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6 साल में 5 चुनाव हारे, अखिलेश फिर भी शिवपाल को आगे लाने में क्यों कतरा रहे हैं?

अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी पिछले 6 साल में 5 चुनाव हार चुकी है. इनमें एक लोकसभा, 2 विधानसभा और 2 निकाय के चुनाव शामिल हैं.

उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव में मिली करारी हार के बाद समाजवादी पार्टी के भीतर ही बवाल मचा हुआ है. कार्यकर्ता और समर्थक सोशल मीडिया पर ही संगठन और नेतृत्व पर सवाल उठा रहे हैं.

खुद शिवपाल यादव ने भी संगठन की मजबूती पर जोर दिया है. शिवपाल यादव ने कहा कि 2024 अगर जीतना है, तो संगठन को मजबूत बनाना होगा. सपा समर्थक सोशल मीडिया पर शिवपाल यादव को ही प्रदेश अध्यक्ष बनाने की मांग कर रहे हैं.  लेकिन अखिलेश यादव उनको पार्टी में शामिल करने के बाद भी आगे नहीं ला रहे हैं.

अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी पिछले 6 साल में 5 चुनाव हार चुकी है. इनमें एक लोकसभा, 2 विधानसभा और 2 निकाय के चुनाव शामिल हैं. 

अखिलेश के नेतृत्व में ही सपा रामपुर और आजमगढ़ जैसा अपना मजबूत किला भी गंवा दिया है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि लगातार हार के बावजूद अखिलेश जीत की संजीवनी क्यों नहीं खोज पा रहे हैं?

नगर निकाय में फिसड्डी सपा
नगर निकाय चुनाव में समाजवादी पार्टी इस बार बुरी तरह हारी है. सभी नगर निगम के 17 में से एक भी सीट सपा नहीं जीत पाई. 9 सीटों पर ही सपा दूसरे नंबर पर रह पाई. 3-3 सीटों पर बीएसपी और कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही. बरेली और मेरठ में निर्दलीय और AIMIM ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी. 

नगरपालिका के 199 सीटों में से सपा को सिर्फ 35 पर जीत मिली. सपा मैनपुरी में भी चुनाव हार गई. वहीं नगर पंचायत की बात करें तो 544 में से 89 सीटों पर सपा अपना अध्यक्ष बनाने में कामयाब हो पाई. कानपुर-लखनऊ नगर निगम में सपा उम्मीदवार को 2 लाख से ज्यादा वोटों से हार का सामना करना पड़ा.

वहीं सहारनपुर में सपा गठबंधन के उम्मीदवार तीसरे नंबर पर रहे. लखनऊ, कानपुर और सहारनपुर में खुद अखिलेश यादव ने कैंपेन का मोर्चा संभाला था. प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल चुनाव के दौरान जौनपुर, फर्रुखाबाद, बरेली और वाराणसी में प्रचार करने पहुंचे थे, जहां सपा की करारी हार हुई है.

चुनाव में बीएसपी, कांग्रेस के साथ ही आम आदमी पार्टी, एआईएमआईएम जैसी पार्टियां भी मजबूत हुई है, जो आमने-सामने के मुकाबले में सपा की टेंशन बढ़ा सकती है.

अखिलेश-पटेल 6 साल में 5 चुनाव हारे
2017 में समाजवादी पार्टी में बड़ा बदलाव हुआ था और अखिलेश यादव राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे. अखिलेश ने उस वक्त मुलायम के करीबी नरेश उत्तम पटेल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था. अखिलेश-पटेल के नेतृत्व में सपा 2017 का विधानसभा चुनाव, 2017 का निकाय चुनाव हार गई थी.

इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा ने बीएसपी के साथ गठबंधन कर लिया, लेकिन पार्टी को सफलता नहीं मिली. 2022 विधानसभा चुनाव के बाद अब 2023 के निकाय चुनाव में सपा को करारी हार मिली है. सपा के इस हार को लोकसभा चुनाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है. 

कई प्रयोग किए, लेकिन नहीं मिली सफलता
अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में बीजेपी को मात देने के लिए पिछले 6 चुनाव में अब तक कई प्रयोग किए हैं, लेकिन सफलता नहीं मिली. 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया, लेकिन अखिलेश सरकार रिपीट नहीं कर पाए.

निकाय चुनाव में सपा ने अकेले लड़ने का फैसला किया, जिसके बाद पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया. 2019 के चुनाव में बीएसपी और आरएलडी के साथ सपा ने गठबंधन किया, लेकिन इसका फायदा सपा को नहीं हुआ. डिंपल यादव कन्नौज सीट से चुनाव हार गई.

2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने बीएसपी से आए नेताओं को काफी तरजीह दी. पश्चिमी यूपी में आरएलडी को अधिक सीटें भी दी गई, लेकिन इस बार भी सपा का प्रयोग सफल नहीं हो पाया. निकाय चुनाव में सपा ने बीजेपी को टक्कर देने के लिए मजबूत घेराबंदी की थी, लेकिन फिर असफल रहे.

बार-बार प्रयोग असफल होने पर अखिलेश यादव बयान भी दे चुके हैं. सपा सुप्रीमो ने कहा था कि इंजीनियरिंग का छात्र रहा हूं और प्रयोग करता रहता हूं. जरूरी नहीं कि हर प्रयोग सफल हो जाए.

जीत की संजीवनी क्यों नहीं ढूंढ पा रहे अखिलेश?
सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी चुनाव-दर-चुनाव हार रही है. हर हार के बाद सपा का शीर्ष नेतृत्व पुलिस और प्रशासन पर ही ठीकरा फोड़ दे रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सपा की हार की वजह सिर्फ पुलिस और प्रशासन है? 

हाल ही में मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव में पुलिस और प्रशासन की मजबूत घेराबंदी के बावजूद सपा ने बड़ी जीत दर्ज की थी. इसी तरह 2022 के चुनाव में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के जिले कौशांबी में भी सपा ने क्लीन स्विप किया था. 

2022 के चुनाव में आजमगढ़, अंबेडकरनगर, गाजीपुर समेत कई जिलों में सपा ने एकतरफा जीत दर्ज की थी. हालांकि, इसके बावजूद सपा जादुई आंकड़ों से काफी दूर रह गई. आखिर लगातार हार की वजह क्या है?
 
1. संगठन कमजोर कड़ी- सपा का प्रदेश संगठन अब तक सबसे कमजोर कड़ी साबित हुआ है. 2022 चुनाव के बाद अखिलेश यादव ने संगठन के सभी इकाई को भंग कर दिया था, जिसके बाद प्रदेश अध्यक्ष की विदाई तय मानी जा रही थी. हालांकि, अखिलेश ने पटेल को पद से नहीं हटाया. 

प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद भी नरेश उत्तम पटेल अपनी कार्यकारिणी बनाने में विफल रहे. चुनाव से ऐन पहले उन्होंने बूथ समिती बनाने के लिए नेताओं को जिम्मेदारी जरूर सौंपी, लेकिन कारगर साबित नहीं हुआ. अखिलेश यादव के सबसे प्रमुख सेनापति नरेश उत्तम पटेल 2006 से ही विधान परिषद के सदस्य हैं.

पटेल अपने राजनीतिक जीवन में सिर्फ एक चुनाव जीते हैं, वो भी 1989 में विधानसभा का. पटेल के गृह जिले फतेहपुर में 2022 के चुनाव में सपा को करारी हार मिली थी. 

बाद मुलायम दौर की करे तो 2007 और 2009 में हारने के बाद मुलायम सिंह ने शिवपाल को हटाकर अखिलेश यादव को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था. सपा को 2012 के चुनाव में इसका फायदा मिला और पार्टी सरकार बनाने में सफल रही थी. 

2. टिकट बंटवारे में ढुलमुल रवैया- मुलायम सिंह के वक्त टिकट बंटवारे में स्थानीय नेताओं को तरजीह दी जाती थी. इसके अलावा मुलायम अपने करीबी जैनेश्वर मिश्र, मोहन सिंह, आजम खान और अन्य नेताओं को खूब तरजीह देते थे.

इसके मुकाबले अखिलेश की रणनीति काफी ढुलमुल रही है. हाल के निकाय चुनाव में टिकट बंटवारे के तरीके पर सवाल उठे. लखनऊ सीट से अखिलेश यादव ने एनसीपी नेता की पत्नी वंदना मिश्रा को टिकट दे दिया, जिससे वहां लोकल नेता नाराज हो गए.

इतना ही नहीं, शाहजहांपुर में टिकट की घोषणा के कुछ घंटे बाद ही सपा के उम्मीदवार ने बीजेपी का दामन थाम लिया. कानपुर में भी जिस बंदना वाजपेई को टिकट दिया गया, वो खुद चुनाव लड़ने को इच्छुक नहीं थी. मथुरा सीट पर अखिलेश यादव को अंतिम वक्त में निर्दलीय उम्मीदवार को समर्थन करना पड़ा.

3. पश्चिम यूपी में बड़े नेता नहीं- पूर्वांचल और आलू बेल्ट में बीजेपी को मजबूती से टक्कर देने वाली सपा के पास पश्चिमी यूपी में बड़ा नेता नहीं है. मुलामय के वक्त नरेंद्र भाटी, सुरेंद्र नागर जैसे दिग्गज नेता सपा में थे, लेकिन अब दोनों बीजेपी में चले गए. 

सपा पश्चिमी यूपी में आरएलडी से गठबंधन तो करती है, लेकिन सीटें जीतने में कामयाब नहीं हो पाती है. अखिलेश की राजनीति पूर्वांचल और पोटैटो बेल्ट में सिमटकर रह गई है.

अखिलेश ने सहारनपुर में जीत के लिए भीम आर्मी के चंद्रशेखर के साथ भी प्रेस कॉन्फ्रेंस किया, लेकिन यह रणनीति भी काम नहीं आई.

4. मुस्लिम समीकरण भी गड़बड़ाया- आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में हार के बाद से ही सपा मुस्लिम वोटबैंक को बचाने में जुटी है. निकाय चुनाव में भी सपा को मुस्लिम बहुल जिलों में हार का सामना करना पड़ा है. 

सपा के भीतर ही मुस्लिम नेता अखिलेश से नाराज हैं. आजम खान पर सरकार की कार्रवाई का मुद्दा भी अखिलेश पुरजोर तरीके से नहीं उठा पाए. आजम के परिवार से रामपुर का गढ़ छीन गया है.

सपा के एक और सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने हाल ही में अखिलेश के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. बर्क ने संभल में सपा के बजाय निर्दलीय उम्मीदवार को समर्थन दे दिया. कांग्रेस से आए इमरान मसूद भी उपेक्षा का आरोप लगाते हुए सपा का दामन छोड़ दिया था.

अब सवाल- शिवपाल को क्यों आगे नहीं कर रहे अखिलेश?
पहले मैनपुरी उपचुनाव और फिर नगर निकाय चुनाव के दौरान इटावा-जसवंतनगर बेल्ट में दम दिखाने के बाद समर्थकों के बीच शिवपाल यादव चर्चा में हैं. सपा संगठन में दूसरा बड़ा पद प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी शिवपाल को क्यों नहीं दी जा रही है?

मुलायम सिंह के वक्त शिवपाल ही सपा की रणनीति तैयार करते थे. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि शिवपाल को रणनीति बनाने का काम देने से अखिलेश क्यों कतरा रहे हैं?

मैनपुरी उपचुनाव के दौरान शिवपाल ने भरी सभा में अखिलेश से कहा था कि मुझ पर एक बार भरोसा कीजिए, नेताजी की तरह कभी निराश नहीं करुंगा. शिवपाल को इसके बाद सपा में राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया, लेकिन संगठन में क्या काम करेंगे यह जवाबदेही तय नहीं है. 

सपा में प्रदेश अध्यक्ष ही टिकट बंटवारे में बड़ी भूमिका निभाते हैं. अगर शिवपाल को अध्यक्ष बनाया जाता है, तो अखिलेश समर्थकों को झटका लग सकता है और पार्टी में गुटबाजी बढ़ सकती है, इसलिए अखिलेश रिस्क नहीं लेना चाहते हैं.

साथ ही परिवार के ही दो व्यक्ति के पास 2 अध्यक्ष पद को लेकर सवाल उठ सकता है. अखिलेश यादव पटेल के जरिए कुर्मी वोटरों को भी साधना चाहते हैं और सपा में नरेश उत्तम के बाद बड़े कुर्मी नेताओं की कमी है.

2024 के लिए एक और प्रयोग या संगठन में सर्जरी?
निकाय चुनाव में करारी हार के बाद अब सवाल उठ रहा है कि 2024 के लिए अखिलेश यादव एक और प्रयोग करेंगे या सपा संगठन में सर्जरी होगी? जून तक सपा ने बूथ समिति गठन करने का लक्ष्य रखा है. बूथ समिति के गठन के बाद सपा में आगे बदलाव की संभावनाएं जताई जा रही है. 

हालांकि, नरेश उत्तम पटेल हटेंगे या नहीं? इस पर सस्पेंस बना हुआ है. पटेल 2022 में दोबारा सपा के प्रदेश अध्यक्ष चुने गए थे. 

अखिलेश यादव कांग्रेस को लेकर भी नर्म हैं. कर्नाटक चुनाव के बाद उन्होंने ट्वीट कर कांग्रेस को बधाई दी थी. अगर नीतीश कुमार और मल्लिकार्जुन खरगे की रणनीति कारगर रही तो सपा यूपी में कांग्रेस और आरएलडी के साथ मिलकर अगला चुनाव लड़ सकती है.

ऐसे में 5-7 सीटों पर सपा को कांग्रेस से मदद मिल सकती है. इनमें रामपुर, मुरादाबाद, फतेहपुर सीकरी, मेरठ, अलीगढ़ और नोएडा सीट शामिल हैं. कांग्रेस 2022 में हार के बाद पश्चिमी यूपी पर ज्यादा फोकस कर रही है.

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