Varanasi News: अधुनिकता के इस दौर में जहां चमत्कार जैसी बातों पर यकीन नहीं करते है. आईएमएस बीएचयू के दंत चिकित्सा विज्ञान संकाय के चिकित्सक मुंह के कैंसर का इलाज एक ऐसी पद्धति से कर रहे हैं. जिसे सुन और जानकर हर कोई हैरान है कि आखिर ये संभव हो सकता है.
हर हर महादेव
आईएमएस बीएचयू के दंत चिकित्सा विज्ञान संकाय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अखिलेश सिंह ने बताया कि मुंह के कैंसर के मरीजों के चेस्ट से थोड़ा मसल्स काटकर चेहरे में लगा दिया गया था. इसके बाद मरीज के हाथ और कंधों का मूवमेंट बंद हो गया. चिकित्सकों ने मुंह के कैंसर के मरीजों का इलाज नई विधि से कर रहे हैं. सर्जरी के बाद मरीजों का दोनों हाथ उठवाकर हर हर महादेव बुलवाया जा रहा है. करीब दो महीने में ऐसा करने से मरीजों को राहत मिल रही है.
हर-हर महादेव बने सहारा
दंत चिकित्सा विज्ञान संकाय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अखिलेश सिंह ने बताया कि मुंह के कैंसर के मरीजों के चेस्ट से थोड़ा मसल्स काटकर चेहरे में लगा दिया गया था. इसके बाद मरीज के हाथ और कंधों का मूवमेंट बंद हो गया. इसके बाद हर हर महादेव का उदघोष करना मरीजों ने शुरू किया तो धीरे धीरे राहत होने लगी. करीब 300 से अधिक मरीजों पर इसका परीक्षण किया गया. इसमें 80 फीसदी से को फायदा मिला. संकाय प्रमुख प्रो. एचसी बरनवाल ने कहा कि पहली बार मेडिकल साइंस में हर-हर महादेव को थेरेपी के रूप में दुनिया भर में स्वीकारा गया है.
300 मरीजों की 100% रिकवरी
चिकित्सकों के अनुसार 300 से ज्यादा ऐसे मरीजों पर इसका ट्रायल किया गया है. जिसमें से रेगुलर करने वाले 80% मरीजों को फायदा मिला है. 2-3 महीने की प्रैक्टिस के बाद अब उनके हाथ पूरी तरह से ऊपर उठ रहे हैं. साथ ही दोनों हाथ ऊपर उठाकर तालियां बजाने लायक भी हो गए हैं. जबकि, इससे पहले जनरल फीजियोथेरैपी में लाखों खर्च के बावजूद मरीजों को कोई खास फायदा नहीं हो पाता था.
स्पिरिचुअल एनर्जी होती है जनरेट
डॉ. अखिलेश सिंह ने कहा कि हर-हर महादेव के उद्घोष में स्पिरिचुअल एनर्जी जनरेट होती है. जिसका फायदा तो मिलता ही है. साथ ही यह एक फीजियोथेरैपी की ऐसी विधा है, जिसे करने में मेहनत या एक्स्ट्रा एफर्ट नहीं करनी होती. उन्होंने बताया हर हर महादेव बोलना काशी के लोगों की आदत में शुमार है.वहीं, दूसरी थैरेपी से कई गुना ज्यादा कारगर भी साबित हो रही है. दुनिया में पहली बार मेडिकल साइंस में हर-हर महादेव को थेरेपी के रूप में दुनिया ने स्वीकार किया है.