आगरा: कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए मार्च के महीने में संपूर्ण लॉकडाउन का फैसला लिया गया था. इस लॉकडाउन के बीच जब लोग अपने घरों में ही रहने को मजबूर थे. ऐसे वक्त में पर्यावरण पर भी खासा प्रभाव पड़ा था. ताज नगरी आगरा में लॉकडाउन के दौरान यमुना नदी अविरल और निर्मल नजर आने लगी थी. उस वक्त तो ऐसा लगा था कि जो काम करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी नहीं हो पाया था वो लॉकडाउन ने कर दिया है.


कोरोना काल लॉकडाउन से कुछ राहत मिली तो उसकी वजह से बदलाव भी देखने को मिला है. लॉकडाउन से मिली राहत यमुना नदी के लिए आफत बन गई है. कारोबार का पहिया घूमने के साथ ही आगरा में यमुना किसी नाले से ज्यादा कुछ नजर नहीं आ रही है. नदी की तलहटी में फैली गंदगी और नालों से गिरते गंदे पानी ने यमुना के जल को जहरीला बना दिया है.



रिवर कनेक्ट कैंपेन के संयोजक जुगल श्रोतिय और कोमल किशोर जो लंबे समय से यमुना के संरक्षण में जुड़े हैं, उनका कहना है कि नदी के नाले में तब्दील होने के पीछे सरकार और जनता दोनों दोषी है. यमुना नदी की ऐसी हालत देखर काफी दुख होता है. आगरा के तमाम मसलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करने वाले और प्रख्यात पर्यावरणविद शरद गुप्ता ने कहा कि अभी भी 70 नाले यमुना में सीधे गिर रहे हैं. हालात ये हैं कि कोई भी एजेंसी अपनी जिम्मेदारी निभाने को तैयार नहीं है. यही वजह है कि एक बार फिर यमुना नदी नाले के रूप में बदल गई है.


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