नई दिल्लीः विरासत में आंदोलन और किसान नेता के रूप में मिली पहचान को राकेश टिकैत अब भी कायम रखे हुए हैं. यही कारण है कि अभी किसानों का एक बहुत बड़ा वर्ग इनपर भरोसा करता है. खेती किसानी की बात करने और किसानों के लिए मुखर रहने वाले राकेश टिकैत को किसान किसी अन्य नेता की तुलना में ज्यादा तवज्जो देते हैं. किसानों का उनपर किया गया यही भरोसा आगे बढ़ने, किसानों के लिए लड़ने और सरकार से दो-दो करने का जज्बा पैदा करता है. किसानों का उनपर भरोसे का ही नतीजा है कि जब 52 वर्षीय टिकैत एक आवाज लगाते हैं तो तो हजारों किसान एकजुट होकर कूच कर जाते हैं और जब रो देते हैं तो देखते ही देखते किसानों का हुजूम उनके समर्थन के लिए आसपास इकट्ठा हो जाते हैं. ऐसे में हर किसी के मन में यह सवाल उठता है कि कौन हैं ये राकेश टिकैत जिनके लिए किसान एक आवाज पर संगठित हो जाते हैं?
पिता के नक्शे कदम पर चले राकेश टिकैत
4 जून 1969 को जन्में राकेश टिकैत किसान नेता हैं. इस वक्त उनके पास भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) की कमान है और यह संगठन उत्तर प्रदेश और उत्तर भारत के साथ-साथ देश के कई राज्यों में फैला हुआ है. किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत के घर दूसरे बेटे के रूप में जन्में राकेश टिकैत अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए सबकुछ छोड़कर किसानों के बीच अपनी जिंदगी बितानी शुरू की. मेरठ यूनिवर्सिटी से एमए की डिग्री लेने और एलएलबी की पढ़ाई के बाद राकेश टिकैत दिल्ली पुलिस में कॉन्स्टेबल की नौकरी कर रहे थे. लेकिन, एक मौका ऐसा आया जब बर्दी और जूते उतारकर टिकैत ने धोती और पगड़ी धारण कर किसानों के बीच उतर गए.
दरअसल हुआ यूं कि साल 1993-1994 में किसानों के मुद्दे को लेकर दिल्ली के लाल किले पर महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में आंदोलन चलाया जा रहा था. चूंकि राकेश टिकैत इसी परिवार से आते थे, इस कारण सरकार ने आंदोलन खत्म कराने के लिए उनपर दबाव बनाया. सरकार की ओर से उन्हें कहा गया कि वह अपने पिता और भाइयों से बात करें और आंदोलन को खत्म करने के लिए कहें.
किसानों के लिए छोड़ दी दिल्ली पुलिस की नौकरी
प्रशासन की ओर से दबाव के बाद भी राकेश टिकैत नहीं झुंके और पुलिस की नौकरी छोड़ कर किसानों के मुद्दे पर उनके साथ हो गए. नौकरी छोड़ने के बाद राकेश टिकैत ने पूरी तरह से किसानों की लड़ाई में हिस्सा लेना शुरू कर दिया. जल्द ही किसानों ने राकेश टिकैत को अपना नेता मान लिया. इसे महज संयोग ही कहा जा सकता है कि उनके पिता महेंद्र सिंह टिकैत की कैंसर से मृत्यु हो गई और भारतीय किसान यूनियन की कमान पूरी तरह से उनके हाथों में आ गई.
महेंद्र सिंह बालियान खाप से आते थे इस कारण उनकी मृत्यु के बाद बड़े बेटे नरेश टिकैत को भारतीय किसान यूनियन का अध्यक्ष बनाया गया. खाप के नियमों के मुताबिक पिता की मृत्यु के बाद बड़ा बेटा ही मुखिया हो सकता है. ऐसे में नरेश टिकैत को अध्यक्ष बनाया गया जबकि राकेश टिकैत को यूनियन का प्रवक्ता बनाया गया. अप्रत्यक्ष तौर पर भारतीय किसान यूनियन की कमान राकेश टिकैत के हाथों में ही है. यही कारण है कि उनकी सहमति से ही सभी फैसले लिए जाते हैं.
कैसे पड़ी किसान यूनियन की नींव
दरअसल हुआ ये था कि उत्तर प्रदेश में बिजली के दाम बढ़ा दिए गए थे. बिजली के दाम बढ़ते ही किसान भड़क उठे और किसानों ने शामली जनपद के करमुखेड़ी में महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में एक बड़ा आंदोलन किया. प्रदर्शन के दौरान दो किसान जयपाल ओर अकबर की मौत पुलिस की गोली लगने से हो गई. जिसके बाद साल 1987 में भारतीय किसान यूनियन की नींव रखी गई और चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत को इस यूनियन का अध्यक्ष चुना गया.
राकेश टिकैत का परिवार
महेंद्र टिकैत के चार बेटे हैं दो बेटा नरेश और राकेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन के साथ जुड़े हुए हैं जबकि सुरेंद्र टिकैत मेरठ के एक शुगर मिल में मैनेजर के तौर पर काम करते हैं. सबसे छोटा बेटा नरेंद्र टिकैत खेती का काम करते हैं. राकेश टिकैत की शादी साल 1985 में बागपत जनपद के दादरी गांव में हुई. राकेश टिकैत तीन बच्चों के पिता हैं जिसमें दो बेटी है जबकि एक बेटा है. बेटे का नाम चरण सिंह है जबकि बेटी की नाम सीमा और ज्योति है.
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