प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का उद्घाटन किया है. यह हवाई अड्डा 260 करोड़ रुपये की लागत से तैयार हुआ है. इससे उत्तर प्रदेश के साथ साथ बिहार के सटे जिलों के यात्रियों को भी होगा फायगा. इस मौके पर आपको बताते हैं कुशीनगर का इतिहास


कुशीनगर का इतिहास


बुद्ध के जन्म से पहले कुशीनगर को कुसावती और बुद्ध के जन्म के बाद कुशीनारा नाम से जाना जाता था. छठी शताब्दी ईसा पूर्व में यह सोलह महाजनपदों में से एक थी. कुशीनगर मौर्य, शुंग, कुषाण, गुप्त, हर्ष और पाल वंश के साम्राज्य का एक अभिन्न अंग था.


इतिहासकारों के मुताबिक कुशीनगर, कोसल साम्राज्य की राजधानी थी. इसकी स्थापना भगवान राम के पुत्र कुश ने की थी. जबकि बौद्ध धर्म के अनुसार इसका नाम कुशावती पहले ही रखा जा चुका था. कुशावती का नामकरण यहां पाए जाने वाले कुश घास के कारण हुआ था.


कुशीनगर बौद्ध धर्म का प्रमुख स्थान है. यहीं पर भगवान बुद्ध को निर्वाण प्राप्त हुआ था. यहां पर कई प्राचीन स्तूप हैं जिनका निर्माण सम्राट अशोक ने करवाया था. कुशीनगर में गौतम बुद्ध की कई मंदिर बनी हुई है.  




19वीं शताब्दी में परातत्व सर्वेक्षणकर्ता अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा की गई पुरातात्विक खुदाई में भगवान बुद्ध की 6.10 मीटर लंबी प्रतिमा मिली. इसके बाद 1905 से 1907 तक पुरातात्विक अभियानों की खोज जारी रही जिसमें बौद्ध से जुड़ी कई अन्य वस्तुएं मिली. साल 1903 में बर्मा संन्यासी और चंद्र स्वामी भारत आए और महापरिनिर्वाण मंदिर को एक जीवित मंदिर का रूप दिया.


आजादी के बाद कुशीनगर, देवरिया जिले का हिस्सा रहा. 13 मई साल 1994 को इसे कुशीनगर को अलग जिला बना दिया गया.


भौगोलिक स्थिति


कुशीनगर 2906 स्क्वायर किलोमीटर में बसा हुआ है. यह राष्ट्रीय राजमार्ग 24 पर स्थित है. गोरखपुर से इस जिले की दूरी लगभग 51 किलोमीटर है. कुशीनगर से 20 किलोमीटर पूर्व में बिहार राज्य है. इस जिले की आबादी लगभग  3,564,544 है. पुरूषों की संख्या  1,818,055 और महिलाओं की संख्या 1,746,489 है. कुशीनगर के अंतर्गत 6 तहसील, 19 पुलिस स्टेशन और 1620 गांव आते हैं. यहां हिंदी और भोजपुरी बोली जाती है. कुशीनगर की साक्षरता दर 2011 की जनगणना के अनुसार 78.4 है.


पर्यटन स्थल


महानिर्वाण मंदिर



कुशीनगर के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक महानिर्वाण मंदिर है. यहां बुद्ध की 6.10 मीटर लंबी प्रतिमा स्थापित है. यह प्रतिमा साल 1876 में खुदाई के दौरान प्राप्त हुई थी. प्रतिमा चुनार के बलुआ पत्थरों को काटकर बनाई गई थी. अभिलेखों से पता चलता है कि इस प्रतिमा का संबंध पांचवीं शताब्दी से है.


निर्वाण स्तूप


इस स्तूप की खोज साल 1876 में हुई थी. इसकी ऊंचाई 2.74 मीटर है. खुदाई के दौरान एक तांबे की नाव मिली. इस पर खुदे अभिलेखे के अनुसार इसमें बुद्ध की चिता की राख रखी गई थी.


माथाकुंवर मंदिर


यह मंदिर निर्वाण स्तूप से 400 गज की दूरी पर स्थित है. इस मंदिर में स्थापित प्रतिमा का संबंध 10-11 वीं शताब्दी से है. खुदाई के दौरान एक मठ के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं.


रामभर स्तूप


महापरिनिर्वाण मंदिर से लगभग 1.5 किलोमीटर दूर 15 मीटर ऊंचा रामाभर स्तूप स्थित है. ऐसा माना जाता है कि यहां पर महात्मा बुद्ध को दफनाया गया था.


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