UP News: वाराणसी (Varanasi) में ज्ञानवापी केस (Gyanvapi Masjid Case) के बाद चर्चा में आए न्यायाधीश रवि कुमार दिवाकर ब्यूरोक्रेसी से काफी आहत हुए हैं. उन्होंने पुलिस प्रशासन पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि अफसर मुख्यमंत्री को भी गुमराह करने का काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा मैं सिर्फ ईश्वर से डरता हूं, इसके अलावा किसी से नहीं, अगर ऐसा ही चलता रहा तो मैं इस्तीफा दे दूंगा.
 
बीजेपी विधायक डॉ एमपी आर्या के अस्पताल के अवैध गेट का है. इसे कोर्ट के आदेश पर पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में बंद कराने के लिए गए कोर्ट के अमीन पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर दिया. इसकी शिकायत कोर्ट अमीन ने जब न्यायाधीश से की तो उन्होंने सख्त टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि जानबूझकर एफआईआर लिखकर न्यायाधीश को डराने की कोशिश की गई है. ये न्यायपालिका पर बड़ा हमला है. 


अमीन के खिलाफ केस भी दर्ज
लघु वाद न्यायाधीश रवि कुमार दिवाकर ने अपने आदेश में कहा कि इस संबंध में मैं तथ्यों का उल्लेख करना आवश्यक समझता हूं. जिसमें न्यायालय अमीन के द्वारा न्यायालय के आदेश के अनुक्रम में अपने दायित्वों का निवर्हन किया जा रहा था. स्थानीय पुलिस के द्वारा अमीन के विरूद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर ली गयी. इस संबंध में भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 78 उल्लेखनीय है. धारा 78 यह प्रावधान करती है कि न्यायालय के निर्णय और आदेश के अनुक्रम में यदि कोई कार्य किया जाता है तो वह अपराध की श्रेणी में नहीं आयेगा.


प्रश्नगत प्रकरण में अमीन के द्वारा न्यायालय के आदेश के अनुक्रम में कार्य किया गया. मौके पर एसडीएम फरीदपुर, सीओ नवाबगंज, तहसीलदार नवाबगंज मय पुलिस बल मौजूद थे. जब तमाम प्रशासनिक अधिकारी मौजूद थे तो मात्र न्यायालय अमीन के विरूद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाना सीधे न्यायपालिका को डराने जैसा है. जिला पुलिस प्रशासन द्वारा जिस साहस का परिचय इस प्रकरण में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराकर दिया गया है. यदि जिला पुलिस प्रशासन इस साहस का प्रयोग अपराधियों के विरूद्ध कर पाती तो कुछ वांछित परिणाम प्राप्त होते.


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क्या बोले जज?
न्यायालय द्वारा 11 अगस्त को जब रिट परवाना जारी किया गया था तो थानाध्यक्ष अशोक कुमार कम्बोज, 200-250 लोग विवादित स्थल पर उपस्थित थे. अतः न्यायालय के आदेश का अनुपालन करवाने हेतु भारी पुलिस बल, पीएसी बल, रेपिड एक्शन फोर्स तथा कार्यपालक मजिस्ट्रेट की आवश्यकता है. अतः स्पष्ट है कि निर्णीतऋणी इतना प्रभावी व्यक्ति है कि स्थानीय पुलिस द्वारा भी न्यायालय के आदेश का पालन नहीं करवाया जा सका. न्यायाधीश ने आगे कहा कि प्रायः यह देखने में भी आता है कि सामान्तः जिला प्रशासन के अधिकारी अपने अंहकार अथवा घमंड में रहने के कारण न्यायालय के आदेश का अनुपालन करवाना उचित नहीं समझते हैं. 


न्यायाधीश ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय, इलाहाबाद द्वारा समय-समय पर पारित आदेशों का भी अनुपालन प्रशासनिक अधिकारी तब तक नहीं करते हैं. जब तक कि उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही नहीं की जाती है. अवमानना की कार्यवाही में उन्हें जरिये एनबीडब्लू तलब नहीं किया जाता. उच्चतम न्यायालय द्वारा भी समय-समय पर उत्तर प्रदेश में नियुक्त प्रशासनिक अधिकारियों के संबंध में न्यायालय के आदेशों का अनुपालन न करने के संबंध में सख्त टिप्पणियां की गयी है. एक आम आदमी को भी शायद ही इस बात की जानकारी होती हो कि एक प्रशासनिक अधिकारी के अंहकार अथवा घमण्ड के कारण जब वह उच्च न्यायालय के आदेशों का अनुपालन नहीं करता है. 


उसके विरूद्ध अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाती है और उच्च न्यायालय द्वारा संबंधित अधिकारी पर फाइन आदि लगाया जाता है. तब उत्तर प्रदेश सरकार उस आदेश के विरूद्ध उच्चतम न्यायालय में जाती है तो सरकार का भारी मात्रा में धन व्यय होता है जो धन भारत की जनता से कर के रूप में अर्जित किया जाता है. इससे आम जनता के धन का दुरूपयोग होता है. जिला प्रशासन के अधिकारी बातों को सही तरीके से मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश के समक्ष भी नहीं रखते हैं, बल्कि अपने व्यक्तिगत हितों को दृष्टिगत रखते हुए बातें मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश के समक्ष रखते हैं.


26 सितंबर को होगी अगली सुनवाई
न्यायाधीश ने कहा कि उक्त एफआईआर दर्ज करने वाले तत्कालीन थानाध्यक्ष नवाबगंज अशोक कुमार कम्बोज और क्षेत्राधिकारी नवाबगंज चमन सिंह चावड़ा के विरूद्ध आईपीसी 1880 की धारा 217 और 218 के अन्तर्गत दंडनीय अपराध बनता है. उपरोक्त प्रकरण में बिना जिले के उच्च अधिकारियों के मौखिक निर्देश पर ही उपरोक्त प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखी गयी होगी. मैंने 13 साल की न्यायिक सेवा में कभी यह नहीं देखा कि न्यायालय के आदेश के अनुक्रम में अमीन द्वारा अपने दायित्वों का निवर्हन करने के कारण प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखवायी गयी हो.


इसलिए आईजी रमित शर्मा बरेली से यह अपेक्षा की जाती है कि वह इस संबंध में आवश्यक कार्रवाई करना सुनिश्चित करें. इस आदेश की एक प्रति पुलिस महानिदेशक, पुलिस मुख्यालय, लखनऊ तथा मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश शासन सचिवालय लखनऊ को भी आवश्यक कार्यवाही हेतु भेजी जाये. वहीं इस मामले में 26 सितंबर अगली तारीख रखी गई है. 


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