Varanasi Gyanvapi Mosque: यूपी की काशी नगरी में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद परिसर की वीडियोग्राफी और सर्वे का काम कोर्ट के आदेश के बाद आज से शुरू होने वाला है. वीडियोग्राफी और सर्वे का काम आज यानि शुक्रवार को दोपहर तीन बजे शुरू होगा. हालांकि कोर्ट के आदेश के बाद भी इसको लेकर दोनों पक्षकारों में तनातनी देखी जा रही है. ऐसे में हम आपको इस मस्जिद से जुड़े विवाद के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं. चलिए जानते हैं आखिर क्या है पूरा मामला.....


जानिए कहां बनी है ज्ञानवापी मस्जिद


ज्ञानवापी मस्जिद वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी हुई है. इस मस्जिद को लेकर दावा किया जाता है कि ये मस्जिद मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी. हिंदूओं का ये भी दावा है कि इस ढ़ाचे के नीचे 100 फीट ऊंची विशेश्वर का स्वयम्भू ज्योतिर्लिंग स्थापित है. बता दें कि पूरा ज्ञानवापी इलाका एक बीघा, नौ बिस्वा और छह धूर में फैला है. वहीं कोर्ट में दायर की गई याचिका में याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करीब 2,050 साल पहले महाराजा विक्रमादित्य ने करवाया था. लेकिन मगर मुगल सम्राट औरंगजेब ने सन 1664 में मंदिर को नष्ट कर दिया था. दावा किया गया कि इसके अवशेषों का उपयोग मस्जिद बनाने के लिए किया था जिसे मंदिर भूमि पर निर्मित ज्ञानवापी मस्जिद के रूप में जाना जाता है.


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मस्जिद के नीचे है ज्योतिर्लिंग


वहीं साल 1585 में राजा टोडरमल ने काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था. वो अकबर के नौ रत्नों में से एक माने जाते हैं. लेकिन 1669 में औरंगजेब के आदेश पर इस मंदिर को पूरी तरह तोड़ दिया गया और वहां पर एक मस्जिद बना दी गई. बाद में मालवा की रानी अहिल्याबाई ने ज्ञानवापी परिसर के बगल में ही एक नया मंदिर बनवा दिया. जिसे आज हम काशी विश्वनाथ मंदिर के तौर पर जानते हैं. ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर हिंदू पक्ष का दावा है कि इस विवादित ढांचे के नीचे ज्योतिर्लिंग है. यही नहीं ढांचे की दीवारों पर देवी देवताओं के चित्र भी प्रदर्शित है.


कब से चल रहा है मामला


काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी केस का 1991 में वाराणसी कोर्ट में मुकदमा दाखिल किया गया था. इस याचिका के जरिए ज्ञानवापी में पूजा करने की अनुमति मांगी गई थी. प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विशेश्वर की ओर से सोमनाथ व्यास,रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय बतौर वादी इसमें शामिल हैं. मुकदमा दाखिल होने के कुछ दिनों बाद ही मस्जिद कमिटी ने केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट, 1991 का हवाला देकर हाईकोर्ट में चुनौती दी. इसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1993 में स्टे लगाकर यथास्थिति कायम रखने का आदेश जारी किया था. सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद स्टे ऑर्डर की वैधता पर 2019 को वाराणसी कोर्ट में फिर से सुनवाई की गई थी. कई तारीख मिलने के बाद आखिरकार गुरुवार को वाराणसी की सिविल जज सीनियर डिविजन फास्ट ट्रैक कोर्ट से ज्ञानवापी मस्जिद की पुरातात्विक सर्वेश्रण की मंजूरी दी गई.


ज्ञानवापी और विवाद


मंदिर-मस्जिद को लेकर कई बार विवाद हुए हैं. लेकिन ये विवाद आज़ादी से पहले के हैं. ज़्यादातर विवाद मस्जिद परिसर के बाहर मंदिर के इलाक़े में नमाज़ पढ़ने को लेकर हुए थे. सबसे अहम विवाद साल 1809 में हुआ था जिसकी वजह से सांप्रदायिक दंगे हुए थे. वहीं साल 1991 के बाद ज्ञानवापी मस्जिद को चौतरफा लोहे की बाड़ से घेर दिया गया. इसके बाद कोई सांप्रदायिक विवाद नहीं खड़ा हुआ.


जानिए क्या है नया मामला


18 अगस्त 2021 को राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, सीता शाहू, मंजू व्यास और रेखा पाठक की ओर से कोर्ट में एक याचिका दायर की गई. श्रृंगार गौरी, हनुमान, नंदी, गणेश के नियमित दर्शन और पूजा-अर्चना करने की इजाजत मांगी. जिसमें दावा किया गया था कि ऐसा ना करने देना हिंदुओं के हितों का उल्लंघन होगा. ये भी कहा गया कि संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत गारंटी के अनुसार अपने धर्म को मानने का उनका अधिकार भंग हो गया है. इसमें विपक्ष के तौर पर अंजुमन इंतजामिया मसाजिद, वाराणसी के कमिश्नर, पुलिस कमिश्नर, जिले के डीएम और राज्य सरकार को चुना गया था. मां श्रृंगार गौरी और अन्य देव विग्रहों के बारे में स्थितियों का पता लगाने के लिए 8 अप्रैल 2022 को अदालत ने एडवोकेट कमिश्नर को नियुक्त किया था.  26 अप्रैल को वाराणसी के सिविल जज सिनियर डिवीजन रवि कुमार दिवाकर की अदालत ने अपने पुराने आदेश को बरकरार रखते हुए तीन मई ईद के बाद और 10 मई के पहले काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद परिसर स्थित श्रृंगार गौरी मंदिर सहित अन्य स्थानों पर भी कमीशन की कार्रवाई और वीडियोग्राफी का आदेश दिया था.


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