Independence Day: 15 अगस्त 1947 को पूरा देश आजाद हो गया था, लेकिन हैदराबाद के निजाम के वंशजों के कदौरा बावनी स्टेट में उस समय तिरंगा झंडा फहराने पर रोक थी. लेकिन वहां लोगों ने भाषण देने, नारे लगाने और जुलूस निकालना और अहिंसात्मक तरीके से आंदोलन शुरू कर दिया गया था. इसकी सजा देने के लिए नवाब ने विश्वनाथ व्यास, उनके पुत्र रमाशंकर व्यास और जगन्नाथ सिंह कानाखेड़ा को रियासत से निष्कासित करने का आदेश जारी कर दिया था.


29 जून 1947 को जगन्नाथ सिंह को बंदी बनाकर नजरबंद कर दिया गया. बात ऊपर तक पहुंची तो तत्कालीन मुख्यमंत्री लालाराम वाजपेयी ने हस्तक्षेप किया. उन्होंने जिले के प्रमुख कांग्रेस नेताओं द्वारा नवाब से की गई 2 दिन की वार्ता के बाद जगन्नाथ सिंह की रिहाई कराई. लेकिन इसके बावजूद नवाबी शासन की निरंकुशता में कमी नहीं आई.


25 सितंबर 1947 को ग्राम हरचंदपुर में तिरंगा फहराने का कार्यक्रम था


आजादी के बाद सारे देश में हो रहे तिरंगे के अभिनंदन को देखते हुए बावनी राज्य के देश भक्तों नेताओं ने 25 सितंबर 1947 को ग्राम हरचंदपुर (अब रायबरेली का गांव) में तिरंगा फहराने का कार्यक्रम बना डाला. इसके बाद नवाब की पुलिस ने देशभक्तों को सबक सिखाने के लिए अत्याचार की सारी पराकाष्ठाएं पार कर दी थी. बावनी प्रजा मंडल द्वारा आयोजित जुलूस में तिरंगे झंडे और बैनर लिये राष्ट्रगान गाते जा रहे देशभक्तों को गांव के एक चौखाटे पर पुलिस ने रोक लिया. यह एक तरह से जलियांवाला बाग के चौक जैसा मैदान था. जहां से भागने की कोई गुंजाइश नहीं थी. कोतवाल अहमद हुसैन 24 सिपाहियों के साथ मौके पर थे. उसने जुलूस खत्म कर लोगों से घरों को लौट जाने के लिए कहास लेकिन कोई टस से मस नहीं हुआ.


इसी बीच झड़प शुरू होने पर आंदोलनकारियों में शामिल बाबू सिंह ने दरोगा को पटककर सर्विस रिवाल्वर छीनने की कोशिश की, जिसके बाद पुलिस ने अंधाधुंध फायरिंग कर दी. जिसमें लल्लू सिंह बागी, कालिया पाल सिजहरा, जगन्नाथ यादव उदनापुर, मुन्ना भुर्जी उदनापुर, ठकुरी सिंह हरचंदपुर, दीनदयाल पाल सिजहरा, बलवान सिंह हरचंदपुर, बाबूराम शिवहरे जखेला,बिन्दा जखेला और अन्य 2 लोगों समेत 11 लोग शहीद हो गए. लेकिन उनकी कुर्बानी बेकार नहीं गई.


भारत संघ में हो गया था स्टेट का विलय


24 अप्रैल 1948 को तत्कालीन मुख्यमंत्री लालाराम गौतम ने खुद कदौरा आकर विश्वनाथ व्यास को स्टेट का प्रशासक नियुक्त कर दिया. 25 जनवरी 1950 को कदौरा बावनी स्टेट का विलय पूरी तरह भारत संघ में कर दिया गया. हरचंदपुर में उक्त शहीदों की याद में स्मारक बनवाया गया है ताकि आने वाली पीढ़ियों को देश के लिए मरने मिटने की प्रेरणा मिलती रहे.


गोलीकांड में शहीद हुए शहीद के भतीजे गया प्रसाद ने बताया कि 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ था. उसके बाद तिरंगा यात्रा के जुलूस में गोलीकांड की घटना को अंजाम दिया गया, क्योंकि नवाब नहीं चाहते थे कि तिरंगा यात्रा निकले. गोलीकांड में 11 लोग शहीद हुए थे. इस गोलीकांड में हमारे ताऊ बाबूराम शिवहरे शहीद हुए थे.


इस नरसंहार को दूसरा जालियां वाला बाग़ भी कहा जाता है


वरिष्ठ पत्रकार के.पी. सिंह बताते है कि इस सामूहिक नरसंहार को दूसरा जालियां वाला बाग़ भी कहा जाता है. क्योंकि देशभक्ति में झंडा फहराने की उमंग में निकले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी निहत्थे थे.  उनके लिए कोई भागने का रास्ता भी नहीं छोड़ा गया था. उसी तरीके से उस चौक के पास भी वैसे ही घेराबंदी कर गोली चलायी गयी थी, जिस तरह जलिया वाला बाग में की गई थी. जालौन में कदौरा बावनी ही ऐसा अकेला स्टेट था, जिसका भारत संघ में विलय हुआ था.


सन 1784 में हैदराबाद के निजाम ने इस स्टेट को स्थापित किया था. पेशवा और ब्रिटिश शासन ने इसको स्टेट की मान्यता दे दी. उस समय के तत्कालीन नवाब ने दूसरी शादी कर ली. सारे शासन के कार्य दूसरी बेगम शौकत जहां ने संभाल रखे थे. स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से बेगम का विवाद आजादी के पहले से था. क्योंकि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बेगारी प्रथा का विरोध कर रहे थे. आजादी के बाद भी यहां तिरंगा फहराने पर प्रतिबंध जारी था.


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