मायावती ने पश्चिमी यूपी के दिग्गज नेता इमरान मसूद को पार्टी से निकाल दिया है. बीएसपी ने मसूद पर सदस्यता वाली किताबों में गड़बड़ी का आरोप लगाया है. बीएसपी ने लेटर जारी कर कहा है कि समय बीत जाने के बाद भी मसूद ने सदस्यता की किताबें वापस नहीं की है.
बीएसपी के लेटर के बाद मायावती की सदस्यता वाली किताबें एक बार फिर सुर्खियों में हैं. बीएसपी संगठन में यह पहली बार नहीं है, जब किसी नेता पर किताबों के हिसाब-किताब में गड़बड़ का आरोप लगा है.
मायावती पहले भी सदस्यता वाली किताब में गड़बड़ी का आरोप लगाकर नसीमुद्दीन सिद्दीकी और इंद्रजीत सरोज को पार्टी से निकाल चुकी हैं. जानकारों का कहना है कि सदस्यता वाली किताबें बीएसपी की राजनीति का मुख्य आधार है. यह उन नेताओं को दिया जाता है, जो लोकसभा या विधानसभा में टिकट के दावेदार होते हैं.
इस स्टोरी में मायावती के इसी सदस्यता वाली किताबों के बारे में विस्तार से जानते हैं...
पहले जानिए मसूद ने क्या कहा है?
बीएसपी से हटाए जाने के बाद इमरान मसूद ने कहा है कि सदस्यता के लिए सहारनपुर से मायावती ने पार्टी के लिए पांच करोड़ रुपये मांगे गए थे. मेरी इनकी औकात नहीं है कि मैं पांच करोड़ रुपये दूं. मैने बहनजी से पहले ही कह दिया था कि मेरे पास आदमी हैं, वोट हैं, मगर नोट नहीं है.
मसूद ने कहा कि मायावती अगर गठबंधन में नहीं आती हैं, तो जीरो पर सिमट जाएंगी. मसूद 10 महीने पहले ही सपा का दामन छोड़ बहुजन समाज पार्टी में शामिल हुए थे. उस वक्त उन्हें 4 जोन की कमान मायावती ने सौंपी थी.
मायावती के डायरी का आर्थिक गणित
बहुजन समाज पार्टी के संविधान के मुताबिक कोई भी व्यक्ति अगर पार्टी की सदस्यता लेता है, तो उसे प्रति वर्ष 10 रुपए का शुल्क पार्टी कार्यालय में जमा करना होगा. बीएसपी छोड़ चुके एक नेता के मुताबिक टिकट के दावेदार अगर सदस्य बनवाते हैं, तो उस सदस्य से 20 साल का शुल्क लिया जाएगा. यानी सदस्यता लेते वक्त उस सदस्य को कुल 200 रुपए जमा करने होंगे.
(Source- ECI)
बीएसपी सूत्रों के मुताबिक विधायकी के दावेदार को एक डायरी मेंटेन करने की जिम्मेदारी दी जाती है, जिसमें करीब 75 हजार फॉर्म रहता है. दावेदार अगर पूरे फॉर्म भरवाने में अगर सफल होते हैं, तो एक डायरी से पार्टी फंड में करीब 1.5 करोड़ रुपए आता है.
उत्तर प्रदेश में विधानसभा की कुल 403 और लोकसभा की 80 सीटें हैं.
इसी तरह लोकसभा के दावेदार को कम से कम 5 डायरी मेंटेन करने की जिम्मेदारी दी जाती है. जोनल कॉर्डिनेटर पर 20-25 डायरी मेंटेन का जिम्मा रहता है. डायरी की रिपोर्ट मायावती सीधे जोनल कॉर्डिनेटर से लेती हैं.
कई बार एक-एक सीट पर टिकट के 2 दावेदार रहते हैं. ऐसे में टिकट का फैसला डायरी के आधार पर ही लिया जाता है.
पार्टी फंड का सबसे बड़ा सोर्स है सदस्यता डायरी
बीएसपी के एक नेता नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं- बड़े दलों को पूंजीपतियों से चंदा मिलता है, जबकि बीएसपी की राजनीति मूवमेंट आधारित है. पार्टी फंड का सबसे बड़ा सोर्स सदस्यता डायरी ही है.
नेता एडीआर रिपोर्ट का भी हवाला देते हैं, जिसमें कहा गया है कि बीएसपी को 20 हजार से ज्यादा का चंदा नहीं मिलता है.
एडीआर ने 2019-20 की एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी. इसके मुताबिक बीजेपी के बाद मायावती की पार्टी ही है, जिसके पास सबसे अधिक संपत्ति है. एडीआर के अनुसार बीएसपी के पास करीब 698 करोड़ की संपत्ति है.
पार्टी फंड में सहयोग के साथ-साथ डायरी मूवमेंट को भी मजबूती प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. बीएसपी सूत्रों के मुताबिक डायरी अगर कोई नेता मेंटेन नहीं कर पाता है, तो उससे उस इलाके की जिम्मेदारी समय रहते ले ली जाती है.
विवादों में मायावती की सदस्यता डायरी, 2 किस्सा...
नसीमुद्दीन ने ऑडियो रिकॉर्ड वायरल कर दिया- 2017 में बीएसपी में नंबर-2 की हैसियत रखने वाले नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर एक ऑडियो वायरल कर दिया. नसीमुद्दीन ने दावा किया कि ऑडियो में मायावती की आवाज है. वायरल ऑडियो ने यूपी की सियासत में हड़कंप मचा दिया.
ऑडियो में मायावती कथित तौर पर नसीमुद्दीन से मेरठ, मुरादाबाद और सहारनपुर मंडल के डायरी का हिसाब-किताब करने का निर्देश दे रही थीं. नसीमुद्दीन के मुताबिक मायावती फोन पर सभी 4 मंडल में टिकट के दावेदारों से डायरी के जरिए पैसे मांग रही थीं.
बीएसपी ने नसीमुद्दीन के ऑडियो पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. पार्टी का कहना था कि नसीमुद्दीन पर कार्रवाई की गई, इसलिए ऐसा अनर्गल आरोप लगा रहे हैं.
सरोज ने कहा पैसा नहीं वसूल सकता हूं, इस्तीफा ले लो- सितंबर 2017 में कौशांबी के कद्दावर नेता इंद्रजीत सरोज ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बड़ा धमाका कर दिया. सरोज ने कहा कि मायावती ने मुझे फोन कर पैसे वसूलने के लिए कहा है, जिससे मैंने इनकार कर दिया है.
सरोज ने पत्रकारों से कहा था- मायावती ने मुझे फोन पर कहा कि 15 लाख रुपए की जरूरत है. डायरी लेकर इसे पूरा करिए. मैंने इनकार किया तो उन्होंने पार्टी से निकालने की धमकी दे दी. बीएसपी में अघोषित इमरजेंसी लगी हुई है. इसलिए मैंने पार्टी से अलग होने का फैसला किया है.
उस वक्त सरोज अपने साथ कौशांबी और प्रयागराज की पूरी यूनिट सपा में लेकर चले गए. वर्तमान में वे विधायक और सपा के राष्ट्रीय महासचिव हैं.
खराब परफॉर्मेंस के बावजूद इनकम में कमी नहीं
एडीआर के मुताबिक 2012-13 में बहुजन समाज पार्टी की कुल आय 87.63 करोड़ रुपए थी. बीएसपी इसी साल यूपी की सत्ता से बाहर हुई थी. पार्टी इसके बाद 2014, 2017 के चुनाव में बुरी तरह हारी. 2019 के चुनाव में भी पार्टी को बड़ी सफलता नहीं मिली, जबकि 2022 में पार्टी यूपी में सिर्फ 1 सीट पर सिमट कर रह गई.
हालांकि, इसके बावजूद पार्टी के कोष पर कोई असर नहीं पड़ा. रिपोर्ट के मुताबिक 2021-22 में बीएसपी की कुल आय 85.17 करोड़ रुपए है.
बहुजन समाज पार्टी की स्थापना साल 1984 में मान्यवर कांशीराम ने की थी. 1993 में पार्टी पहली बार यूपी की सत्ता में आई. 1995 में मायावती बीएसपी की तरफ से पहली बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं. 2001 में बीएसपी की कमान मायावती के हाथों में आ गई.
2007 में पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ मायावती ने सरकार बनाईं. हालांकि, 2012 में मायावती की पार्टी सत्ता से बाहर हो गई, तब से विपक्ष की भूमिका में ही पार्टी है.