अयोध्या. साल 1992 में राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान केंद्र सरकार ने 67 एकड़ में स्थित राम जन्मभूमि के आसपास के मंदिरों का अधिग्रहण कर लिया था. उन मंदिरों में राग भोग और पूजन 1992 से ही बंद चल रहा था. अयोध्या विवाद पर फैसला आने के बाद ट्रस्ट का गठन हुआ और ट्रस्ट ने राम मंदिर निर्माण का कार्य शुरू किया. राम मंदिर निर्माण में बाधा बन रहे जर्जर और जीर्ण शीर्ण प्राचीन मंदिरों को जमींदोज किया गया और उनकी प्राचीन मूर्तियों को उठाकर मानस भवन में सुरक्षित रखा गया था.


हालांकि बाद में रामलला के मंदिर निर्माण में मानस भवन के कुछ हिस्से को गिराया गया. उसके बाद राम जन्मभूमि परिसर के दर्जनभर मंदिर जो प्राचीन थे जिसमें साक्षी गोपाल, सीता रसो,ई राम खजाना, लक्ष्मण भवन, आनंद भवन जैसे तमाम प्राचीन मंदिर के विग्रहों को सुरक्षित रखा गया है. अब इन विग्रहों की स्थापना श्री कारसेवक पुरम स्थित यज्ञशाला में की गई है जहां पर नियम से दोनों समय भगवान का राग भोग और आरती पूजा शुरू की गई है.


कारसेवक पुरम के यज्ञशाला पहुंचाई गई मूर्तियां
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की पहल पर राम जन्मभूमि परिसर से यह मूर्तियां कारसेवक पुरम के यज्ञशाला पहुंचाई गई हैं. बाकायदा इन मूर्तियों का साज श्रृगार, रंग-रोगन करने के पश्चात उनकी प्रतिष्ठा की गई. अब उन मूर्तियों का राग भोग पूजन चल रहा है. अभी भी बड़ी संख्या में मूर्तियां मानस भवन में से कारसेवक पुरम आना बाकी हैं. इन सभी मूर्तियों को धीरे-धीरे कारसेवक पुरम की यज्ञशाला में स्थापित किया जाएगा और यहीं पर उनका रागभोग पूजन होगा. मंदिर निर्माण के पश्चात इन मूर्तियों को दोबारा राम जन्मभूमि परिसर में ही स्थापित किया जाएगा. तब तक के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करते हुए श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने इन मूर्तियों को कारसेवक पुरम में पूजन अर्चन के लिए स्थापित कराया है.


श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि 1993 में आग्रह किए गए 70 एकड़ राम जन्मभूमि परिसर में सीता रसोई, कोहबर भवन, राम खजाना आनंद भवन, राम चरित्र मानस भवन साक्षी गोपाल इन मंदिरों का भी अधिग्रहण हुआ था, यह सारे स्थान जर्जर थे और राम जन्म भूमि के मंदिर निर्माण के दरमियान परकोटा के बीच में आ रहे थे, राम जन्मभूमि परिसर में स्थित मंदिरों की जो देव प्रतिमाएं थी उन को सुरक्षित रखा गया था, अब भगवान की राग भोग और पूजा के लिए उनको वहां से लाकर कारसेवक पुरम में स्थापित किया गया है, कारसेवक पुरम की यज्ञ शाला में भगवान के दोनों समय पूजा और पाठ किए जा रहे हैं, अभी और भी मंदिरों के विग्रह बाकी हैं.


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