Dasara Festival 2023: देशभर में आज यानी मंगलवार को बड़े हर्षोल्लास के साथ दशहरा का त्योहार मनाया जा रहा है. दशहरा, जिसे विजयादशमी भी कहा जाता है, असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. इस दिन लंकापति रावण के पुतले का दहन किया जाता है. हालांकि, देश में कई जगह ऐसी भी हैं जहां रावण की पूजा की जाती है और दशहरा पर रावण का पुतला भी नहीं जलाया जाता. ऐसी ही एक जगह दिल्ली से कुछ किलोमीटर की दूरी पर उत्तर प्रदेश में भी है.
यूपी के ग्रेटर नोएडा में स्थित इस गांव का नाम बिसरख है. यहां के लोग दशहरा के उत्सव में भाग नहीं लेते और राक्षस राजा रावण का पुतला नहीं जलाते. ऐसे देश में जहां रावण का पुतला जलाना बुराई पर अच्छाई की जीत माना जाता है, ये गांव रावण की मृत्यु पर शोक मनाता है, क्योंकि वे उसे अपना, एक पुत्र और एक रक्षक मानते हैं. मान्यता है कि रावण का जन्म इसी गांव में हुआ था.
बिसरख गांव करता है रावण के लिए प्रार्थना
दशहरा पर इस गांव के लोग रावण की आत्मा को मोक्ष, जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलाने के लिए प्रार्थना करने के लिए यज्ञ आयोजित करते हैं. रावण के बारे में उनका अनोखा दृष्टिकोण इस विश्वास से उपजा है कि वह भगवान शिव का एक प्रबल भक्त था और इस तरह बिसरख में उसे अपमानित करने के बजाय सम्मानित किया जाता है.
रावण को मानते हैं अपने बेटे के समान
बिसरख में स्थानीय लोककथाएं रावण को अपने गांव का पुत्र, भगवान शिव का एक वफादार भक्त और लोगों का रक्षक मानते हुए लंकापति को अपना बताती हैं. रावण पर बिसरख के रुख को और भी दिलचस्प बनाने वाली स्थानीय मान्यता ये है कि उसके पुतले को जलाने का प्रयास अतीत में गांव पर बहुत बड़ा दुर्भाग्य लेकर आया है.
लंकापति के लिए मनाते हैं शोक
ग्रामीणों की नजर में रावण बुराई पर विजय पाने का प्रतीक नहीं है, बल्कि एक पुत्र, उनके रक्षक और भगवान शिव के भक्त का प्रतीक है और उसे जलाने से निवासियों पर शिव का क्रोध भड़केगा. इसलिए बिसरख के निवासी ढोल की थाप पर मार्च करते हैं, रावण की मृत्यु पर शोक मनाते हैं और उसकी आत्मा की मुक्ति के लिए प्रार्थना करते हैं.
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