संगम नगरी में सोलह श्रंगार के साथ महिलाओं ने किया वट सावित्री का व्रत, बरगद के पेड़ के नीचे की विशेष पूजा अर्चना
प्रयागराज में महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिये वट सावित्री का व्रत रख रही है. वे बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर पूजा अर्चना कर रही हैं.
प्रयागराज: वट सावित्री का पर्व आज संगम नगरी प्रयागराज में भी पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है. इस मौके पर सुहागिन स्त्रियां वटवृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा कर अपने सुहाग की सलामती व उसकी लंबी उम्र और अच्छी सेहत की प्रार्थना कर रही हैं. महिलाओं ने आज निर्जला व्रत भी रखा हुआ है. प्रयागराज में महिलाओं ने पहले त्रिवेणी संगम में आस्था की डुबकी लगाई और उसके बाद बरगद के पेड़ की परिक्रमा व पूजा अर्चना कर अखंड सौभाग्य की प्रार्थना की.
सुहाग की लंबी आयु के लिये किया जाता है व्रत
वट सावित्री पर्व पर बरगद की पूजा का विशेष महत्व है. महिलाएं पूरे सोलह श्रृंगार व लाल जोड़े में बरगद के पेड़ पर सूत बांधकर उसकी परिक्रमा करती हैं. वट सावित्री व्रत की कथा सावित्री व सत्यवान की कथा से जुड़ी हुई है, जहां माता सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा के लिए यमराज की प्रार्थना कर सुहाग वापस पाया था. हालांकि, इस बार कोरोना की महामारी की वजह से ज्यादातर महिलाएं घरों पर ही प्रतीकात्मक तौर पर पूजा अर्चना कर रही हैं, लेकिन इसके बावजूद बड़ी संख्या में सुहागिनें घर से बाहर निकल कर बरगद यानी वटवृक्ष की परिक्रमा कर पारंपरिक तौर पर रस्मे निभा रही हैं.
प्रयागराज का विशेष महत्व
वट सावित्री का व्रत पर्व यूं तो समूची दुनिया में श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है, पर संगम नगरी प्रयागराज में इसका विशेष महत्व है. दूसरी जगहों पर वटवृक्ष को पूजा जाता है पर प्रयागराज में गंगा यमुना और सरस्वती की त्रिवेणी पर अक्षयवट है, जिस पर भगवान् विष्णु बाल मुकुंद रूप में साक्षात विद्यमान हैं. इसके साथ ही यहां यमराज का पूरा कुनबा भी मौजूद है. यमराज के पिता भगवान भास्कर का सूर्य कुंड है तो उनकी बहन यमुना का यहीं पर मोक्षदायिनी गंगा के साथ संगम होता है. संगम के त्रिकोण में यमराज के भाई शनि का वास माना गया है. कालिंदी के तट पर ही यमराज उनकी बहन यमुना, भाई शनि और माता सावित्री का मंदिर भी है. शास्त्रों में वर्णित है की यम के पूरे कुनबे को पूजे जाने से संगम नगरी प्रयागराज में वट साविती की पूजा विशेष फलदायी होती है.
पौराणिक कथाओं के मुताबिक माता सावित्री ने अपना सुहाग बचाने को मृत्यु के देवता यमराज को फैसला बदलने पर विवश कर दिया था. इस पौराणिक घटना में माता सावित्री ने न सिर्फ अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की, बल्कि सुहाग के प्रति अपने समर्पण ऐसा अनूठा उदाहरण पेश किया कि वह समूची दुनिया में पूजी जाने लगीं. माता सावित्री से जुडी इस कथा के बाद से ही सुहागिन औरतें अपने पति की रक्षा, उनकी लम्बी उम्र की कामना और आरोग्य के लिए निर्ज़ल व्रत रहकर पूजा-अर्चना करती हैं. कहा जाता है कि माता पार्वती ने भी भगवान शिव के लिए वट सावित्री की पूजा की थी.
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