मोहम्मद मोइन,प्रयागराज। पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय सुषमा स्वराज से मिलने का मौका मुझे तीन बार मिला। तीनों ही मुलाकातें प्रयागराज में हुईं, लेकिन हर मुलाकात पहले से ज़्यादा प्रभावित करने वाली रहीं। हर मुलाकात के बाद मैं उनकी शख्सियत का और कायल होता गया। उनके प्रति सम्मान और बढ़ता चला गया। करीब तीन साल पहले हुई आखिरी मुलाकात के दौरान की एक घटना मैं शायद ही कभी भूल पाऊं। वह वाकया अक्सर मेरे जेहन में अब भी गूंजता रहता है। जितनी बार वह किस्सा याद आता है, उतनी बार पल भर में ही कुछ लड़कियों को पहले डांट लगाने का दिखावा करने और फ़िर अपनेपन के साथ उन्हें दुलार करने व गले लगाने का वाकया सुखद अनुभूति कराते हुए उनके व्यक्तित्व को मन ही मन सैल्यूट करने पर मजबूर कर देता है।
वह तारीख थी तेरह जून साल 2016 की। प्रयागराज तब इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था। यूपी में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले बीजेपी ने अपनी राष्ट्रीय कार्यसमिति की दो दिनों की बैठक इसी शहर में आयोजित की थी। शहर के केपी कालेज ग्राउंड में हुई बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अध्यक्ष अमित शाह के साथ ही सरकार व संगठन के तकरीबन सभी बड़े चेहरे मौजूद थे। तब की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी इस बैठक में शामिल होने के लिए इलाहाबाद पहुंची थीं। वह सिविल लाइंस इलाके के एक होटल में रुकी हुई थीं। सुषमा स्वराज के इंटरव्यू के सिलसिले में मैं भी उस होटल में पहुंचा था। उनके स्टॉफ ने हमें होटल की लॉबी में ही कुछ देर इंतजार करने को कहा। मुंबई से आया एक परिवार भी टैक्सी के इंतजार में लॉबी में चहलकदमी कर रहा था। इस परिवार में अठारह से बीस साल की उम्र की तीन लडकियां भी थीं।
बहरहाल, कुछ देर बाद सुषमा स्वराज भी कहीं जाने के लिए ऊपर की मंजिल से नीचे लॉबी में आ गईं। मैंने उनसे एक मामले में कैमरे पर प्रतिक्रिया देने का अनुरोध किया। पहले तो उन्होंने बेहद अपनेपन के साथ मना कर दिया, लेकिन मेरे दोबारा अनुरोध पर वह बात करने को राजी हो गईं। उन्होंने करीब तीन से चार मिनट तक मेरे सवालों का जवाब दिया। इंटरव्यू खत्म होते ही मुंबई से आए परिवार की तीनों लडकियां उनके कुछ नज़दीक जाकर सेल्फी लेने लगीं। सुषमा स्वराज के स्टाफ ने उन्हें आगे से हटाना चाहा तो तीनों लडकियां मैम प्लीज वन मिनट - मैम प्लीज़ सेल्फ़ी बोलते हुए अपने महंगे मोबाइल से उनके साथ तस्वीरें लेने लगीं। बातचीत और व्यवहार से लगा कि तीनों लडकियां कान्वेंट की पढ़ी हुई हैं। हालांकि मीडिया के कैमरों व सिक्योरिटी स्टाफ की वजह से ये लडकियां उनके नजदीक जाने की हिम्मत नहीं कर पा रही थीं और तकरीबन चार फीट की दूरी से ही सेल्फी ले रही थीं।
सुषमा ने लड़कियों की इस हिचक और सेल्फी लेने के उनके उतावलेपन को फौरन भांप लिया। दो -तीन क्लिक होते ही सुषमा ने उन लड़कियों की तरफ देखते हुए तेज आवाज में स्टॉप बोला। लडकियां जब तक उनकी तरफ देखतीं तब तक स्टॉप के बाद उन्होंने व्हाट आर यू डूइंग कहा। लड़कियों को लगा शायद सेल्फी लिए जाने से वह नाराज हो गई हैं। वहां मौजूद सभी लोग सुषमा के इस रवैये से हक्के -बक्के रह गए। खुद मुझे भी खासी हैरत हुई। मुझे भी यही लगा कि शायद लड़कियों का सेल्फी लेना सुषमा स्वराज को पसंद नहीं आया। सेल्फी ले रही तीनों लड़कियों में से एक के मुंह से सिर्फ मैम ही निकल पाया था कि सुषमा ने फिर से स्टॉप बोला। स्टाप के बाद उन्होंने आगे कहा एंड डोंट टेक सेल्फी इन कांग्रेस स्टाइल। इतने पर भी किसी को कुछ समझ नहीं आया।
लोग जब तक कुछ सोचते, उन्होंने हिन्दी में बात शुरू करते हुए तीनों लड़कियों को अपने पास बुलाया और कहा कि अगर सेल्फी लेनी थी तो इतनी दूर से क्यों ले रही थीं। सेल्फी तो नजदीक से ज़्यादा अच्छी आती है। फिर उन्होंने एक भी पल की देर किये बिना कहा कि आप लोग डर क्यूं रहीं थीं। क्या हम लोग डराने वाले नेता लगते हैं। उन्होंने तीनों लड़कियों को अपने बगल में खड़ा कराया और उनके कंधे पर हाथ रखकर फ़िर से सेल्फी लेने को कहा। लडकियां तब भी हिचक रही थीं तो उन्होंने बगल वाली दोनों लड़कियों को सीने से लगा लिया और उनकी हिम्मत बढ़ाते हुए कहा कि हम लोग कांग्रेस पार्टी के नेता नहीं हैं कि हमारे पास कोई सेल्फी लेने भी न आ सके। आप लोग अच्छे से सेल्फी लीजिये।
सुषमा स्वराज को जब लगा कि चार पांच क्लिक के बाद भी शायद ठीक से तस्वीर नहीं आ रही है तो उन्होंने मुझसे मुखातिब होते हुए कहा कि पत्रकार महोदय जी ज़रा आप इन बच्चियों के मोबाइल से हमारे साफ़ फोटो खींच दीजिये, तो वह बढ़िया हो जाएगी। मैंने फ़ौरन एक लड़की का मोबाइल अपने हाथ में लेकर उसे अपने तब के कैमरामैन आनंद राज को दिया। आनंद ने उन सभी की कई फोटो खींचीं। फोटो खींचने के बाद सुषमा ने तीनों लड़कियों से कुछ देर बात भी की। उनसे उनकी पढ़ाई के बारे में पूछा। किस फील्ड में कैरियर बनाना चाहती हैं, उसके बारे में जानकारी ली। कुछ देर पहले आपस में फर्राटेदार अंग्रेजी बोल रही लडकियां पल भर में ही उनकी मुरीद हो गईं। लडकियां जब उनके पैर छूने के लिए झुकीं तो उन्होंने मना किया और उनके सिर पर हाथ फेरते हुए अपना आशीर्वाद दिया और देश के लिए कुछ करने की नसीहत दी।
बमुश्किल सवा से डेढ़ मिनट के इस घटनाक्रम के दौरान कई रंग देखने को मिले। इस वाकये का आंखों देखी गवाह होने की वजह से मेरी नज़र में उनकी इज्जत और बढ़ गई। कार में बैठते वक्त उन्होंने मुझसे व वहां मौजूद दूसरे लोगों से मुखातिब होते हुए कहा कि कांग्रेस के लोग तो अपने आस पास किसी को फटकने नहीं देखते। मुझे लगा कि शायद लडकियां डर की वजह से नजदीक आने के बजाय दूर से ही सेल्फी ले रही हैं, इसीलिये मैंने उन्हें रोककर अपने पास बुला लिया। बहुत प्यारी बच्चियां थीं यह। उनकी इन बातों ने खुद मुझे पर व वहां मौजूद सभी लोगों पर गहरा असर डाला। हम सभी उनसे काफी प्रभावित हुए कि वह किस तरह एक अदने से युवा का भी ख्याल रखती हैं। उसके बारे में सोचती हैं।
2016 की इस घटना से कुछ साल पहले भी महिला मोर्चे के एक कार्यक्रम के उदघाटन के सिलसिले में भी वह इलाहाबाद आईं थीं। वह सर्किट हाउस में ठहरी थीं। पार्टी ने दोपहर तीन बजे उनकी प्रेस कांफ्रेस रखी थी। हालांकि किन्ही वजहों से उन्हें प्रेस कांफ्रेंस की जानकारी नहीं हो पाई थी। सारे मीडियाकर्मियों के पहुंचने के बाद उन्हें जानकारी हुई तो करीब बीस मिनट बाद वह कांफ्रेंस हॉल में पहुंची। उन्होंने देर से आने पर एक -दो बार नहीं बल्कि आठ बार माफी मांगी। तीन बार हाथ जोड़े और खुद अपनी बात रखने के बजाय पहले पत्रकारों से ही सवाल कर लेने को कहा, ताकि जिन्हे देर हो रही हो, वह जल्द वापस हो सकें। प्रेस कांफ्रेंस की औपचारिकता ख़त्म होने के बाद उन्होंने मुझसे व बाकी मीडियाकर्मियों से काफी देर तक बातचीत की और पार्टी को मजबूत करने के लिए सुझाव भी मांगे।
एक बार यूपी बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष पंडित केशरीनाथ त्रिपाठी का चुनाव प्रचार करने के लिए भी वह इलाहाबाद आईं थीं। इस दौरान वह पार्टी के एक नेता के घर गईं। मैं खुद मीडिया के तीन दूसरे दोस्तों के साथ उनसे औपचारिक बातचीत करने के लिए पहुंचा। हम लोग जब वहां पहुंचे तो वह चाय पी रही थीं। उन्होंने फ़ौरन हम लोगों के लिए भी चाय लाने को कहा। उन्हें आगे जनसभा को संबोधित करने जाना था। कार्यकर्ता फ़ौरन सभास्थल पर चलने की ज़िद किये हुए थे। मौके की नजाकत को भांपते हुए हम लोगों ने भी चाय छोड़कर बातचीत करने का अनुरोध किया लेकिन उन्होंने साफ़ कहा कि यह शिष्टाचार के खिलाफ हैं। वह हम लोगों से बातचीत तो करेंगी, लेकिन हमारे चाय पीने के बाद ही। करीब पंद्रह मिनट बाद चाय आई तो केतली से उन्होंने हमारे कप में खुद ही चाय निकाली और खुद भी फिर से दो चुस्की ली।
सुषमा स्वराज के साथ हुई यह तीनों मुलाकातें मेरे जेहन में अब भी ताजा हैं। तीनों मुलाकातें बेहद यादगार रहीं। खासकर 2016 का वाकया तो अक्सर ही याद आता रहता है। यही उनका इलाहाबाद का आख़िरी दौरा था। उस वक्त यह सोचा भी नहीं था कि एक जनप्रिय नेता व महान शख्सियत से यह मेरी आख़िरी मुलाकात होगी। सुषमा स्वराज उन चुनिंदा नेताओं में हैं, जिनसे मैं व्यक्तिगत जीवन में काफी प्रभावित हुआ और उनसे काफी कुछ सीखा भी। इस महान शख्सियत को मेरी तरफ से भी विनम्र श्रद्धांजलि - आख़िरी सलाम।