Uttarakhand News: उत्तराखंड में राज्य सूचना आयोग ने वक्फ बोर्ड को सूचना के अधिकार कानून के तहत सम्मलित कर लिया है. ऐसा होने से अब मस्जिद, दरगाह और मदरसों को इनकम और संपत्तियों की सारी जानकारी देनी होगी. इस पर जमीयत उलेमा ए हिंद के मौलाना काब रशीदी ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. उनका कहना है कि धर्म के आधार पर कानून में किसी के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए, अगर मस्जिद, दरगाह और मदरसा को इसके तहत लाया गया है तो फिर गुरुकुल और मंदिरों सहित सभी धर्म के धार्मिक स्थलों को भी इस कानून के तहत सम्मिलित किया जाना चाहिए.
उनका कहना है कि सिर्फ जाति धर्म या रंग के आधार पर कानून को लागू नहीं किया जा सकता, इसलिए कानून को सब पर समान रूप से लागू किया जाना चाहिए. हमें जानकारी देने में ना पहले आपत्ति थी और ना अब आपत्ति है लेकिन अगर जानकारी धार्मिक स्थलों से ली जा रही है तो सब से ली जानी चाहिए. सिर्फ किसी एक धर्म के लिए कानून लाया जाना गलत है और यह संविधान के मूल रूप के खिलाफ है.
इसके साथ ही उत्तर प्रदेश के कई जिलों में मदरसों को 2009 के एक्ट के तहत शिक्षा विभाग से जो नोटिस मान्यता के संबंध में दिए गए हैं, उस पर बोलते हुए मौलाना काब रशीदी ने कहा कि जिस एक्ट के तहत नोटिस भेजे गए हैं, उसी एक्ट में लिखा है कि इस एक्ट से मदरसों और गुरुकुल को अलग रखा गया है, तो फिर कैसे इस एक्ट के तहत नोटिस भेज दिए गए.
मौलाना काब रशीदी का कहना है कि 'वह अधिकारी कानून को पूरा पढ़ें और मदरसों से उनकी मान्यता पूछने के लिए सरकारी अधिकारी इस कानून में अधिकृत ही नहीं हैं क्योंकि मदरसों और स्कूलों को इस कानून से अलग रखा गया है, ये नोटिस हास्यस्पद हैं. यह मूल रूप से धार्मिक शिक्षा का प्रसार-प्रचार करने वाले मदरसों पर लागू ही नहीं होता है, तो फिर नोटिस कैसे जारी किए गए. हम इसके ख़िलाफ़ कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं.'
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