मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि (Shree Krishna Janmbhoomi) और शाही मस्जिद (Shahi Masjid) विवाद में मंगलवार को सुनवाई होनी है.यह विवाद मथुरा की 13.37 एकड़ जमीन को लेकर है. इसमें से 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान और 2.5 एकड़ जमीन ईदगाह मस्जिद के पास है. याचिकाकर्ता मनीष यादव ने पूरी जमीन देने और शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग की है.याचिकाकर्ता ने विवादित स्थल की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी कराने की भी मांग की है.निचली अदालत में यह मामला लंबित है.इसे देखते हुए उन्होंने हाईकोर्ट का रुख किया था.मनीष की याचिका को निपटाते हुए हाईकोर्ट ने 29 अगस्त को सुनवाई की.अदालत ने मंदिर पक्ष की ओर से निचली अदालत में दायर याचिका की सुनवाई चार महीने में पूरी करने का निर्देश दिया है. आइए जानते हैं कि क्या है मथुरा का यह विवाद.


कितने याचिकाएं लंबित हैं


अब हाईकोर्ट के आदेश के बाद अगले चार महीने में जिला अदालत को इस याचिका पर फैसला देना है.मथुरा की कोर्ट में श्री कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद  मामले में अब तक  11 याचिकाएं दाखिल हो चुकी हैं.


याचिकाकर्ताओं की मांग है कि मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर में मुगल शासक औरंगजेब के कार्यकाल में बनी शाही ईदगाह मस्जिद को वहां से हटाया जाए. श्रीकृष्ण विराजमान की ओर से दायर याचिका में 13.37 एकड़ जमीन पर मालिकाना हक की मांग की गई है. कृष्ण भक्तों ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही ईदगाह प्रबंध समिति के बीच 1968 में हुए समझौते को अवैध बताया है. इनकी मांग है कि समझौते को निरस्त किया जाए और मस्जिद को हटाकर पूरी जमीन मंदिर ट्रस्ट को सौंपी जाए. समझौते को भगवान कृष्ण व उनके भक्तों की इच्छा के विपरीत बताया गया है. 


इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला क्या था


इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 1935 में 13.37 एकड़ की विवादित जमीन बनारस के राजा कृष्ण दास को अलॉट कर दी थी. श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने 1951 में ये जमीन अधिग्रहित कर ली थी.इस ट्रस्ट को 1958 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और 1977 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के नाम से रजिस्टर्ड कराया गया था. साल 1968 में श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही ईदगाह कमेटी के बीच हुए समझौते में इस 13.37 एकड़ जमीन का स्वामित्व ट्रस्ट को मिला और ईदगाह मस्जिद का मैनेजमेंट ईदगाह कमेटी को दे दिया गया.


वकील विष्णु शंकर जैन ने 25 सितंबर 2020 को दायर याचिका में कहा है कि 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही ईदगाह प्रबंध समिति के बीच हुआ समझौता गलत है. उन्होंने इसे निरस्त करने की मांग की है. उन्होंने मंदिर परिसर में स्थित ईदगाह को हटाकर वह भूमि मंदिर ट्रस्ट को सौंपने की मांग की है. 


समझौते को कौन अवैध बता रहा है


श्रीकृष्ण विराजमान, स्थान श्रीकृष्ण जन्मभूमि और कुछ अन्य लोगों की ओर से पेश दावे में कहा गया है कि 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ (वर्तमान में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान) और शाही ईदगाह मस्जिद के बीच जमीन को लेकर समझौता हुआ था.इसमें तय हुआ था कि मस्जिद जितनी जमीन में बनी है,बनी रहेगी. जैन का दावा है कि जिस जमीन पर मस्जिद बनी है,वह श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट के नाम पर है.सेवा संघ की ओर से किया गया समझौता गलत है. 


ईदगाह ट्रस्ट का क्या दावा है


वहीं ईदगाह मस्जिद पक्ष का दावा है कि जो लोग मस्जिद को मंदिर का हिस्सा बता रहे हैं वह तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश कर रहे हैं. उसका दावा है कि इतिहास में कोई भी ऐसा तथ्य नहीं है जो यह बताता हो कि मस्जिद का निर्माण मंदिर को तोड़कर किया गया था या श्री कृष्ण का जन्म उस जगह पर हुआ था जहां पर मौजूदा ईदगाह है. ईदगाह पक्ष इस मामले में दी प्लेस ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविजन) एक्ट 1991 का हवाला देता है.इस कानून के मुताबिक इस एक्ट में कहा गया है कि देश में 1947 से पहले धार्मिक स्थलों को लेकर जो स्थिति थी वह उसी तरह बरकरार रखी जाएगी. उसमें कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी.इस एक्ट में राम जन्मभूमि विवाद को अपवाद बताया गया था.अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद वहां मंदिर का निर्माण हो रहा है. 


शाही ईदगाह ट्रस्ट के वकील तनवीर अहमद का कहना है कि 1968 के पुराने समझौते पर मंदिर ट्रस्ट ने कभी आपत्ति नहीं जताई. उनका कहना है कि इस मामले पर बाहरी लोग याचिका दायर कर रहे हैं. उनका कहना है कि कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट और संस्थान ने अबतक इस मामले पर कोई स्टैंड नहीं लिया है, जबकि हिंदू याचिकाकर्ताओं ने उनको पार्टी बनाया हुआ है. 


औरंगजेब ने तुड़वा दिया था मंदिर


ऐसा माना जाता है कि मुगल शासक औरंगजेब आलमगीर ने 1669 में श्रीकृष्ण मंदिर को तुड़वा दिया था. और ईदगाह का निर्माण कराया था.हिंदू पक्ष का दावा है कि भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण का जन्मस्थान कंस कारागार उसी ढांचे के नीचे स्थित है. वहां पर पहले केशवराय मंदिर हुआ करता था.


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