Varanasi Crime News: चौबीसों घंटे माफिया और कुख्यात अपराधियों के निशाने पर रहने वाले जेल कर्मियों की शहादत का कोई मोल नहीं है. बदमाशों की गोलियों के शिकार बने जेल के अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए जेल मैनुअल में अनुग्रह राशि का प्रावधान न होने से उनके परिवारीजनों को आर्थिक तंगी से जूझना पड़ रहा है. 24 साल पहले 4 फरवरी 1999 को राजधानी के राजभवन चौराहे पर लखनऊ जेल के तत्कालीन अधीक्षक आरके तिवारी को बदमाशों ने दिनदहाड़े गोलियों से भून दिया था लेकिन उनके परिवार को अनुग्रह राशि नहीं मिल सकी. ठीक इसी तरह शहीद अनिल त्यागी के परिवार को 10 साल से आर्थिक मदद नहीं मिली.
9 साल पहले 23 नवंबर 2013 को वाराणसी में डिप्टी जेलर अनिल त्यागी की ताबड़तोड़ गोलियां मारकर हत्या कर दी गई थी. उनके परिवार को भी अनुग्रह राशि आज तक नहीं मिली. सवाल यह है कि मुख्तार अंसारी अतीक अहमद सुनील राठी सुशील मूंछ जैसे खूंखार माफिया और अपराधियों के बीच में रहने वाले जेल के ये अधिकारी और कर्मचारी ड्यूटी में इनके निशाने पर आने का और दुश्मनी लेने का जोखिम क्यों उठाएंगे.
साहस के लिए डिप्टी जेलर को मिला था वीरता पुरस्कार
वाराणसी जेल के डिप्टी जेलर अनिल त्यागी को उनके अदम्य साहस पर राष्ट्रपति का वीरता पुरस्कार दिया गया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 20 लाख रुपए की अनुग्रह राशि देने की घोषणा भी की थी. ड्यूटी के दौरान बदमाशों की गतिविधियों के चलते मौत की स्थिति में अतिरिक्त 10 लाख रुपए की अनुग्रह राशि भी उनके परिवार को दी जानी थी लेकिन अभी तक एक भी रुपया नहीं मिला. अनिल त्यागी के परिवार के सदस्य शासन के अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं और उनकी अनुग्रह राशि की फाइल सचिवालय में दबी हुई है.
अखिलेश यादव के कार्यकाल में जेल विभाग में अनुग्रह राशि का प्रावधान न होने के चलते इस मामले को पुलिस मुख्यालय ट्रांसफर कर दिया गया था. लेकिन वहां भी फाइल आगे नहीं बढ़ सकी. लखनऊ जेल के अधीक्षक आरके तिवारी की शहादत के बाद उनके परिवार को जेल विभाग के नियमों के मुताबिक असाधारण पेंशन दी गई. उनके बेटे को भी काफी मशक्कत के बाद मृतक आश्रित कोटे में नौकरी मिली लेकिन परिवार के लोगों को अनुग्रह राशि का आज भी इंतजार है.
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