भारत के मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू थे, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) के इस बयान को लेकर राजनीति तेज हो गई है. एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी (Asadduddin Owaisi) ने भागवत के बयान पर जवाब देते हुए कहा कि भारत के मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू नहीं थे. उन्होंने कहा कि भारत में इस्लाम आक्रमण से नहीं बल्कि इस्लाम व्यापारियों और सूफियों से आया है. ओवैसी के इस बयान पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (Aligarh Muslim University) के इतिहासकार अली नदीम रिजवी (Ali Nadeem Rizvi) ने भी सहमति जताई है. एबीपी गंगा की टीम ने जब ओवैसी के बयान की सच्चाई जानने के लिए उनसे बात की तो उन्होंने कहा कि एक हद तक ओवैसी की बात सही है.


क्या मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू थे?
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहासकार अली नदीम रिजवी ने कहा कि ओवैसी की बातों से आम तौर से मैं सहमत नहीं होता लेकिन अगर यह स्टेटमेंट उन्होंने दिया है तो उसमें काफी हद तक सच्चाई है. इस्लाम और हिंदुस्तान का बड़ा पुराना रिश्ता रहा है. अगर हम देखें तो प्रॉफेट ऑफ इस्लाम के जमाने से ही हिंदुस्तानी और अरब के बीच में ताल्लुकात बनने शुरू हुए थे. उसकी दो मिसाल हैं, एक जिससे ज्यादातर लोग वाकिफ हैं कि केरल में आज भी एक मस्जिद मौजूद है जो पैगंबर मोहम्मद के जमाने की कहलाती है. जाहिर है कि ये वो दौर था कि जब समुद्र के रास्ते से तिजारत होतीं थी.


ओवैसी के बयान में कितनी सच्चाई?


रिजवी ने दावा किया कि पैगंबर के अपने समय में जो अरब के व्यापारी थे वह केरल के तट पर आए और वो मुसलमान बनकर आए, इसलिए जरूरत पड़ी कि वहां पर एक मस्जिद बनाई जाए. सिर्फ यही नहीं अगर आप गुजरात चले जाए जिस स्टेट का नाम आजकल बहुत है वहां पर भी सर्च करें एक मस्जिद है जिसके बारे में कहा जाता है कि वह काबा किबला बनने से पहले की मस्जिद है और उसकी दिशा काबा की तरफ़ नहीं है और कुछ इतिहासकारों का कहना है कि वह भी प्रॉफेट के जमाने की है. इस तरह से व्यापारी ही पहले थे जो हिंदुस्तान में आना शुरू हुए.


क्या कहते हैं जाने-माने इतिहासकार


उन्होंने बताया कि आठवीं शताब्दी में पालों की हुकूमत चल रही थी. बिहार, यूपी और बंगाल में पाल कटिहार में हुकूमत कर रहे थे. पालों के राज में बिहार और बंगाल की तरफ हम को मिलता है कि एक मुस्लिम व्यापारियों का गिरोह था जिनको पाल राज में न सिर्फ बसने की इजाजत दी गई थी बल्कि उनकी बस्तियां बनाई गई थी और मस्जिद भी कायम की गई थी. इसी तरीके से अजमेर का इलाका था जहां जो सियासी इस्लाम है उसके आने से पहले मुसलमानों की बस्तियां थी. इसलिए एक तरह से कहा जा सकता है कि हिन्दुस्तान में अगर इस्लाम आया तो वो ताजियों के द्वारा आया था. और फिर उसके बाद सूफियों के जरिए आया.


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गजनवी के हमले के बाद आया सियासी इस्लाम


सियासी इस्लाम की अगर बात करें तो उसका जिक्र सबसे पहले 10वीं शताब्दी में मिलता है जब महमूद गजनवी ने हमला किया था, लेकिन मैं यह बताना चाहता हूं महमूद गजनवी का हमला सिंध की तरफ हुआ तो उसने किसी मुस्लिम राजा को पराजित नहीं किया. सिंध के इलाके में इस्माइलियों की हुकूमत थी. मुल्तान लाहौर तक एक तरीके से इस्मायली मुसलमान हुआ करते थे उनकी हुकूमत थी और उनको पराजित करके महमूद गजनवी आगे बढ़ा था. 12वीं शताब्दी में कहीं जाकर जो गौरी लोग थे उन्होंने यहां पर 1206 में 1 तरीके से पहला सियासी निजाम जिसको दिल्ली सल्तनत कहते हैं उसको कायम किया था.


पैगंबर के जमाने से भारत में आया इस्लाम


उन्होंने कहा कि अगर आप इस्लाम की बात करेंगे तो इस्लाम तो प्रॉफेट के पीरियड से आ गया था. अगर आप सियासत की बात करेंगे और यह पूछेंगे कि हिंदुस्तान में मुसलमानों का राज्य कब से बना उसके लिए भी सबसे पहले हमें कहना पड़ेगा कि तकरीबन आठ से 10 वीं शताब्दी के बीच इस्माइली ने सिंध पर अपना राज्य कायम किया और बाद में जब गजनबी आए तो 12 वीं शताब्दी में आते-आते गौरियों ने हमला करके दिल्ली सल्तनत को कायम किया.


भारत में तीन तरह से आया इस्लाम


सिर्फ ये कह देना कि इस्लाम सूफियों और ताजिरों के जरिये आया वह अर्धसत्य होगा. वो तीनों तरीके से आया. शुरू में प्रॉफेट के जमाने से आया और फिर आठवीं शताब्दी के समय में यहां पर मुसलमानों की आबादियां बसने लगी और कोई झगड़ा नहीं था. सारा फसाद शुरू होता है जब से सियासी इस्लाम आया और उसे आप कह सकते हैं कि 12वीं और 13वीं शताब्दी में, एक तरीके से ओवैसी साहब इतिहास के एक पन्ने को याद दिला रहे हैं दूसरे को याद नहीं दिला रहे हैं.


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