AMU News: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से संबंधित एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर नईमा खातून ने प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि 'हम फैसले का सम्मान करते हैं. हम अगली कार्रवाई के लिए अपने कानूनी विशेषज्ञों से चर्चा करेंगे.' VC ने कहा कि हमारे पास कानून विशेषज्ञों की टीम है. मेरे पास अभी कहने के लिए कुछ नहीं है.


सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) का अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा बकरार रखा है. सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच ने 4-3 के बहुमत से यह फैसला सुनाया है. इस बेंच के तीन जज फैसले के खिलाफ थे.


फैसले में क्या है?
भारत केप्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ में से खुद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, जेडी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा ने संविधान के अनुच्छेद 30 के मुताबिक 'एएमयू' के अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे को बरकरार रखने के पक्ष में फैसला दिया है. सीजेआई ने कहा कि कोई भी धार्मिक समुदाय संस्थान की स्थापना कर सकता है, लेकिन चला नहीं सकता. संस्थान की स्थापना सरकारी नियमों के मुताबिक की जा सकती है.


सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जे का हकदार है. आगे कहा कि अनुच्छेद 30 कमजोर हो जाएगा अगर यह केवल उन संस्थानों पर लागू होता है जो संविधान लागू होने के बाद स्थापित किए गए हैं.सीजेआई का कहना है कि एसजी ने कहा है कि संघ इस प्रारंभिक आपत्ति पर जोर नहीं दे रहा है कि सात न्यायाधीशों को संदर्भ नहीं दिया जा सकता. इस बात पर विवाद नहीं किया जा सकता कि अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव न किए जाने की गारंटी देता है. सवाल यह है कि क्या इसमें गैर-भेदभाव के अधिकार के साथ-साथ कोई विशेष अधिकार भी है. (IANS इनपुट के साथ)


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