17 महीने बाद समाजवादी पार्टी ने राज्य कार्यकारिणी की भारी-भरकम सूची जारी कर दी है. 182 सदस्यों की सूची में नरेश उत्तम पटेल को उत्तर प्रदेश सपा अध्यक्ष पद पर बरकरार रखा गया है. शिवपाल यादव के सपा में वापस आने के बाद पटेल के कुर्सी से हटने की अटकलें लग रही थी. 


यूपी के सियासी गलियारों में कहा जा रहा था कि लगातार हार के बाद सपा संगठन में जान फूंकने के लिए अखिलेश प्रदेश अध्यक्ष बदल सकते हैं. चर्चा यहां तक थी कि पटले की जगह पर शिवपाल यादव, राम अचल राजभर, इंद्रजीत सरोज में से किसी को अध्यक्ष बनाया जा सकता है, लेकिन लिस्ट जारी कर अखिलेश ने सभी अटकलों पर विराम लगा दिया है.


सपा में प्रदेश अध्यक्ष का पद संगठन के भीतर नंबर-2 का माना जाता है. 2017 में शिवपाल यादव को हटाकर अखिलेश ने नरेश उत्तम पटेल को अध्यक्ष बनाया था. हालांकि, पटेल के नेतृत्व में सपा लगातार चुनाव हार रही है. 


पिछले 6 साल में नरेश के नेतृत्व में सपा 2 विधानसभा, 2 निकाय और 1 लोकसभा का चुनाव हार चुकी है. 


सपा में प्रदेश अध्यक्ष पद कितना महत्वपूर्ण?
समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश की मूल पार्टी है, इसलिए यहां प्रदेश अध्यक्ष का अहम रोल होता है. सपा की स्थापना के वक्त मुलायम सिंह यादव ने क्षेत्रीय स्तर पर नेताओं को गोलबंद किया. सपा में प्रदेश अध्यक्ष ही इन नेताओं के कामकाज की मॉनिटरिंग करते हैं. 


प्रदेश अध्यक्ष ही टिकट बंटवारे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. सपा में रामशरण दास, अखिलेश यादव और शिवपाल यादव जैसे दिग्गज नेता इस पद पर रह चुके हैं. 2017 में अखिलेश और शिवपाल में प्रदेश अध्यक्ष को लेकर ही बवाल मचा था. 


मुलायम-शिवपाल के वक्त कहा जाता था कि दिल्ली का फैसला नेताजी करते हैं, जबकि यूपी का फैसला चाचाजी. यानी दिल्ली से जुड़े सभी फैसला मुलायम सिंह लेते हैं और यूपी से जुड़े शिवपाल यादव.


2017 में अध्यक्ष बनाए गए, 5 चुनाव हारे
मुलायम सिंह के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटने के बाद 2017 में अखिलेश यादव को सपा की कमान मिली. अखिलेश ने नरेश उत्तम पटेल को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी. 


तब से नरेश पटेल सपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं. सितंबर 2022 में उन्हें एक बार फिर से सपा प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी मिली. नरेश पटेल के अध्यक्ष बनने के बाद सपा ने जीत का स्वाद नहीं चखा. 2017 के विधानसभा चुनाव में पहली बार पटेल के अध्यक्षी में सपा मैदान में उतरी. 


2017 में 298 सीटों पर सपा चुनाव लड़ी, लेकिन पार्टी 47 सीट ही जीत पाई. कई बड़े नेता चुनाव हार गए. हार का ठीकरा अखिलेश की नीति और कमजोर संगठन पर फूटा.


इसके तुरंत बाद हुए पंचायत और निकाय चुनाव में भी सपा बुरी तरह हारी. एक भी मेयर सीट पर सपा जीत दर्ज नहीं कर पाई. नगर पंचायत में भी सपा को करारी हार का सामना करना पड़ा.


2019 के लोकसभा चुनाव में सपा ने अपनी स्ट्रैटेजी बदली. मायावती की पार्टी के साथ 24 साल बाद सपा ने गठबंधन किया. 37 सीटों पर बीएसपी और 36 सीटों पर सपा ने अपने कैंडिडेट उतारे. 


गठबंधन को 15 सीटों पर जीत तो मिली, लेकिन सपा को कोई फायदा नहीं हुआ. कन्नौज, बदायूं और फिरोजाबाद जैसे अहम सीटों पर सपा चुनाव में हार गई. हार के बाद मायावती ने सपा के कमजोर संगठन को निशाने पर लिया और गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया.


2022 के विधानसभा चुनाव में भी सपा को हार का सामना करना पड़ा. सपा ने प्रदेश कार्यकारिणी को तुरंत भंग कर दिया. इसके बाद सपा के भीतर कई नेताओं ने नरेश पटेल के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. 


सपा के व्यापार सभा के प्रदेश सचिव जितेंद्र पटेल ने तो पत्र लिखकर नरेश पटेल को हटाने की मांग कर दी थी. हालांकि, पटेल पर कोई एक्शन नहीं लिया गया. यूपी विधानसभा चुनाव के बाद 2023 में हुए निकाय चुनाव में भी सपा को करारी हार मिली. 


गढ़ में भी सपा को जीत नहीं दिला पाए नरेश
नरेश उत्तम पटेल फतेहपुर जिले से आते हैं. यहां विधानसभा की कुल 6 सीटे हैं. नरेश पटेल फतेहपुर के जहानाबाद से विधायक रह चुके हैं. 2022 के चुनाव में सपा यहां से बुरी तरह हारी. फतेहपुर की 6 में से 2 सीट पर ही सपा को जीत मिली. इनमें फतेहपुर और हुस्सैनगंज सीट शामिल हैं.


वहीं बाकी के 4 सीटों पर बीजेपी गठबंधन को जीत मिली. निकाय चुनाव में भी फतेहपुर जिले में सपा को हार का सामना करना पड़ा. बात लोकसभा की करें तो 2014 और 2019 के चुनाव में भी सपा फतेहपुर सीट जीत नहीं पाई.


फिर भी नरेश क्यों बने हैं अखिलेश के लिए उत्तम?
शिवपाल यादव के साथ आने के बाद नरेश उत्तम पटेल के हटने की अटकलें लग रही थी, लेकिन कार्यकारिणी की घोषणा के बाद यह स्पष्ट हो गया कि अब पटेल नहीं जाएंगे. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि नरेश आखिर अखिलेश के लिए क्यों उत्तम बने हुए हैं?


1. कुर्मी चेहरा, अखिलेश के किचन कैबिनेट में शामिल- उत्तर प्रदेश की सियासत में अखिलेश यादव ओबीसी वोटबैंक पर मजबूत पकड़ बनाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. यूपी में करीब 40 प्रतिशत ओबीसी हैं, जिसमें 9 प्रतिशत यादव और 6 प्रतिशत कुर्मी हैं. 


नरेश को अध्यक्ष बनाए रहने के पीछे कुर्मी जाति का तर्क मजबूती से दिया जाता है. 2017 से पहले नरेश सपा के पिछड़ा प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष थे.  पटेल की गिनती अखिलेश यादव के करीबी नेताओं में होती है. सियासी गलियारों में उन्हें अखिलेश के किचन कैबिनेट का सदस्य माना जाता है.


यही वजह है कि तमाम विरोध के बावजूद भी नरेश उत्तम पटेल को अध्यक्ष पद से नहीं हटाया गया. 


2. मजबूत पकड़ नहीं, भविष्य में ज्यादा खतरा नहीं- सपा संगठन में नरेश उत्तम पटेल की मजबूत पकड़ नहीं है. जानकारों का कहना है कि संगठन के भीतर पटेल की छवि प्रोक्सी प्रेसिडेंट की है. मजबूत पकड़ नहीं होने की वजह से अखिलेश को भविष्य में ज्यादा सियासी खतरा नहीं है.


मुलायम परिवार से बाहर जितने भी बड़े नेता संगठन में हैं, क्षेत्र में उनकी पकड़ काफी मजबूत है. सियासी तौर पर यह अखिलेश के लिए नुकसानदायक हो सकता है. 


सपा से जुड़े एक नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा- अखिलेश वर्तमान में किसी नेता को अगर प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सौंपते हैं, तो सीनियरिटी का विवाद खड़ा हो सकता है. प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी नंबर-2 की कुर्सी है और इसका गलत सियासी संदेश जाएगा.


सपा ने हाल ही में बड़े नेताओं को राष्ट्रीय महासचिव का पद देकर एक साथ साधा है. इनमें चाचा शिवपाल और आजम खान जैसे कद्दावर नेताओं के नाम शामिल हैं.


3. बेदाग चेहरा, अनुशासन को तरजीह- नरेश उत्तम पटेल करीब 45 साल से राजनीति में हैं, लेकिन उन पर आपराध का एक भी मुकदमा दर्ज नहीं है. सपा में रिफॉर्म के वक्त अखिलेश ने नरेश उत्तम पटेल को कुर्सी सौंपी थी. 


जानकारों के मुताबिक पटेल पार्टी के भीतर अनुशासन को खास तरजीह देते हैं और सपा से गुंडा पार्टी ठप्पा हटाने में एक हद तक कामयाब भी हुए हैं.