देहरादून: सत्ता भी अनसुलझी पहेली है. कभी गुड़ से मीठी तो कभी नीम से भी कड़वी. उत्तराखंड में पिछले चार वर्षों का भी समय था जब आरएसएस के पदाधिकारी त्रिवेंद्र सरकार में खुद को उपेक्षित महसूस करते थे, इस उपेक्षा को लेकर समय-समय पर उनका दर्द भी छलका. और आज का भी समय है जब मुख्यमंत्री सचिवालय से लेकर अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग में संघ के पदाधिकारियों के दखल का स्पष्ट आभास हो रहा है.
पिछली सरकार में हर तीन महीने पर होने वाली सरकार और संघ के बीच की समन्वय बैठक में संघ के लोगों को मुंह फुलाये बैठे देखा गया, लेकिन एक समय अब है जब संघ के बड़े ओहदेदार सप्ताह में दो बार मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत से मिलने न केवल सेफ हाउस जाते हैं बल्कि भोजन चाय पानी पर जी भरकर बातें हो रही है.
दरअसल, जब 2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री बने तो उनके थोड़े ही दिन बाद यह बात सामने आने लगी थी कि संघ के प्रान्त और क्षेत्र स्तर के पदाधिकारियों की बात नहीं सुनी जा रही है. यहां तक की लम्बी संवादहीनता हो गयी थी और कई मौको पर इस बात को शिद्द्त से महसूस भी किया गया.
सरकार और संघ के बीच की वो खटास तीरथ के मुख्यमंत्री बनते ही खत्म हो गयी. खत्म ही नहीं हुई बल्कि ख़टास का स्थान मधुर मिठास ने ले लिया था. आइये इस बात को विस्तार से समझाते है कि ऐसे कौन से काम हुए हैं जिनसे यह महसूस हो रहा है कि तीरथ सरकार संघ को विशेष तवज्जों दे रही है.
त्रिवेंद्र की कुर्सी गयी तो यह मान लिया गया कि डीएम देहरादून अब गए तब गए. लेकिन पूरी नौकरशाही अब तक हैरत में है कि श्रीवास्तव की क्या जैक हो सकती है. बातें छानकर बाहर आई तो पता चला उन्हें संघ के प्रान्त स्तर के मजबूत पदाधिकारी का आशीर्वाद प्राप्त हो गया है.
इन्हीं पदाधिकारी महोदय ने अभी कई आईएएस आईपीएस को भी आश्वासन दिया है बेहतर पोस्टिंग के लिए. एक आईपीएस को इंटेलीजेंस का हेड बनवाने का भरोसा दिलाया है.
आरबीएस रावत मुख्यमंत्री के सलाहकार
एक सामाजिक संगठन चलाने वाली धार्मिक महिला ने आरएसएस की केंद्रीय टीम के एक प्रभावशाली पदाधिकारी से सिफारिश की तो पूर्व प्रमुख वन संरक्षक आरबीएस रावत मुख्यमंत्री के सलाहकार बन गए. रावत का तीन साल से भी ज्यादा समय का कार्यकाल पीसीसीएफ का उत्तराखंड में रहा है, हालांकि उस समय विभाग में ऐसा कोई कीर्तिमान किसी को याद नहीं है जिसकी छाप अब तक दिखाई पड़ती हो.
रिटायरमेंट के बाद सब ऑर्डिनेट सर्विस कमीशन के चेयरमैन बने लेकिन भर्ती में धांधली का मामला सामने आने से उपजे विवाद के बाद उन्होंने ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था. उस घपले में किसकी क्या भूमिका थी अभी स्पष्ट नहीं हो सका है.
सूत्र बताते है कि इसी मामले में विजिलेंस ने मुकदमा अपराध संख्या 1/2020 दर्ज करके विवेचना शुरू की थी, लेकिन इस जांच का क्या स्टेटस है क्या वाकई आरबीएस रावत इसमें दोषी है, यह बिंदु अभी स्पष्ट नहीं हो सका.
आज ही मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार के पद पर कुमाऊं के वरिष्ठ पत्रकार दिनेश मानसेरा की नियुक्ति हुई है. यह नियुक्ति भी संघ के एक पूर्व क्षेत्र प्रचारक, जो अब संघ की केंद्रीय टीम का हिस्सा है, की पसंद बताई जा रही है.
लोग तर्क भी दे रहे है कि मानसेरा संघ के प्रतिष्ठित समाचार पत्र में एक दशक से भी ज्यादा समय तक पत्रकार रहे हैं, हालांकि उन्होंने एक ऐसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हाउस में भी बतौर पत्रकार काम किया जो भाजपा की नापसंद है.
सत्ता बदलते ही संघ की शरण पहुंचे थे कई नौकरशाह
जब तीरथ रावत मुख्यमंत्री बने तो टॉप ब्यूरोक्रेट्स अपनी कुर्सी बचने के लिए दिल्ली में संघ कार्यालय के के चक्कर काटते देखे गए. ये वो ब्यूरोक्रेट्स हैं जो त्रिवेंद्र सरकार में भी खूब पावरफुल थे और उन्हें सरकार बदलने पर अपनी कुर्शी जाने का भय था. इनमें आईएएस आईपीएस और आईएफएस सभी शामिल थे लेकिन कुछ बड़े नामचीन अफसरो का दिल्ली जाना सबको हैरत में डाल गया था.
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