Varanasi News: वाराणसी स्थित काशी विश्वनाथ का मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. शहर वालों के साथ-साथ देश  दुनिया के श्रद्धालुओं की असीम आस्था भगवान काशी विश्वनाथ से जुड़ी है. इसके साथ-साथ बाबा काशी विश्वनाथ से जुड़े पुराणों शास्त्रों में वर्णित जीवन लीलाओं व सामाजिक जीवन का भी काशी वालों पर खास प्रभाव देखा जाता है. 


इसलिए प्राचीन समय से चली आ रही अनेक परंपराओं का काशी में विधि विधान से निर्वहन किया जाता है. बसंत पंचमी के दिन काशी के राजा के रूप में पहचाने जाने वाले बाबा काशी विश्वनाथ का विधि विधान से तिलक उत्सव संपन्न कराया गया. बसंत पंचमी के दिन से ही बाबा काशी विश्वनाथ और मां गौरा के विवाह उत्सव संबंधित सभी रस्म शुरू हो जाती हैं.


बसंत पंचमी से शुरू होता  है उत्सव
काशी विश्वनाथ के पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी के परिवार द्वारा प्राचीन समय से ही बाबा काशी विश्वनाथ के विवाह उत्सव से जुड़ी सभी रश्मों को विधि विधान से संपन्न कराया जाता है. बसंत पंचमी के दिन से ही  बाबा काशी विश्वनाथ के तिलक उत्सव से जुड़े सांस्कृतिक  कार्यक्रम शुरू हो जाते है जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं. 


इस बार भी प्राचीन परंपरा का निर्वहन  करते हुए बसंत पंचमी के दिन बाबा काशी विश्वनाथ का तिलक चढ़ाया गया. वैदिक ब्राह्मण द्वारा मंत्र उच्चारण अभिषेक और महाआरती के साथ-साथ बाबा के तिलकोत्सव के लिए मंगल गीत गाए गए. हल्दी रस्म, महाशिवरात्रि पर विवाह उत्सव से लेकर गौना तक बाबा के विवाह उत्सव से जुड़े सभी रश्मों को पूरे हर्षोल्लास के मनाया जाता हैं. महंत परिवार की तरफ से आयोजित कार्यक्रम में पूरे काशी वाले शामिल होते हैं.


काशी वालों की है बाबा के प्रति अटूट आस्था
भोलेनाथ की नगरी काशी के रूप में यह शहर विश्व में मशहूर है. इसके अलावा शहर वालों की भी अपने आराध्य काशी विश्वनाथ के प्रति एक अटूट रास्ता देखने को मिलती है. विशेष तौर पर शहर के लोग बाबा विश्वनाथ को अपने अभिभावक के तौर पर पूजते हैं. अपने घर में किसी प्रकार के मांगलिक कार्यक्रम आयोजित होने पर सबसे पहला निमंत्रण भगवान काशी विश्वनाथ और माता अन्नपूर्णा को जाता है. इसके अलावा किसी भी प्रकार के आयोजन शुभ कार्य और जीवन से जुड़े प्रमुख अवसर पर बाबा काशी विश्वनाथ का स्मरण जरूर किया जाता है.


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