(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Mainpuri By- election 2022: मैनपुरी में अखिलेश को क्यों डालना पड़ा है डेरा? कहीं डिंपल को लेकर डरा तो नहीं रहा इतिहास
Fight of Mainpuri : मैनपुरी की लोकसभा सीट को मुलायम सिंह यादव के परिवार की पैतृक सीट कहा जा सकता है. साल 1996 से इस सीट पर से समाजवादी पार्टी के अलावा कोई दूसरी पार्टी नहीं जीत पाई है.
मैनपुरी में लोकसभा का उपचुनाव कराया जा रहा है. सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन की वजह से वहां उपचुनाव कराया जा रहा है. सपा ने उनकी बहू डिंपल यादव का चुनाव मैदान में उतारा है. उनका मुकाबला बीजेपी के रघुराज सिंह शाक्य से है. इस चुनाव के लिए पूरा यादव परिवार एक नजर आ रहा है. यहां तक कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के खिलाफ बगावत का झंडा बलुंद करने वाले उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव भी डिंपल के प्रचार में पसीना बहा रहे हैं. मैनपुरी उपचुनाव को सपा ने प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है. हालत यह है कि अब तक किसी उपचुनाव में प्रचार न करने वाले अखिलेश यादव भी मैनपुरी की गलियों में डिंपल के लिए वोट मांगते हुए नजर आ रहे हैं. आइए जानते हैं मैनपुरी उपचुनाव को सपा और सैफई का यादव परिवार इतनी गंभीरता से क्यों ले रहा है.
मैनपुरी और यादव परिवार
मैनपुरी की लोकसभा सीट को मुलायम सिंह यादव के परिवार की पैतृक सीट कहा जा सकता है. साल 1996 से वहां से सपा के अलावा कोई दूसरी पार्टी नहीं जीत पाई है. मुलायम सिंह यादव ने जब उत्तर प्रदेश विधानसभा को छोड़कर देश की संसद में बैठने का फैसला किया तो उन्होंने मैनपुरी सीट को ही चुना. वो 1996 में पहली बार इसी सीट से लोकसभा के लिए चुने गए. हालांकि वो संभल और आजमगढ़ लोकसभा सीट का भी प्रतिनिधित्व कर चुके थे. अंतिम समय में भी वो मैनपुरी से ही लोकसभा के सदस्य थे. मैनपुरी से मुलायम के अलावा उनके करीबी उदय प्रताप सिंह और भतीजे धर्मेंद्र यादव और पौत्र तेज प्रताप यादव भी चुनाव जीत चुके हैं.
इस तरह से देखें तो मैनपुरी में डिंपल यादव को जीतने में बहुत अधिक दिक्कत नहीं आनी चाहिए थी. लेकिन जिस तरह यादव परिवार मैनपुरी उपचुनाव के लिए एक हुआ है और चुनाव प्रचार कर रहा है, उससे लगता है कि इस सीट पर डिंपल की राह उतनी आसान नहीं है. डिंपल की जीत के लिए सपा ने कई जतन किए हैं. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव को चुनाव प्रचार के लिए मनाया. उनके साथ मंच साझा किया. और तो और डिंपल की उम्मीदवारी की घोषणा पर सपा महासचिव प्रोफेसर रामगोपाल यादव को यह कहना पड़ा कि परिवार में राय-मशविरे के बाद ही टिकट फाइनल हुआ है. मैनपुरी के उपचुनाव का ही असर है कि अखिलेश यादव वहां से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं. मैनपुरी के साथ-साथ रामपुर और खतौली विधानसभा सीट पर भी चुनाव हो रहा है. लेकिन वो चुनाव प्रचार करने नहीं जा पाए हैं. रामपुर में सपा और खतौली में जयंत चौधरी का रालोद चुनाव लड़ रहा है.
सपा के डर की वजह क्या है
सपा को मैनपुरी में डर की वजह भी है. दरअसल अखिलेश यादव के इस्तीफे के बाद खाली हुई आजमगढ़ सीट पर हुए लोकसभा उपचुनाव में उसे हार का सामना करना पड़ा. वह भी तब जब आजमगढ़ को यादव वोट बैंक का गढ़ माना जाता है. आजमगढ़ में अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेद्र यादव उम्मीदवार थे. आजमगढ़ के साथ ही रामपुर लोकसभा सीट पर भी उपचुनाव कराया गया था. वहां भी सपा जीत नहीं पाई थी. पिछले दो लोकसभा चुनावों में सपा बुरी तरह से हार रही है. सपा ने 2019 के चुनाव को जीतने के लिए अपने चिर विरोधी मायावती की बसपा से हाथ मिलाया था. इसके बाद भी वह केवल पांच सीटें ही जीत पाई थी. यहां तक की मैनपुरी में जनसभा कर मायावती ने मुलायम सिंह यादव के लिए वोट मांगे थे. तब जाकर मुलायम सिंह यादव की जीत की राह आसान हुई थी.
वहीं डिंपल यादव का राजनीतिक सफर भी बहुत शानदार नहीं रहा है. जब वह पहली बार कन्नौज से लोकसभा का चुनाव जीती थीं, तो उसमें भी बीजेपी ने अप्रत्यक्ष तौर पर उनकी मदद ही की थी. उस उपचुनाव में कांग्रेस और बसपा ने उनके खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारा था. वहीं मैनपुरी से सटे फिरोजाबाद लोकसभा सीट पर उन्होंने पहला उपचुनाव लड़ा था, वहां उन्हें कांग्रेस के राजबब्बर के हाथों हार का सामना करना पड़ा था. फिरोजाबाद के साथ-साथ इटावा, औरैया, मैनपुरी, एटा, कन्नौज, कासगंज और फर्रुखाबाद को उत्तर प्रदेश का 'यादव लैंड' माना जाता है.
बीजेपी की रणनीति क्या है
मैनपुरी में डिंपल यादव को घेरने के लिए बीजेपी ने रघुराज सिंह शाक्य पर भरोसा जताया है. वो भी मुलायम सिंह यादव परिवार के ही करीबी हैं. उन्होंने नामांकन से पहले मुलायम सिंह की समाधी पर जाकर शीश नवाया था. वो शिवपाल सिंह यादव को अपना राजनीतिक गुरु बता रहे हैं. बीजेपी की नजर मैनपुरी के शाक्य वोटों पर है. एक अनुमान के मुताबिक मैनपुरी में एक लाख 60 हजार शाक्य मतदाता है. इसके अलावा करीब डेढ़ लाख राजपूत और एक लाख 20 हजार ब्राह्मण मतदाता हैं. इनके अलावा एक लाख के आसपास लोध है. इन सबको बीजेपी का कोर वोटर माना जाता है. इन्हीं के जरिए बीजेपी मैनपुरी को साधना चाहती है. वहीं दूसरी ओर इस सीट पर निर्णायक भूमिका यादव वोटों की है. इस सीट पर साढ़े तीन लाख से अधिक यादव मतदाता हैं. इनके अलावा मुसलमान भी ठीक-ठाक संख्या में हैं. इनको सपा का कोर वोट बैंक माना जाता है. वहीं डिंपल को मुलायम सिंह यादव के निधन से पैदा हुई सहानभूति का भी फायदा मिल सकता है.
अब यह आठ दिसंबर को ही पता चल पाएगा कि मैनपुरी की जनता किस पर भरोस जताती है, सपा या बीजेपी. मैनपुरी का चुनाव परिणाम अखिलेश यादव के लिए भी लिटमस टेस्ट जैसा होगा, क्योंकि वो अबतक अकेले के दम पर कोई चुनाव नहीं जीत पाए हैं. मैनपुरी में मतदान पांच दिंसबर को और नतीजे आठ दिसंबर को आएंगे.
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