगों को एक-एक करके पाइप के जरिए बाहर लाया गया और एंबुलेंस से चिन्यालीसौड़ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया. यहां हम सब लोग ठीक हैं और जल्द ही घर जाएंगे.


उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले के छह मजदूर सुरंग में फंसे थे. सभी के सुरक्षित बाहर आने की खबर सुनकर ग्रामीण झूम उठे और उसी समय से गांव में शुरू हुआ जश्न बुधवार तक जारी रहा. उत्तरकाशी से 800 किलोमीटर दूर नेपाल सीमा पर मौजूद श्रावस्ती के मोतीपुर कला गांव में सत्रह दिनों से आशा और निराशा के माहौल से टूट से चुके श्रमिकों के परिजन टीवी और सोशल मीडिया पर लगातार सकारात्मक संकेतों के आधार पर अच्छे परिणाम की उम्मीद लगाए थे. मंगलवार को ऑपरेशन पूरा होने पर सब ने दिवाली मनाई. 


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