अनूठी मिसाल: महिला होकर विजेन्द्री श्मशान घाट पर कराती हैं अंतिम संस्कार, समाज को दे रही हैं बड़ा संदेश
सीतापुर में विजेन्द्री के बारे में सुनकर सभी लोग हैरान रह जाते हैं. वहीं, विजेन्द्री का कहना है उन्होंने ये अपने पिता से सीखा है और इसे वो आगे भी जारी रखेंगी.
सीतापुर: ऊं रेतसे स्वाहा... ऊं अधिलालपतये स्वाहा... ऊं लोकाये स्वाहा.... सनातन परंपरा के अनुसार हिंदू शमशान घाट पर पुरुष पुराहितों के कंठ से अंतिम संस्कार कराते समय यही मंत्र गूंजते हैं. लेकिन उत्तर प्रदेश के जनपद सीतापुर में स्थित गोपालघाट पर नारी स्वर में यह मंत्र सुनाई देते हैं. इस घाट पर एक पुरोहिता अंतिम संस्कार कराती हैं, इन्होंने अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया है.
पिता से सीखा अंतिम संस्कार की विधि
आपने बेटियों को हवाई जहाज उड़ाते देखा होगा. देश की सरहद की निगहबानी करते देखा होगा, यकीनन बेटियां आज किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं. मगर राष्ट्र व समाज हित में निःशुल्क अंतिम संस्कार व शुद्धीकरण कराने वाली पुरोहिता कुमारी विजेन्द्री आर्या नारी सशक्तीकरण की अनूठी मिसाल हैं. सीतापुर के चमखर गांव में रहने वाले पुरोहित नेतराम आर्य की विजेन्द्री इकलौती बेटी हैं. सीतापुर शिक्षण संस्थान में बीफार्मा की छात्रा विजेन्द्री बताती हैं, कि उनके पिता पिछले 20 साल से अंतिम संस्कार कराने का काम करते आ रहे हैं. उन्होंने बेटी होने के बावजूद उसका पालन-पोषण बेटे की तरह किया. यहां तक कि उसका यज्ञोपवीत संस्कार भी कराया है. उन्हीं से अंतिम संस्कार की विधि सीखी है.
नि:शुल्क कराती हैं अंतिम संस्कार
विजेन्द्री बताती हैं, कि कोरोना काल में कई लोगों ने अपनों को खोया. तमाम ऐसे लोग भी थे, जिनके पास अपनों का अंतिम संस्कार तक कराने की सामर्थ्य नहीं था. इसलिए पिता की सीख व प्रेरणा से राष्ट्र व समाज सेवा की खातिर निःशुल्क अंतिम संस्कार कराने का निर्णय लिया. सनातनी परंपरा में महिलाओं का शमशान घाट पर जाना वर्जित है, ऐसे में घाट पर शवों का अंतिम संस्कार कराने का साहस कैसे जुटा पाती हैं, इस सवाल पर विजेन्द्री बोलीं कि यह निडरता और योग्यता भी पिता की देन है. आत्मसंतुष्टि के लिए निःशुल्क अंतिम संस्कार कराने वाली विजेन्द्री का आगे भी यह काम करते रहने का संकल्प है.
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