प्रयागराज, एबीपी गंगा। मौजूदा दौर में मोबाइल फोन हमारी जरूरत बन चुका है। ये न सिर्फ हमारा काम आसान कर रहा है, बल्कि समूची दुनिया को मुट्ठी में कर लेने का बड़ा जरिया भी बना चुका है। हालांकि तमाम फायदे पहुंचाने वाला यही मोबाइल फोन हमें नशे का आदी भी बना रहा है और हमें बीमार भी कर रहा है। आपको शायद ये जानकर हैरानी हो कि मोबाइल का नशा ड्रग्स और शराब से भी ज्यादा खतरनाक होता जा रहा है और यह लोगों को मानसिक व शारीरिक दोनों तरह से बीमार कर रहा है। मोबाइल के नशे की गिरफ्त में आए लोगों को इस बुरी लत से छुटकारा दिलाने के लिए यूपी के स्वास्थ्य विभाग ने अनूठी पहल की है। इसके तहत प्रयागराज के मोतीलाल नेहरू मंडलीय अस्पताल में मोबाइल नशा मुक्ति केंद्र की शुरुआत की जा रही है।
हफ्ते में तीन दिन ओपीडी करेगी पांच स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की टीम
प्रयागराज में शुरू हो रहे मोबाइल नशा मुक्ति केंद्र में पांच स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की टीम हफ्ते में तीन दिन ओपीडी करेगी। गंभीर रूप से बीमार यानी मोबाइल के नशे की गिरफ्त में बुरी तरह कैद हो चुके लोगों का खास तौर पर बनाए गए माइंड चैंबर यानी मन कक्ष में इलाज किया जाएगा। लोगों की काउंसलिंग की जाएगी। साथ ही, उन्हें उनकी बीमारी के हिसाब से दवाएं भी दी जाएंगी। पांच स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की टीम के अलावा आंख, दिमाग और जनरल फिजिशियन से अलग से चेकअप कराया जाएगा। मोबाइल के नशे की लत तीन चरणों में धीरे धीरे छुड़ाई जाएगी। बता दें कि उत्तर प्रदेश में मोबाइल के नशे से मुक्ति दिलाने का अपनी तरह का यह अनूठा व पहला सेंटर है।
आज से मोबाइल नशा मुक्ति केंद्र की हो रही औपचारिक शुरुआत
प्रयागराज में इसकी औपचारिक शुरुआत आज से की जाएगी। शुरुआत में यह केंद्र राज्य स्तरीय होगा और इसके बेहतर नतीजे आने पर सूबे के दूसरे बड़े शहरों में भी इस तरह के केंद्र खोले जाने की योजना है। स्वास्थ्य विभाग के अफसरों का कहना है कि मौजूदा दौर में मोबाइल का नशा शराब, ड्रग्स व सिगरेट वगैरह से ज्यादा खतरनाक हो गया है। इसका सबसे बुरा असर छोटे बच्चों पर पड़ रहा है। बच्चों की दुनिया मोबाइल फोन तक सीमित होकर रह जा रही है और उनमें चिड़चिड़ापन, नींद का न आना, भूख न लगना और आंख व सिर में दर्द की समस्या सामने आ रही है। अफसरों के मुताबिक, इस तरह का सेंटर बेहद जरूरी हो गया था, क्योंकि मोबाइल की वजह से अक्सर ही कई गंभीर किस्म के मामले सामने आ रहे हैं।
सोमवार - बुधवार और शुक्रवार को चलेगी ओपीडी
प्रयागराज के मोतीलाल नेहरू मंडलीय अस्पताल में मोबाइल की लत छुड़ाने की ओपीडी हफ्ते में तीन दिन सोमवार - बुधवार और शुक्रवार को चलेगी। ओपीडी सुबह आठ बजे से दोपहर दो बजे तक चलेगी। मोबाइल की लत छुड़ाने के लिए खास तौर पर बनाए गए माइंड सेंटर यानी मन कक्ष में छह केबिन बनाए गए हैं। इसमें नशे की गंभीरता के आधार पर लोगों का अलग-अलग विशेषज्ञों द्वारा परीक्षण किया जाएगा। मनोवैज्ञानिकों की टीम उनकी काउंसलिंग करेगी, तो मनोचिकित्सकों व दूसरे डॉक्टर्स की टीम इलाज करेगी। जरूरत पड़ने पर खास थेरेपी का भी इस्तेमाल किया जाएगा।
इलाज के लिए अलग से कोई फीस नहीं ली जाएगी
मोतीलाल नेहरू मंडलीय अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ. राकेश पासवान और क्लीनिकल सायकोलॉजिस्ट डॉ. ईशान्या राज के मुताबिक, मोबाइल की लत बड़ी समस्या बनकर सामने आई है। इसके आदी लोगों का पहले परीक्षण किया जाएगा और उसके बाद काउंसलिंग व इलाज। खास मामलों में बच्चों के मां - बाप व परिवार के दूसरे लोगों की भी काउंसलिंग की जाएगी। डॉ. ईशान्या राज का कहना है कि मोबाइल नशे की लत धीरे धीरे चरणबद्ध तरीके से छुड़ाई जाएगी। इसमें परिवार के दूसरे लोगों का भी सहयोग बेहद अहम होगा। हॉस्पिटल के सीएमएस डॉ. वीके सिंह का कहना है मोबाइल नशा मुक्ति केंद्र में इलाज के लिए अलग से कोई फीस नहीं ली जाएगी। सिर्फ एक रुपये के पर्चे पर ही ओपीडी में चेकअप व काउंसलिंग कराई जा सकती हैं। सरकारी अस्पतालों के सामान्य नियम की तरह दवाएं भी मुफ्त में ही मिलेंगी। मोबाइल नशा मुक्ति केंद्र के लिए चौबीसों घंटे काम करने वाला एक मोबाइल नंबर भी जारी किया गया है।
विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि छोटे बच्चों को मोबाइल की लत लगाने में मां- बाप ही सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। बच्चा उनके काम व आराम में खलल न पैदा करे, इसके लिए मां- बाप खुद ही बच्चे को मोबाइल पकड़ा देते हैं। बाद में यही चीज नशे में तब्दील हो जाती है। मोबाइल फोन जिंदगी के लिए किस कदर खतरनाक होता जा रहा है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मोतीलाल नेहरू अस्पताल में डॉ. राकेश पासवान और डॉ. ईशान्या राज के पास इलाज के तकरीबन 18 और 16 साल के दो ऐसे सगे भाई इलाज के लिए आए, जो आपस में एक दूसरे से कॉम्पटीशन करते हुए एक दिन में 14 घंटे तक मोबाइल पर गेम खेलते थे। प्रयागराज के सिविल लाइंस इलाके की रहने वाली अभिभावक नीतू और अमिताभ सोनी भी मानते हैं कि बच्चों को मोबाइल का आदी बनाने के लिए वह खुद भी जिम्मेदार हैं। हालांकि इसके पीछे उनकी अपनी दलीलें भी हैं।