(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
जान जोखिम में डालकर सफर कर रही हैं गर्भवती महिलाएं...चलती ट्रेन में दे रही बच्चों को जन्म..पढ़ें ये रिपोर्ट
प्रवासी मजदूर अपने घर लौटने को बेचैन हैं। इसके चलते वे किसी भी हालत में सफर करने को तैयार है। एक रिपोर्ट के मुताबिक नार्थ सेंट्रल जोन में अबतक चार महिलाओं ने चलती ट्रेन में बच्चों को जन्म दिया है
प्रयागराज, मोहम्मद मोइन। कोरोना की महामारी में देश के अलग अलग हिस्सों में फंसे मजदूरों को उनके घर भेजने के लिए रेलवे द्वारा चलाई जा रही लेबर स्पेशल ट्रेंस में डिलेवरी का टाइम पूरा होने के बावजूद तमाम गर्भवती महिलाएं अपनी जान जोखिम में डालकर सफर करने से नहीं हिचक रही हैं। रेलवे द्वारा चलाई जा रही लेबर स्पेशल ट्रेनों में अकेले नार्थ सेंट्रल रेलवे ज़ोन में चार महिलाओं की चलती ट्रेन में डिलेवरी हो चुकी है। चारों महिलाएं और उनके बच्चे सुरक्षित हैं। रेलवे की मेडिकल टीम ने इनका ज़रूरी उपचार तो कर दिया है, लेकिन हैरत की बात यह है कि चारों महिलाओं ने प्रसव पीड़ा और बच्चे का जन्म होने के बावजूद ट्रेन की यात्रा का मोह नहीं छोड़ा।
रेलवे द्वारा मानीटरिंग के लिए हॉस्पिटल में रखे जाने का ऑफर दिए जाने के बावजूद ये महिलाएं ट्रेन से उतरने को तैयार नहीं हुईं और नवजात बच्चे के साथ आगे का सफर जारी रखा। इन महिलाओं व उनके परिवार वालों की दलील थी कि पचास दिन बाद उन्हें घर जाने का जो मौका मिला है, उसे वह कतई छोड़ना नहीं चाहते। उन्हें इस बात की आशंका थी कि पता नहीं फिर उन्हें ट्रेन मिलेगी भी या नहीं।
नार्थ सेंट्रल रेलवे ज़ोन के जीएम राजीव चौधरी के मुताबिक़ अकेले उनके ज़ोन में तीन दिनों में चार महिलाओं ने चलती ट्रेन में बच्चे को जन्म दिया। इन सभी को किसी स्टापेज पर मेडिकल सुविधा मुहैया कराई गई। इन्हे एहतियात के तौर पर रेलवे या सिविल अस्पतालों में रुकने का ऑफर भी दिया गया, लेकिन नहीं मानने पर इनको इस आधार पर आगे की यात्रा जारी रखने की इजाज़त दे दी गई, क्योंकि जच्चा -बच्चा दोनों स्वस्थ थे। ज़ोन के सीपीआरओ अजीत सिंह के मुताबिक़ चार मामलों में दो प्रयागराज डिवीजन के हैं, जबकि एक -एक झांसी और आगरा मंडल के। उनका कहना है कि ऐसे मामलों में रेलवे खासा संवेदनशील रहता है, इसीलिये न सिर्फ इनकी जांच कराई गई, बल्कि इन्हे मेडिकल टीम की निगरानी में अस्पताल में रुकने को भी कहा गया था।
तीन दिन में महज़ एक जोन में चार महिलाओं द्वारा श्रमिक स्पेशल ट्रेन में बच्चे को जन्म देने के मामलों से साफ़ है कि पचास दिनों के लॉकडाउन में लोग खासे परेशान हैं और वह वह अपनी जान जोखिम में डालकर भी ट्रेन का सफर करने में नहीं हिचक रहे हैं। वह बस किसी तरह घर पहुंचना चाहते हैं। हालांकि इसे उतावलापन भी कहा जा सकता है और मजबूरी भी। वजह कुछ भी हो, लेकिन लोगों के सब्र का बांध अब टूटने सा लगा है।