जालौन, एबीपी गंगा। कारगिल युद्ध को भले ही बीस साल हो चुके हों, लेकिन युद्ध में शहीद हुए जवानों के परिवार आज भी उन्हें भुला नहीं सके हैं। शहीद योगेंद्र पाल सिंह को आज भी याद कर उनके परिवारवाले भावुक हो जाते हैं। जालौन के डकोर ब्लॉक के गांव चिल्ली के रहने वाले योगेंद्र ईएमई 631 रेजिमेंट में वर्ष 1996 में भर्ती हुए थे। जिसके बाद वो साल 1999 में हुए कारगिल युद्ध मे दुश्मनों से लोहा लेते हुए वह शहीद हो गए थे।


योगेंद्र पाल के पिता वीरेंद्र सिंह बताते हैं कि उनके बेटे में सेना में जाने का जज्बा शुरू से ही था। वह हमेशा कहा करते थे कि सेना में जाकर देश की सेवा करना चाहते हैं। जिसके बाद वो सेना में भर्ती हुए। योगेंद्र के शहीद होने की खबर वाली बात पर वो बताते हैं, 'जब उनके शहीद होने की खबर पहुंची मैं खेत पर था। जब गांव पहुंचा तो लोगों का हुजूम देखकर समझ गया था और बेहोश होकर वहीं गिर पड़ा।' अपने पुत्र की शहादत के बावजूद भी वह अभी भी अपने पुत्रों व नातियों को सेना में भेजना चाहते हैं।


योगेंद्र की मां रानी देवी का कहना है कि उनका पुत्र पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ खेलकूद में भी अव्वल था। वह शील्ड व मेडल जीतकर लाते थे। जिन्हें आसपास के गांवों से खेलने के चिट्ठी द्वारा बुलावा आता था। सेना में वह अपने पहले ही प्रयास में सफल हो गए थे।


योगेंद्र की पत्नी भूरी ने बताया, 'जब वह सेना में भर्ती हुए थे तो घर मे खुशियों का माहौल था। जिसके एक साल बाद ही वह पिता बन गए थे। अपने बेटे और छोटे भाइयो के भविष्य को लेकर भी वह बातचीत करते थे।' भूरी आगे बताती हैं कि कारगिल युद्ध दौरान फोन इतने नहीं थे, तब सिर्फ चिट्ठी आती थी। चिट्ठी में वह उन्हें सांत्वना देने के लिए कारगिल युद्ध मे शामिल न होने की बात लिखते थे। जबकि वह कारगिल युद्ध मे सेना की तरफ से मोर्चा संभाले रहते थे। जिसमे वह शहीद हो गए।


अपने पिता की तरह योगेंद्र के बेटे भी सेना में भर्ती होना चाहते हैं। उनके बेटे ने बताया कि अगर मौका मिला तो वो भी सेना में जाएंगे।