Varanasi News: भगवान शिव की नगरी काशी विश्व की सबसे प्राचीन नगरी कही जाती है और यहां अनेकों ऐसी परंपराएं हैं. जिसका निर्वहन काशी वाले बड़े उत्साह और धूमधाम के साथ करते हैं. इसी क्रम में काशी में भगवान जगन्नाथ से जुड़ा एक ऐसा उत्सव है जिसे काशी वाले ही नहीं बल्कि दूसरे शहर के लोग भी पूरे उत्साह के साथ मनाते है. लेकिन उस उत्सव से पहले एक ऐसी मान्यता हैं जो श्रद्धालुओं को उनके भगवान के प्रति एक अटूट आस्था और विश्वास को दर्शाती है. यह कथा जुड़ी है. भगवान जगन्नाथ और उनके भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा से.
धर्माचार्य बताते हैं कि भगवान जगन्नाथ भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को 14 दिनों तक नियमित काढ़े का सेवन कराया जाता है. इसके बाद वह पुनः स्वस्थ होते हैं. ज्येष्ठ माह के पूर्णिमा से लेकर अगले 14 दिनों तक श्रद्धालु उनके स्वास्थ्य लाभ की आस में रहते हैं. ठीक उसी प्रकार इस वर्ष भी 6 जुलाई को स्वस्थ होने के पश्चात भगवान जगन्नाथ अपने परिवार के साथ भोर में श्रद्धालुओं को दर्शन देंगे. और इस दिन के बाद से ही काशी में भगवान जगन्नाथ से जुड़ा प्राचीन रथयात्रा मेला का आयोजन शुरू हो जाता है जिसको देखने के लिए दूर दराज़ से श्रद्धालु पहुंचते हैं.
क्या बोले पंडित विश्वकांताचार्य
काशी के विद्वान पंडित विश्वकांताचार्य ने एबीपी लाइव से बातचीत में बताया कि काशी विश्व की प्राचीन नगरी है और यहां भगवान शिव का वास है. लेकिन इस धर्म नगरी में सभी देवी देवताओं से भी जुड़ी अनेक मान्यताएं और परंपराएं हैं जो सैकड़ो वर्षों से भक्तों द्वारा निभाया जा रहा है. इसी कड़ी में उड़ीसा से जगन्नाथ जी के भक्तों द्वारा काशी आकर एक परंपरा की शुरुआत की गई थी जिसे आज भी विधि विधान से संपन्न कराया जाता है.
ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि पर वाराणसी के अस्सी क्षेत्र स्थित मंदिर में भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा भक्तों को दर्शन देते हैं. इस दौरान एक और परंपरा है जो अनोखी मानी जाती है. जिसके अनुसार भगवान जगन्नाथ बलभद्र सुभद्रा सृष्टि पालन हेतु अपने कार्य का लगातार निर्वहन करते रहते है. और इसी दिन भोजन व स्नान के बाद वह अस्वस्थ हो जाते हैं. इसके बाद 14 दिनों तक उन्हें नियमित लौंग, इलायची, जायफल, तुलसी, काली मिर्च का काढ़े का सेवन कराया जाता है. इसलिए यह भी कहा जाता है कि शिव की नगरी में भगवान जगन्नाथ का भी उत्सव मनाया जाता है.
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