Allahabad High Court Order: देश में बढ़ रही साम्प्रदायिक खबरों के बीच इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सांप्रदायिक हिंसा के एक आरोपी की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए अहम टिप्पणी की है. हाई कोर्ट ने कहा कि देश की गंगा जमुनी तहजीब सिर्फ भाषणों में कही जाने वाली रस्म भर नहीं है, इसे हमारे कार्यों में दिखना चाहिए.


उत्तर प्रदेश की अदालतें 'डू-गुड' मिशन पर काम कर रही हैं. एक अदालत द्वारा एक किशोर को अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए 'गौशाला' में काम करने के लिए कहने के बाद, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक आरोपी को इस शर्त पर जमानत दी है कि वह इस क्षेत्र में 'ठंडा' पानी और शर्बत बांटेगा.


घृणा व्यक्ति का सिर्फ शरीर समाप्त कर सकती है
कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश राज्य की प्रकृति भारतीय दर्शन में भावनाओं और विचारों को अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता को दर्शाती है. सभी धर्मों का सार और भारत का धर्म लोगों के प्रति प्रेम है. किसी की घृणा व्यक्ति का सिर्फ शरीर समाप्त कर सकती है लेकिन मानवता के प्रति उसके प्रेम को नहीं समाप्त कर सकती. न्यायमूर्ति अजय भनोट ने भीड़ हिंसा के आरोपी युवक नवाब की जमानत अर्जी मंजूर करते हुए सामाजिक सौहार्द पौदा करते हुए यह अनूठा आदेश दिया.


यूपी विधानसभा चुनाव के बाद फैली थी हिंसा
दरअसल व्यक्ति पर उस भीड़ का हिस्सा होने का आरोप लगाया गया था, जो उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद सामूहिक झड़पों में शामिल था. न्यायमूर्ति अजय भनोट ने आवेदक को जमानत पर रिहा करने का निर्देश देते हुए आरोपी नवाब के सामने यह शर्त रखी. इससे पहले, याचिकाकर्ता के वकील ने बताया था कि संबंधित पक्ष एक हफ्ते के लिए हापुड़ जिले में एक सार्वजनिक स्थान पर अपनी पसंद की तारीख और समय पर राहगीरों और प्यासे यात्रियों को शर्बत और पानी परोसेगा ताकि वे सौहार्द को बढ़ावा दे सकें.


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स्थानीय पुलिस और प्रशासन मदद करे
कोर्ट ने निर्देश दिया कि पक्ष इस संबंध में हापुड़ के पुलिस अधीक्षक और हापुड़ के जिलाधिकारी को आवेदन कर सकते हैं. कोर्ट ने आगे कहा, "स्थानीय पुलिस और प्रशासन यह सुनिश्चित करेंगे कि उचित व्यवस्था की जाए ताकि गतिविधि शांति से और बिना किसी बाधा के जारी हो सकें और सद्भावना और सौहार्द पैदा कर सके."


कोर्ट ने महात्मा गांधी का दिया उदाहरण
कोर्ट ने महात्मा गांधी और उनके बलिदान का उदाहरण देते हुए आगे कहा कि अलग-अलग रास्तों के साधकों को उन्हें याद करना अच्छा होगा, जो अपने जीवन और उनकी मृत्यु के तथ्य से हमें याद दिलाते हैं. स्वतंत्रता के महत्व पर जोर देते हुए अदालत ने आगे कहा कि भारतीयों की कई पीढ़ियों ने गुलामी की बेड़ियों से आजादी पाने के लिए अपना खून, पसीना, आंसू और परिश्रम दिया.


बता दें कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के बीच हुए विवाद के बाद प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जो उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद हिंसक विवाद में बदल गया था. हापुड़ जिले के सिम्भावली थाने में धारा 307 (हत्या का प्रयास) और आईपीसी की अन्य धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है. आवेदक 11 मार्च से जेल में है. सत्र न्यायाधीश हापुड़ ने 11 अप्रैल को आवेदक की जमानत अर्जी खारिज कर दी थी.


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