उत्तराखंड की इस दंगल गर्ल का किस्सा सुनकर हैरान रह जाएंगे आप, लड़कों को दी थी चुनौती, बुलानी पड़ी थी पुलिस
उत्तराखंड की सलोनी दंगल में बैखौफ उतरती हैं. हिंदी फिल्म 'दंगल' में फोगाट बहनों की कहानी देखने के बाद सलोनी ने तय किया कि उन्हें भी देश का नाम रोशन करना है.
काशीपुर. एक लड़की को कुश्ती लड़ते आपने आमिर खान की फिल्म 'दंगल' में ही देखा होगा. बहुत से लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने इस फिल्म में ही लड़की को दंगल लड़ते देखा. इस फिल्म के चर्चे भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में हुये. दंगल ने कई रिकार्ड भी अपने नाम किये. कुश्ती भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी लोकप्रिय है, जो परंपरागत रूप से पुरुषों का खेल रहा है. लेकिन पिछले कुछ सालों से इस खेल में लड़कियां भी रुचि दिखा रही हैं. ऐसी ही लड़कियों में हैं उत्तराखंड के काशीपुर के एक छोटे से गांव गिन्नीखेड़ा की सलोनी. लेकिन उनकी ख़ासियत यह है कि वो अखाड़े में लड़कों को चुनौती देती हैं.
वर्ष 2016 में दंगल में उतरी थी सलोनी
काशीपुर के गिन्नी खेड़ा गांव के रोशन लाल कभी क्षेत्र के जाने माने पहलवान थे. उनकी विरासत को पुत्र सतीश व रणजीत ने संभाला. सतीश की दो पुत्री व एक पुत्र में सबसे बड़ी सलोनी ने जब फिल्म दंगल में फोगाट बहनों को कुश्ती लड़ते देखा तो पिता सतीश से पहलवान बनने की इच्छा जाहिर की. पिता ने भी बेटी की भावनाओं को समझते हुए हामी भरी और खुद गुरु बनकर शिक्षा देनी शुरू कर दी. वर्ष 2016 से शुरू हुआ यह सफर आज भी जारी है.
लड़के से दंगल लड़ा तो बुलानी पड़ी पुलिस
सलोनी बताती है कि जब वह पिता व चाचा के साथ जसपुर में एक दंगल प्रतियोगिता देखने गई तो वहां उनके वजन वर्ग से ज्यादा एक पहलवान लड़के ने उन्हें चुनौती दी. एक दो बार मना करने के बाद पिता ने सलोनी को अखाड़े में उतर कर युवक को पटखनी देने को कहा. अखाड़े में जैसे ही सलोनी उस युवक के सामने उतरी तो भारी भीड़ जमा हो गई. जिस पर आयोजकों को पुलिस बुलानी पड़ी. वही सलोनी ने उस पहलवान को कुश्ती में चित्त कर जमकर वाही वाही बटोरी.
कई राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता जीत चुकी है सलोनी
18 साल की सलोनी अब तक तीन बार नेशनल जूनियर चैम्पियनशिप में पदक जीत चुकी हैं. आसपास के क्षेत्र में होने वाले दंगलों में वह बढ़ चढ़कर भाग लेती हैं. आज पूरे क्षेत्र में वह दंगल गर्ल के रूप में अपनी पहचान बना चुकी हैं. सलोनी का सपना है कि वह भी फोगाट बहनों की तरह देश के लिए पदक जीतें और देश का व पिता का नाम रोशन करें.
बिना सरकारी मदद के बढ़ रहे कदम
अभाव, संघर्ष और तानों के बीच भी सलोनी अपने गांव, शहर और राज्य और देश का नाम रोशन कर रही हैं. पिता सतीश मजदूरी करते हैं. वह भी चाहते हैं कि उनकी बेटी एक दिन देश का नाम रोशन करे. इसके लिए वह उसके लिए कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ते हैं. वह कहते हैं कि यदि सरकार मदद करे तो यह प्रतिभाएं बहुत कुछ कर सकती है.
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